बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के षड्यंत्र का सच : भ्रामक विज्ञापनों से बचे और अपने नौनिहालों को जहर से बचाएं
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द बर्तन साफ करने के लिए प्रयोग किए जा रहे साबुन व लिक्विड सोप लिवर कैंसर कारक-
प्राचीनकाल में छोटे-बड़े जितने भी कार्य होते थे, वे वैज्ञानिकता की कसौटी पर परखकर किए जाते थे। उदाहरण के तौर पर हमारे पूर्वज बर्तन साफ करने के लिए नींबू तथा राख का इस्तेमाल करते थे। वर्तमान में प्रयोग किये जाने वाले रसायन बर्तनों पर चिपके रह जाते हैं जो लिवर कैंसर का कारण बनते हैं।
आज के बदलते परिवेश में लगभग प्रत्येक रसोई घर में बर्तन धोने के लिए लिक्विड सोप का प्रयोग आम बात हो गई है। कुछ सालों पहले तक बर्तन धोने का साबुन आया करता था, जो काफी जल्दी पिघल जाता है, लेकिन बदलते समय के साथ उस साबुन की जगह लिक्विड सोप ने ले ली। साबुन से लिक्विड सोप के सफर में भले ही बर्तन धोने का तरीके में कुछ बदलाव आ गया हो, लेकिन इनके प्रयोग से शरीर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव में कोई बदलाव नहीं आया है।
कई लोग मानते हैं कि लिक्विड सोप में सिरका तथा नींबू के कारण ये शरीर के लिए दुश्प्रभाव रहित हैं किन्तु विशेषज्ञों के अनुसार इसमें ऐसे रसायन भी प्रयोग किए जा रहे हैं जो मानव शरीर के लिए काफी हानिकारक होते हैं। जैसे बर्तन धोने के साबुन में ट्रायक्लोसन धड़ल्ले से प्रयोग किया जाता है, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल एजेंट होने के कारण बड़े-बड़े ब्रैंड्स बर्तन धोने के साबुन में इसका प्रयोग करते हैं। शोध से यह प्रमाणित हो गया है कि ट्रायक्लोसन के दुष्प्रभाव से माइटोकाॅन्ड्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
‘द सन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, जो लोग रसोई में बर्तनों को धोने में लापरवाही करते हैं, उनमें कैंसर का खतरा चार गुना बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जिन साबुन और डिटर्जेंट को हम बर्तन धोने के लिए लाते हैं, उन्हें बारीकी के साथ धोना बहुत जरूरी होता है वर्ना वे कटोरी, गिलास, चम्मच, थाली जैसे बर्तनों में चिपके रह जाते हैं। जब हम बर्तनों में कोई खाना खाते हैं या पानी पीते हैं तो उन केमिकल के कण हमारे शरीर के अंदर चले जाते हैं और लिवर ;स्पअमत ब्ंदबमतद्ध में पहुंचकर शरीर को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।
अतः विदेशी कम्पनी के विज्ञापन पर मत जाएँ, अपनी अक्ल लगाएँ और बर्तन साफ करने के लिए नींबू व राख या इनसे बने साबुन व लिक्विड का प्रयोग करें। पतंजलि ने राख व नींबू से बनी बर्तन बार तथा लिक्विड सोप निर्मित किए हैं जो पूर्णतः स्वदेशी तथा दुष्प्रभाव रहित हैं।
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द जाॅनसन एंड जाॅनसन 2023 से बेबी पाउडर बनाना और बेचना पूरी तरह से बंद कर देगी-
मल्टीनेशनल कंपनी कैसे जहरीले मिलावट वाले पदार्थ बेचती हैं यह हम तथ्यों के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। पहले मई 2018 में जाॅनसन एंड जाॅनसन पर 32,000 करोड़ रुपए का जुर्माना हुआ क्योंकि उसके बेबी पाउडर से एक महिला को कैंसर हुआ था।
