हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय में कथा, उमंग, भजन-कीर्तन के साथ ‘मानस गुरुकुल’ कथा में हनुमान चालीसा के पश्चात पूज्य मोरारी बापू के श्रीमुख से कथा प्रारंभ हुई जिसमें उन्होंने रामनाम संकीर्तन को सबसे बड़ी औषधि बताया।
व्यासपीठ से पूज्य बापू जी ने कहा कि गायत्री मंत्र के द्वारा ऋषि विश्वामित्र कहते हैं कि राम हमारे सर्वज्ञ हैं, हमारे पूर्वज हैं। हमें उनसे आचरण व मर्यादा का पाठ सीखना चाहिए। हमें नापना नहीं पाना सीखना चाहिए। जीवन के गहरे तत्वों को पूज्य बापू ने विस्तार से समझाया। उन्होंने महर्षि पतंजलि, आदि शंकराचार्य, स्वामी दयानंद के जीवन प्रसंगों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि साधु का जीवन जल के समान निर्मल होता है। साधु कभी निंदा नहीं करता, निदान ही करता है। सद्गुरु के आश्रय में जीवन की विविध समस्याओं का समाधान अनायास ही हो जाता है। ज्ञान, ऐश्वर्य, पुरुषार्थ, तेज, बल, रस आदि गुणों की अभिवृद्धि गुरुकुल में गुरु के आश्रय में ही संभव है। शिष्य का संकल्प इसमें अहम भूमिका निभाता है। संकल्प यदि शिवसंकल्प हो जाए तो उसे पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता। सत्ययुक्त व अहंकारमुक्त जीवन को पूज्य बापू ने श्रेष्ठ जीवन बताया। जीव व शिव का भेद बताते हुए उन्होंने कहा कि जीव अनेक हैं, शिव एक हैं। जीव माया के वश में है और माया शिव के वश में। जीव अल्पज्ञ है, ईश्वर सर्वज्ञ है। उन्होंने कहा कि शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिए जो हमें सिखाए कि हमारा मूल क्या है? समय हमारी प्रतीक्षा कर रहा है।
कार्यक्रम में पूज्य स्वामी जी महाराज ने कहा कि हर दिन हम नये उल्लास से, नये आनन्द से नव भक्ति से बापू द्वारा सुनाई जा रही राम कथा में प्रवेश करते जा रहे हैं। बापू जी की उपस्थिति मात्र से ही हम बहुत कुछ सीखते हैं। पूज्य महाराज जी ने कहा कि कोई राम जी को अवतारी पुरुष माने या अपना पूर्वज या कोई महापुरूष, राम तो राम हैं। भारत की 100 करोड़ की आबादी में किसी ने किसी रूप में राम समाहित हैं। महर्षि दयानन्द कहते हैं कि स्तुति से प्रीति का जन्म होता है। यहाँ राम में हमारी प्रीति बढे़, और उपासना से हम एकात्म हो जाएँ तो इस कथा का उद्देश्य सफल हो जाए। उन्होंने कहा कि राम योग का सर्वोपरि सत्य है, सनातन सत्य है, यम-नियम-आसन राम है, धारणा राम है, राम भक्तियोग, कर्मयोग, अष्टांग योग, क्रिया योग, हठयोग, कुण्डली योग हैं। सारे योग राम में ही समाहित हैं। यह संसार उस परम चेतना की ही अभिव्यक्ति है- सियाराम मय सब जग जानी।
उन्होंने शून्य से सृजन की यात्रा पतंजलि गीत के माध्यम से कहा कि हमने शून्य से सृजन भी देखा है। भगवान को एक अटूट सत्य बताते हुए कहा कि सारा अस्तित्व ही इसका प्रमाण है। यहाँ इस पृथ्वी पर जो भी होता है वह भी भगवान् की इच्छा अनुरूप ही होता है।
इस अवसर पर आचार्यकुलम् के नन्हें बालकों ने श्रीराम वंदना गाकर उपस्थित साधकों का मन मोह लिया।
कार्यक्रम में पूज्य आचार्य जी महाराज, पूज्य सतुआ बाबा जी, डाॅ. यशदेव शास्त्री जी व बहन ऋतम्भरा जी, साध्वी देवप्रिया जी, प्रो. महावीर अग्रवाल, बहन प्रवीण पूनीया, डाॅ. निर्विकार, श्री एन.सी. शर्मा सपत्नीक, बहन अंशुल, बहन पारूल, स्वामी परमार्थ देव, डाॅ. जयदीप आर्य, भाई राकेश कुमार, प्रो. अनिल यादव, प्रो. के.एन.एस. यादव, प्रो. वी.के. कटियार व श्री वी.सी. पाण्डेय के साथ-साथ पतंजलि विश्वविद्यालय के अधिकारी, शिक्षकगण, कर्मचारी तथा छात्र-छात्राओं, पतंजलि संन्यासाश्रम के संन्यासी भाई व साध्वी बहनों व विभिन्न प्रांतों से पधारे हजारों श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण का लाभ लिया।