उपलब्धिया : चिकित्सा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अभियान में पतंजलि योगपीठ का योगदान

उपलब्धिया : चिकित्सा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अभियान में पतंजलि योगपीठ का योगदान

     प्राचीन काल से ही भारत आत्मनिर्भर रहा है, हम केवल आत्मनिर्भर ही नहीं थे, बल्कि पूरी दुनिया को कृषि, अर्थ, स्वास्थ्य, दवायें, मसाले, तकनीक व शून्य से लेकर सर्जरी तक ज्ञान पूरी दुनिया को भारत ने दी है। 1750 तक पूरे विश्व की जी.डी.पी. में आज के आधुनिक यूरोप से भी आगे भारत की हिस्सेदारी रही है। भारत स्वाभाविक रूप से चाहे ज्ञान-विज्ञान की बात हो या संसाधनों की बात हो, भारत आत्मनिर्भर रहा है।
      पुराने समय से ही सबसे पहले महर्षि दयानन्द जी ने स्वदेशी व साम्राज्य का उद्घोष किया, उसके बाद स्वदेशी के इस आन्दोलन व अभियान को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक वीर सावरकर, लाला लाजपत राय, व महात्मा गांधी के साथ-साथ, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने आगे बढ़ाया। स्वदेशी से स्वराज्य व स्वराज्य से स्वावलम्बन के इस अभियान में आजादी के बाद भी अनेकों महापुरुषों ने स्वदेशी के इस दर्शन को धरातल पर उतारने के लिए अनेकों प्रयास किये, इसी बहिष्कार व असहयोग के हथियार को प्रयोग करके हमारे क्रान्तिकारियों ने ईष्ट इंडिया कम्पनी व ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेका था, स्वदेशी या आत्मनिर्भर भारत के इस दर्शन को वैचारिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण से धरातल पर उतारने का कार्य पतंजलि योगपीठ में परम पूज्य स्वामी जी महाराज व श्रद्धेय आचार्य जी के विराट संकल्प से हो रहा है।
       जिस प्रकार पहले एक ईष्ट इंडिया कम्पनी भारत में आयी, और भारत को गुलाम बना लिया, आज भी ऐसी हजारों विदेशी कम्पनियाँ भारत में आकर भारत को सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से गुलाम बनाकर हजारों करोड़ प्रतिवर्ष लूटकर विदेशों में ले जाती हैं। देश को इस लूट से बचाने के लिए वर्तमान सरकार ने आत्मनिर्भर भारत का अभियान चलाया है। इस आत्मनिर्भर भारत के अभियान में भारत को सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाना, ताकि भारत को छोटी-छोटी वस्तुओं के लिए दूसरों देशों व विदेशी कंपनियों पर निर्भर न होना पड़े। वर्तमान समय में देश के लोकप्रिय प्रधनमंत्री मा. श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने का आह्नान किया है तथा वोकल फाॅर लोकलका नारा दिया है। जिसका अर्थ है लोकल में बनी वस्तुओं का उत्पादन, उपयोग व प्रचार करना।
      आज हम यदि केवल चीन की बात करें तो अकेला चीन हमारे देश में प्रतिवर्ष शून्य तकनीकी की छोटी-छोटी चीजों से लेकर मशीनरी व एक्यूपमेंट तक लगभग सवा पाँच लाख करोड़ रुपये का सामान हमें बेचता है। जबकि हम आज चीन को केवल एक लाख करोड़ रुपये का सामान बदले में बेच पाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो अकेला चीन हर वर्ष लगभग सवा चार लाख करोड़ रुपये की आर्थिक लूट भारत से करता है। 1970 के दशक तक जो चीन एक भूखा देश था, वह आज पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर कब्जा जमाकर वल्र्ड पाॅवर बनने की ओर अग्रसर है। आज चीन ने आत्म निर्भरता की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करके खुद को वैश्विक फैक्ट्री बना दिया है। दुनिया में आज 10 में से 8 ए.