विदेशी व देशी कम्पनियों की लूट, पाप का अत्याचार

विदेशी व देशी कम्पनियों की लूट, पाप का अत्याचार

पतंजलि द्वारा केवल ‘सामान’ ही नहीं बनाया जाता, बल्कि ‘अच्छे इंसान’ बनाने का कार्य भी होता है। जितनी मल्टीने-शनल कम्पनियाँ हैं। उन सबके मालिक कोई एक व्यक्ति या एक परिवार या उनके पार्टनर्स या शेयरहोल्डर्स हैं जबकि पतंजलि एक ऐसी संस्था है जिसका मालिक कोई एक व्यक्ति एक परिवार नहीं हैं बल्कि देश के 130 करोड़ लोग हैं। बेरोजगारी के इस वातावरण में देश की सबसे बड़ी भर्ती करने का काम पतंजलि योगपीठ द्वारा किया गया है। पतंजलि संस्थान में किसी भी प्रकार से कास्ट, रिलीजन, डिग्री आदि को वरीयता…

पतंजलि द्वारा केवल ‘सामान’ ही नहीं बनाया जाता, बल्कि ‘अच्छे इंसान’ बनाने का कार्य भी होता है। जितनी मल्टीने-शनल कम्पनियाँ हैं। उन सबके मालिक कोई एक व्यक्ति या एक परिवार या उनके पार्टनर्स या शेयरहोल्डर्स हैं जबकि पतंजलि एक ऐसी संस्था है जिसका मालिक कोई एक व्यक्ति एक परिवार नहीं हैं बल्कि देश के 130 करोड़ लोग हैं।

बेरोजगारी के इस वातावरण में देश की सबसे बड़ी भर्ती करने का काम पतंजलि योगपीठ द्वारा किया गया है। पतंजलि संस्थान में किसी भी प्रकार से कास्ट, रिलीजन, डिग्री आदि को वरीयता नहीं दी जाती बल्कि केवल काम को वरीयता दी जाती है।

देश में बड़े-बड़े भर्ती अभियान चलाने का काम सेना करती है सेना की जब किसी एक यूनिट या बटालियन की भर्ती होती है तो वह कुछ सौ या हजारों की भर्ती करती है, उस प्रक्रिया में भी लम्बा वक्त लगता है, लेकिन पतंजलि संस्थान द्वारा मात्रा 15 दिनों में एक बड़ी स्वावलम्बन (भर्ती) योजना चलाते हुए 11000 से अधिक लोगों को एक साथ पूरे देश में रोजगार उपलब्ध करवाया गया।

मल्टीनेशनल कम्पनियाँ जब भारत के बारे में बात करती हैं या कोई व्यापार की योजना बनाते हैं तो वह भारत को एक बाजार के रूप में देखते हैं, लेकिन पतंजलि एक ऐसी संस्था है जिसके लिए पूरा भारत एक बाजार नहीं, बल्कि परिवार है। पतंजलि द्वारा व्यापार या कारोबार नहीं किया जाता बल्कि परोपकार का काम किया जाता है।

पतंजलि द्वारा केवल ‘सामान’ ही नहीं बनाया जाता, बल्कि ‘अच्छे इंसान’ बनाने का कार्य भी होता है। जितनी मल्टीनेशनल कम्पनियाँ हैं उन सबके मालिक कोई एक व्यक्ति या एक परिवार या उसके पार्टनर्स या शेयरहोल्डर्स हैं जबकि पतंजलि एक ऐसी संस्था है जिसका मालिक कोई एक व्यक्ति या एक परिवार नहीं है बल्कि देश के 130 करोड़ लोग है। विदेशी कम्पनियों का कच्चा माल (राॅ-मैटेरियल) किसी कारखाने से आता है या केमिकल के रूप में होता है लेकिन पतंजलि एक ऐसी कम्पनी है जिसका कच्चा माल (राॅ-मैटेरियल) तो जंगल से आता है देश का गरीब आदिवासी, वनवासी उसको लेकर आता है या किसान के खेत से आता हैं।

अपने देश में लगभग तीस लाख पंजीकृत सामाजिक संस्थान (रजिस्टर्ड एनजीओ) कार्य करते हैं उनमें से कुछ तो सेवा का प्रामाणिक कार्य करते हैं लेकिन अधिकतर दिखावटी कार्य करते हैं। अधिकतर संस्थाएँ किसी एक क्षेत्र में सेवा कार्य करती है, आज यदि हम पतंजलि योगपीठ के सेवा कार्यों का मूल्यांकन करंे तो कई लाख संस्थाओं (एनजीओ) के बराबर अनेकों क्षेत्रों में सेवा करने का कार्य अकेला पतंजलि योगपीठ कर रही है।

यदि हम भारत के सबसे बड़े सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक संगठन की बात करें तो पतंजलि योगपीठ परिवार इस देश के 600 से अधिक जिलों में 5,000 से अधिक तहसीलों में और एक लाख से अधिक गांवों में विस्तृत रूप से सक्रियता से कार्य कर रहा है, देश में एक लाख से अधिक योग की कक्षाएं लगती हैं, रक्तदान, वृक्षारोपण, अनाथालय चलाने का कार्य, विद्यालय चलाने का कार्य, धर्मशाला चलाने का कार्य, योग-आयुर्वेद पर रिसर्च करने की सेवा, शहीदों का सम्मान करने का कार्य, आपदा राहत सेवा, निःशुल्क लंगर चलाने का कार्य आदि हजारों सेवा के कार्य हैं जिनका राष्ट्रीय स्तर पर पतंजलि के द्वारा संचालन हो रहा है। पहले हमारे शहीदों ने, क्रांतिकारियों ने, महर्षि दयानन्द जी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से लेकर स्वामी विवेकानन्द और उसके बाद वीर सावरकर, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, शहीद भगत सिंह और महात्मा गांधी ने स्वदेशी का दर्शन दिया, उस स्वदेशी के दर्शन को प्रामाणिकता और व्यावहारिकता के साथ धरातल पर उतारने का कार्य आजादी के 70 वर्षों के बाद यदि किसी संस्था या किसी व्यक्तित्व ने किया है तो वह पतंजलि और परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने किया है।