हेल्थ केयर क्षेत्र की दिग्गज कंपनी जाॅनसन एण्ड जाॅनसन ने अमेरिका व कनाडा में टैल्कम पाउडर की बिक्री बंद करने के दो साल बाद ये निर्णय लिया है। जाॅनसन एण्ड जाॅनसन कंपनी अपना बेबी टैल्कम पाउडर बेचना बंद करने जा रही है। अगले साल यानी 2023 से पूरी दुनिया में कंपनी बेबी टैल्कम पाउडर नहीं बेचेगी। कंपनी अमेरिका और कनाडा में पहले ही टैल्कम पाउडर बेचना बंद कर चुकी है। अब जाॅनसन एंड जाॅनसन बाजार में काॅर्नस्टार्च बेस्ड पाउडर लाएगी। जाॅनसन एंड जाॅनसन टैल्कम पाउडर क्यों बंद करने जा रही है? दरअसल, टैल्कम पाउडर को लेकर दुनिया में दावे किए जाते हैं कि इसके इस्तेमाल से कैंसर का खतरा रहता है। हालांकि, जाॅनसन एंड जाॅनसन का दावा है कि यह पाउडर सेफ है।
कंपनी का कहना है कि बेबी पाउडर में अब टैल्कम पाउडर की जगह काॅर्नस्टार्च का प्रयोग इस्तेमाल किया जाएगा। एक रिपोर्ट्स के मुताबिक, कंपनी के खिलाफ 38 हजार से ज्यादा केस चल रहे हैं। कई महिलाओं ने दावा किया कि बेबी पाउडर का इस्तेमाल करने से उन्हें ओवेरियन कैंसर हो गया। अमेरिका में रेग्युलेटर्स ने दावा किया था कि उन्हें कंपनी के बेबी पाउडर में कैंसर पैदा करने वाले तत्व मिले हैं। हालांकि, कंपनी हमेशा से इन आरोपों को निराधार बताती रही है।
टैल्क एक प्राकृतिक खनिज है जो धरती से निकलता है। इसमें सिलिकाॅन, मैग्नीशियम, आक्सीजन और हाइड्रोजन आदि तत्व होते हैं। टैल्क हाइड्रोस मैग्नीशियम सिलिकेट है, जिसका इस्तेमाल पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स और काॅस्मेटिक्स में होता है। यह नमी सोखने में इस्तेमाल होता है।
टैल्क से कैंसर के खतरे की बात इसलिए की जाती है क्योंकि जहाँ से इसे निकाला जाता है वहीं से अभ्रक (एस्बेस्टस) भी निकलता है। ये शरीर के लिए खतरनाक होता है। टैल्क की माइनिंग के दौरान इसमें अभ्रक के मिलने का खतरा रहता है।
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द मोनसेंटो के खरपतवारनाशी उत्पाद राउंडअप से अमेरिकी किसान को हुआ कैंसर-
एक खबर आई है कि मोनसेंटो कंपनी के खरपतवार नाशी राउंडअप नाम के एक प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने से अमेरिका के किसान को कैंसर हुआ उसने कोर्ट में मुकदमा किया और उसको लगभग 550 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का आदेश कोर्ट ने दिया।
बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ मोनसेंटो व बेयर बीज और कृषि रसायनों के व्यवसाय को साथ-साथ कर रही हैं व कई फसलों (विषेशकर जी.एम. फसलों) के बीजों के साथ ही उनके लिये उपयुक्त खरपतवारनाशकों, कीटनाशकों आदि को भी बेचा जाता है।
खेतों से खरपतवार खत्म करने के लिए राउंडअप इस्तेमाल में लाई जाती है। इसमें मुख्य रूप से ग्लाइफोसेट नाम का रसायन होता है। विषेशज्ञ इस रसायन को कैंसर पैदा करने वाला मानते हैं। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की इंटरनेशनल एजेंसी फाॅर रिसर्च आन कैंसर ने भी ग्लाइफोसेट को ऐसे पदार्थों की सूची में रखा है जिनसे कैंसर का खतरा होता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की कृषि रसायन कंपनी मोनसेंटो पर उसके खरपतवार-नाशक उत्पाद राउंडअप से कैंसर होने को लेकर लगभग 13 हजार मुकदमे दर्ज हैं। आॅकलैंड के कैलिफोर्निया स्टेट कोर्ट ने मोनसेंटो को मुकदमा दर्ज कराने वाले अल्वा और अलबर्ट पिलोड को करीब 14,385 करोड़ रुपए (205.5 करोड़ डाॅलर) हर्जाने के तौर पर चुकाने का फैसला सुनाया है। मामले में यह अब तक का सबसे अधिक हर्जाना है।