सी., 10 में 7 मोबाईल, 10 में से 6 जूते चीन बना रहा है। दुनिया का 60» सीमेन्ट, 50» कोयला, 45» इलेक्ट्रानिक्स चिप, 50» स्टील व पूरी दुनियां का 50» अकेला उत्पादन कर रहा है। आज भारत को स्वदेशी व स्वराज्य के मार्ग पर चलकर आत्मनिर्भर भारत बनाना है। आज हम इलेक्ट्रानिक्स, मशीनरी, आयरन स्टील, टेक्सटाईल से लेकर दीपावली के दिये, होली की पिचकारी, मोबाईल एप्लीकेशन, मोबाईलन फोन आदि में विदेशों पर निर्भर है। 1970 तक चीन की जी.डी.पी. भारत के बराबर थी। आज चीन पूरी दुनिया को टक्कर दे रहा है। सुबह हम उठते हैं तो अलार्म से लेकर बिजली के स्विच बाथरूम की फिटिंग, काॅस्मेटिक से लेकर कार एसेसरीज, स्टेशनरी तक हमारे घर के व जीवन के हर कोने में चीन घुसा हुआ है। चीन की यह आत्मनिर्भरता स्वदेशी के रास्ते पर चलकर आयी है। भारत को भी विश्व गुरु बनने व वल्र्ड पाॅवर बनने के लिए, आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वेदशी के मार्ग पर चलने की आवश्यकता है। अगर हम शिक्षा, तकनीक, हथियार, मशीनरी, रसायन, टेक्सटाईल, मोबाईल, इलेक्ट्राॅनिक्स, आयरन व स्टील इत्यादि की बात न करके केवल अकेले चिकित्सा के क्षेत्रों में प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपये की लूट फार्मा कम्पनियाँ या दवा बनाने वाली कम्पनियाँ करती हैं।

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       विदेशी कम्पनियाँ जहाँ देश का धन लूटती हैं दूसरी तरफ देश को बीमार बनाने का काम भी करती हैं। जैसे हम एक उदाहरण देखें, जाॅनसन एण्ड जाॅनसन नाम की विदेशी कम्पनी हर वर्ष भारत में हजारों करोड़ रुपये का कारोबार करती है। इसी कम्पनी पर यूरोप व अमेरिका में 2016 में 375 करोड़ (55 मिलियन डाॅलर) का जुर्माना लगाया गया, 2018 में अमेरिका की सेंट लुइस कोर्ट में 32 हजार करोड़ रुपये का भारी भरकम जुर्माना लगाया गया। जब अमेरिका जैसे देश में यह कंपनियाँ अपने उत्पादों में कैंसर कारक जहरीली मिलावट कर सकती हैं तो भारत में क्या करती होंगी?, 2019 में इसी कम्पनी पर 56 हजार करोड़ रुपये का जुर्माना दवाओं के हानिकारक दुष्प्रभावों को छुपाने के लिए लगाया गया। इसी प्रकार 2019 में ही अमेरिका में दर्दनाशक दवाओं में अफीम मिलाने व नशेड़ी बनाने के लिए अमेरिका की एक अदालत ने 4100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। यह केवल एक कंपनी के खिलाफ चल रहे कुछ मामलों की चर्चा की है। ऐसे ही देश व दुनियाँ में हजारों कम्पनियाँ कार्य कर रही है। केवल इस एक जाॅनसन एंड जाॅनसन कंपनी का वर्ष 2015 का मुनाफा लगभग 1 लाख करोड़ रुपये था। आज अंदाजा लगा लीजिए यह कंपनियाँ कितनी आर्थिक ताकतवर हैं। अकेली एक अमेरिका की फाईजर कंपनी की बिक्री दुनियाँ में 3.5 लाख करोड़ रुपये है। इसी प्रकार गठिया बाय की अकेली दवा ह्यूमिरा ;भ्नउपतंद्ध की बिक्री लगभग 1 लाख 33 हजार करोड़ रुपये है। ऐसे ही कैंसर की दवाओं का, डाबिटीज की दवाओं का, दर्द निवारक दवाओं कालेस्ट्राॅल व बी.पी. आदि की प्रत्येक श्रेणी की दवाओं का वैश्विक कारोबार लगभभग 5 लाख करोड़ रुपये प्रोफिट है। भारत में दुनियाँ का हर सातवाँ व्यक्ति रहता है। बी.पी. डायबिटीज से लेकर अनेकों रोगों के सर्वाधिक रोगी भारत में रहते हैं। इन मल्टीनेशनल फार्मा कंपनियों को भारत एक बड़ा बाजार दिखाई दे रहा है। इन दवा कंपनियों का एक ही लक्ष्य है एक भी मानव इस पृथ्वी पर बिना दवा के जीवित न रहे, फार्मा उद्योग चाहता है कि अधिक से अधिक लैब की जाँचे हों, अधिक से अधिक रोग ढ़ूढ़े जायें, अधिक से अधिक लोगों को बीमार किया जाये, अधिक से अधिक लोग डायबिटीज, थायराइड, ब्लड प्रेशर, अनिद्रा व पेन किलर दवा खायें, अधिक से अधिक लोगों के डायलिसिस हों, गुर्दे बदले जायें, घुटने बदले जायें, आॅपरेशन किया जाये, डाॅक्टर चिकित्सक व भगवान कम-व्यापारी अधिक बन गये हैं, हाॅस्पिटल कार्पोरेट हाॅस्पिटल बन गये हैं, जो एक प्रोडक्शन करने वाली कंपनी की तरह हर महीने रोगियों को लूटने के टारगेट फिक्स करते हैं।