महात्मा गांधी के दो प्रमुख सिद्धांत थे एक अहिंसा का सिद्धांत और दूसरा आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए ट्रस्टीशिप के सिद्धांत। देश के लोगों की गरीबी को दूर करने के लिए, आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए और सभी भारतवासियों को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार देने के लिए, भारत के अंतिम गांव व अंतिम व्यक्ति का विकास करने के लिए महात्मा गांधी ट्रस्टीशिप के सिद्धांत के ऊपर विशेष बल देते थे। ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त यह कहता है कि सारा धन, सम्पत्ति किसी एक व्यक्ति की नहीं, अपितु समाज की है इसलिए धनवान व्यक्ति, उद्योगपति अपनी सम्पत्ति को स्वेच्छा से अपने प्रयोग के लायक रखकर बाकि समाज की सेवा में लगा दें। अपनी सम्पत्ति को देश के लोगों की सेवा में प्रयोग के लिए आजादी के बाद 1967 में सबसे पहले डाॅक्टर राम मनोहर लोहिया ने इंडियन ट्रस्टीशिप बिल संसद में रखा था। यह बिल किसी कारण से पास नहीं हो पाया, उसके बाद 1967 में ही जाॅर्ज फर्नांडिस ने तथा लोहिया जी ने इसी बिल को संसद में रखा। लेकिन तब भी यह पास नहीं हो पाया, फिर 1974 में राज्यसभा में श्री भैंरो सिंह शेखावत जी ने यह बिल रखा, फिर इसी विधेयक को 1975 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने और 1978 में श्री अर्जुन सिंह भदोरिया जी ने इस बिल को रखा, लेकिन इस बिल को पास नहीं करवाया जा सका, और गाँधी जी जैसा भारत बनाना चाहते थे वैसा भारत बनाने का सपना आजादी के 70 सालों बाद भी अधूरा रहा।

गाँधी जी के ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त को भारत में आजादी के बाद पहली बार पतंजलि आयुर्वेद कम्पनी ने धरातल पर उतारा है और यह संकल्प लिया है कि पतंजलि आयुर्वेद से जो लोग जुड़े हुए हैं वह मात्र उसके ट्रस्टी हैं और इस कम्पनी की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी देश के 130 करोड़ लोग हैं। जब हम भारत के अंदर, जितने व्यापारिक प्रतिष्ठान या कम्पनियां काम कर रही हैं उनकी बात करते हैं तो पाते है कि भारत में लगभग 16,00,000 कम्पनियां काम करती हैं उन 16,00,000 कम्पनियों में से एक कम्पनी भी ऐसी नहीं है जिसका संकल्प हो कि हम अपना सौ प्रतिशत मुनाफा केवल चैरिटी या सेवा के कार्यों में लगाएंगे। पतंजलि योगपीठ ऐसी कम्पनी, ऐसी संस्था या ऐसा परिवार है जिसका संकल्प है कम्पनी का सम्पूर्ण लाभांश केवल और केवल देश के लोगों की भलाई में लगाएंगे। वर्षों तक भारत में टूथपेस्ट को कोलगेट के नाम से जाना जाता रहा अर्थात् टूथपेस्ट का मतलब कोलगेट हो गया था। उस टूथपेस्ट के मतलब को दंतकांति करने का काम पतंजलि योगपीठ ने किया है आज जब टूथपेस्ट की बात होती है तो देश के करोड़ों लोगों की पहली पसंद केवल दंतकांति होती है कोलगेट नाम की कम्पनी 1937 में मात्र डेढ़ लाख रुपये की पूंजी लेकर भारत में आई थी और आज प्रतिवर्ष वह 4,000 करोड़ रुपये से अधिक धन भारत के लोगों से दोहन कर लेती है, आज कोलगेट को पछाड़कर भारत में दंतकांति प्रथम स्थान का ब्रांड बना हुआ है अर्थात् विदेशी कम्पनी ने जो 80 वर्षों में किया वही कार्य पतंजलि ने 10 गुना ज्यादा स्पीड से ग्रोथ करते हुए मात्र 8 वर्षों में प्राप्त किया। पतंजलि में कोई नौकर नहीं होता, यहाँ पर जो सेवा देते हैं वह कर्मयोगी या स्वयंसेवक होते हैं, जो मात्र आजीविका के लिए कार्य नहीं करते, बल्कि इस कार्य को सेवा समझकर करते हैं। पतंजलि का उद्देश्य प्राॅफिट कमाना नहीं है बल्कि पतंजलि देश के लोगों की प्यूरिटी व चैरिटी के लिए काम करता है पतंजलि की यात्रा अर्थ से परमार्थ की यात्रा है, और पतंजलि का उद्योग भी कोई सामान्य उद्योग नहीं, एक प्रकार का योग है। पतंजलि का मालिक कोई अमीर व्यक्ति नहीं बल्कि पतंजलि का संचालन एक फकीर करता है। किसी कम्पनी का नाम नहीं बल्कि आर्थिक क्रांति का नाम पतंजलि है।

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