निर्णायक मंडल ने कंपनी को अल्वा और अलबर्ट पिलोड में से हर एक को 7-7 हजार करोड़ रुपए बतौर हर्जाना के साथ आर्थिक और गैर-आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए 5.5 करोड़ डाॅलर (करीब 385 करोड़ रुपए) अलग से अदा करने के निर्देश दिए हैं। शिकायतकर्ताओं के वकीलों ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया है।
उन्होंने कहा कि मोनसेंटो कंपनी ने पूरी सुनवाई में कभी यह बात साबित करने की कोशिश ही नहीं की कि उसके उत्पाद राउंडअप का इस्तेमाल पूरी तरह से सुरक्षित है। अमेरिका में राउंडअप से कैंसर होने की शिकायतों को लेकर लोगों ने विभिन्न अदालतों में 13,000 से ज्यादा मुकदमे दायर कर रखे हैं। मोनसेंटो कंपनी को इससे पहले ऐसे ही दो मुकदमे हारने के कारण 1110 करोड़ रुपए चुकाने पड़े हैं। कोर्ट ने ड्वेन जाॅनसन को 28.90 करोड़ डाॅलर (करीब 2,023 करोड़ रुपए) हर्जाना देने का फैसला सुनाया था। हालांकि इसे बाद में घटाकर 7.85 करोड़ डाॅलर (करीब 550 करोड़ रुपए) कर दिया था। इस साल 28 मार्च को कोर्ट ने एडविन हार्डमैन को 8 करोड़ डाॅलर (560 करोड़ रुपए) का हर्जाना देने का फैसला सुनाया था।
कंपनी पर मालिकाना हक रखने वाली जर्मन कंपनी बायर ने कहा है वह ताजा फैसले से निराश है और उच्च न्यायालय अपील करेगी। बायर के मुताबिक ताजा फैसला खरपतवार-नाशक के बारे में अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी की हालिया समीक्षा के एकदम विपरीत है।
नवदान्य संस्था के मुताबिक राउंडअप खेत में मौजूद सभी तरह के सूक्ष्म जीव-जंतु और कीटों के हानिकारक है, क्योंकि यह उन्हें पूरी तरह खत्म कर देती है। इससे खरपतवार के साथ-साथ वो जीव भी खत्म हो जाते हैं जो पौधों को रोगों से सुरक्षा में मददगार होते हैं। राउंडअप से पौधों में 40 से ज्यादा रोग पैदा होने के साथ उनका डीएनए तक डैमेज हो जाता है।
साभार- ीजजचेरूध्ध्ूूूण्ंउंतनरंसंण्बवउध्ूवतसकध्ने.बवउचंदल.उवदेंदजव.सवेज.3तक.जपउम.ूममक.ापससमत.बंदबमत.बंेम.वतकमतमक.जव.चंल.ते.14.385.बतवतमे.कंउंहमेघ्चंहमप्कत्र1
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द नेस्ले ने खुद माना कि हमारे 60 परसेंट प्रोडक्ट्स न्दीमंसजील-
बहुराष्ट्रीय कंपनी नेस्ले जिसकी मैगी कई बार विवाद में आई लेकिन आज भी धड़ल्ले से बाजार में बिक रही है और ताज्जुब की बात यह है कि लोग अपने बच्चों के स्वास्थ्य को नजर अंदाज करते हुए इसे खरीद भी रहे हैं। यहाँ तक कि नेस्ले ;छमेजसमद्ध कंपनी ने खुद स्वीकार किया है कि हमारे 60 परसेंट प्रोडक्ट हेल्दी नहीं हैं, यानी उनका सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये आरोप किसी प्रतिस्पर्धी कंपनी या किसी फूड रेगुलेटर ने नहीं लगाए, बल्कि ये फूड एंड ड्रिंक कंपनियों की सबसे बड़ी कंपनी कही जाने वाली नेस्ले ने अपनी रिपोर्ट्स में खुद स्वीकार किया है।