      परम पूज्य स्वामी जी महाराज व श्रद्धेय आचार्य श्री स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बनाने के लिए पतंजलि योगपीठ के माध्यम से अहर्निश प्रयत्नशील हैं। भारत एक गरीब देश है। जहाँ स्वास्थ्य पर खर्च यदि देश की जी.डी.पी. की दृष्टि से देखा जाये तो नेपाल भूटान से भी कम है। भारत में गरीब लोग इलाज कराते हुए और गरीब हो जाते हैं। इलाज करवाने के लिए उनको अपना घर व जमीन गिरवी रखनी पड़ती है।
      भारत जैसे गरीब देश को जहाँ करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं। जहाँ पर डाॅक्टर पर्याप्त संख्या में नहीं है, जहाँ पर हास्पिटल पर्याप्त संख्या में नहीं है और अधिकांश गरीब लोग आधुनिक चिकित्सा को किसी भी प्रकार से वहन करने की स्थिति में नहीं है। ऐसी स्थिति में चिकित्सा के क्षेत्र में, मेडिकल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए परम्परागत भारतीय जीवन पद्धति या दूसरे शब्दों में कहें तो महर्षि पतंजलि, महर्षि चरक व सुश्रुत के रास्ते पर चलकर या योग आयुर्वेद से ही सम्भव है। भारत को केवल एफ.एम.सी.जी. में ही नहीं बल्कि चिकित्सा या स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पतंजलि योगपीठ का बहुत बड़ा योगदान है।
    भारत में क्रोनिक डिजिज से 45 से 64 साल के उम्र के आयु वर्ग के लोगों के बीमार होने के कारण एक करोड़ सम्भावित उत्पादक साल अर्थात् पोटेन्शियल प्रोडेक्टिव इयर्स आॅफ लाईफ बर्बाद हो जाते हैं, 2030 तक यह नुकसान दोगुना होने की सम्भावना है। रोगों के उपचार में जहाँ एक ओर लाखों करोड़ रुपये खर्च होते हैं वैसे ही जीवनशैली की बीमारी के कारण होने वाले असंक्रामक या क्रोनिक रोगों के कारण करोड़ों उत्पादक घंटे नष्ट हो जाते हैं। जिसका आर्थिक मूल्यांकन किया जाये तो प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपये का भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। ऐसे बहुत से शोध हो चुके हैं जो यह दिखाते हैं कि बीमारी के कारण हर साल लाखों करोड़ रुपये की उत्पादकता का नुकसान भारत को हो रहा है।
      भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका तक में 70» व्यक्ति जो दीवालिया होेते हैं, उसका कारण केवल बीमारियाँ या आधुनिक चिकित्सा विज्ञान है। मधुमेह, हृदय रोग, लीवर विकार, हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर, अस्थमा आदि के सर्वाधिक रोगी भारत में है। भारत जैसे देश को जीवन शैली से उत्पन्न हुई बीमारियों से बचाने का काम केवल योग व आयुर्वेद कर सकता है। आजकल आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में प्रिवेटिंव काॅर्डियोलाॅजी सिद्धान्त की बात की जाती है। पूरी दुनियां को यह प्रिवेटिंव काॅर्डियोलाॅजी देने का सिद्धान्त भारत ने किया है। केवल जीवन शैली से होने वाली बीमारियों से उपचार की लागत 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक प्रतिवर्ष है।

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