इसी प्रकार क्षीरसात्म्य व्यक्ति को भी उपरोक्त गुण प्राप्त होते हैं। क्षीर ;दूध्द्ध परम रसायन होता है। इसका सेवन करने वाला व्यक्ति दृढ़ व पुष्ट शरीर वाला, मोटापे से रहित व श्रम करने में समर्थ होता है।
स शनैर्हितमादद्यादहितं च शनैस्त्यजेत्।
हितकर पदार्थों को सात्म्य करने के लिए ध्ीरे-ध्ीरे उनका सेवन आरम्भ करना चाहिए तथा अहितकर पदार्थों का ध्ीरे-ध्ीरे परित्याग कर देना चाहिए। इस प्रकार से सात्म्य हो जाते हैं। किसी पदार्थ का निरन्तर व दीर्घकाल तक सेवन उसे सात्म्य बना देता है।
आदौ तु स्निग्ध्मध्ुरं विचित्रां मध्यतस्तथा।
रूक्षद्रवावसानं च भु×जानो नावसीदति।
भोजन के आरम्भ में स्निग्ध् व मध्ुर पदार्थ लेने चाहिए। मध्य में विचित्रा अर्थात् नाना स्वाद वाले पदार्थ लेने चाहिए। भोजन के अन्त में रूक्ष व द्रव पेय पदार्थ लेने चाहिए। इस क्रम से भोजन करने वाला व्यक्ति स्वस्थ रहता है तथा रोगजन्य कष्ट नहीं पाता है।
भागद्वयमिहाÂस्य तृतीयमुदकस्य च।
वायोः स×चरणार्थं च चतुर्थमवशेषयेत्।
उदर ;पेटद्ध के दो भाग अन्न से भरे, तीसरा भाग जल से भरे तथा चैथा भाग वायु के संचारण हेतु खाली रखना चाहिए।
ततो मुहूर्तमाश्वस्य गत्वा पादशतं शनैः।
स्वासीनस्य सुखेनान्नमव्यथं परिपच्यते।।
तदनन्तर मुहूर्तभर विश्राम करके सौ कदम ध्ीरे-ध्ीरे चलकर सुखपूर्वक बैठकर अपना दैनिक कर्म करे। इस प्रकार करने से बिना कष् के सुखपूर्वक अन्न पच जाता है।
वीणावेणुस्वनोन्मिश्रं गीतं नाटड्ढविडम्बितम्।
विचित्राश्च कथाः शृण्वन् भुक्त्वा वधर््यते बलम्।।
भोजन के उपरान्त वीणा, वेणु ;बांसुरीद्ध के स्वर से मिश्रित अभिनयपूर्ण गीत सुनने चाहिए। इसी प्रकार विचित्रा मनोरंजक कथाओं का श्रवण करना चाहिए। इस प्रकार करने से मन की प्रसन्नता व बल बढ़ता है।