इस विषय में थ्पदंदबपंस ज्पउमे में एक बड़ी रिपोर्ट छपी थी जिसमें नेस्ले के इस स्वीकारनामे की पूरी जानकारी है। पतंजलि के न्यूट्रिशियस प्रोडक्ट से प्रतिस्पर्धा को देखते हुए कंपनी अब अपने प्रोडक्ट्स में न्यूट्रिशन वैल्यू बढ़ाने के लिए नई रणनीति पर काम कर रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी के कई पसंदीदा प्रोडक्ट्स स्वास्थ्य और न्यूट्रिशन के मापदंडों पर खरा नहीं उतरे हैं। रिपोर्ट में लिखा है कि नेस्ले ने ये बात स्वीकार की है कि उसके 60 प्रतिशत से ज्यादा मेनस्ट्रीम प्रोडक्ट्स स्वास्थ्य की स्वीकृत परिभाषा को पूरा नहीं करते और कुछ प्रोडक्ट्स कभी भी हेल्दी नहीं हो पाएंगे, चाहे उनमें कितना भी बदलाव किया जाए।
थ्पदंदबपंस ज्पउमे की रिपोर्ट में बताया गया है कि आॅस्ट्रेलिया के हेल्थ स्टार रेटिंग सिस्टम में, एनिमल फूड और मेडिकल न्यूट्रिशिन को छोड़कर, नेस्ले के केवल फूड एंड बेवरेज प्रोडक्ट्स ही 5 में से 3.5 से ज्यादा की रेटिंग पाने में कामयाब रहे हैं। नेस्ले का कहना है कि हेल्थ स्टार रेटिंग और न्यूट्री-स्कोर को प्रोडक्ट्स की क्वाॅलिटी के लिए अच्छा माना जाता है। कंपनी का मानना है उसके आधे से ज्यादा प्रोडक्ट इस हेल्थ सिस्टम में नहीं आते।
पहले भी नेस्ले के उत्पाद विवाद में आए। 12 मार्च 2014 होली के दौरान उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में ईजी-डे के एक स्टोर से मैगी नूडल्स के नमूने जांच के लिए गए। गोरखपुर की सरकारी लैब में जांच हुई तो इसमें लेड की मात्रा 2.5 पीपीएम के स्वीकार्य स्तर से ज्यादा मिली। नमूने को जांच के लिए दोबारा कोलकाता की केंद्र सरकार की लैब में भेजा गया जहाँ इसमें लेड 17.2 पीपीएम पाया गया।
वर्ष २915 में फिर से मैगी पर विवाद काफी सुर्खियों में आया जब मैगी नूडल्स में लेड (सीसा) की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने नेस्ले पर झूठा प्रचार करने और खाने के सामान की गलत लेबलिंग, और भ्रामक तथ्य देने के लिए 640 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। साथ ही, सरकार को ये अनुमति भी दी है कि वो इस मामले में आगे जांच कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मैगी बनाने वाली नेस्ले कंपनी के वकीलों ने ये स्वीकार किया है कि मैगी में साल 2015 में लेड (सीसा) की मात्रा तय सीमा से ज्यादा थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया कि मैगी के सैम्पल की जांच भी होगी और नेस्ले पर कार्रवाई भी होगी। मैगी विवाद की वजह से नेस्ले को 500 करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान हुआ था।
30 अप्रैल 2015 तक उत्तर प्रदेष के फूड और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ;थ्क्।द्ध ने नेस्ले से मैगी नूडल्स के फरवरी 2014 के बैच को वापस लेने को कहा। 29 मई 2015 को सरकार ने थ्ैै।प् से मामले की जांच करने को कहा। थ्ैै।प् ने अलग-अलग राज्यों से जांच के लिए और नमूने लिए। गौरतलब है कि विवाद शुरू होते ही नेस्ले ने बाजार से मैगी नूडल्स को वापस लिया था।
साभार- https://zeenews.india.com/hindi/ business/nestle-admits-its-60-percent-products-are-not-healthy-including-maggi-know-the-details/912147
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