आयुर्वेदामृत
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद स शनैर्हितमादद्यादहितं च शनैस्त्यजेत्।         हितकर पदार्थों को सात्म्य करने के लिए धीरे-धीरे उनका सेवन आरम्भ करना चाहिए तथा अहितकर पदार्थों का धीरे-धीरे परित्याग कर देना चाहिए। इस प्रकार ये सात्म्य हो जाते हैं। किसी पदार्थ का निरन्तर व दीर्घकाल तक...
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आयुर्वेद अमृत

आयुर्वेद अमृत        स्वच्छतापूर्ण भोजन- पवित्र पात्रों व पवित्र स्थान में भोजन करना चाहिए। स्वयं भी स्नान आदि द्वारा पवित्र होकर भोजन करना चाहिए। इससे व्यक्ति संतुष्टि प्राप्त करता है तथा शरीर को आह्लाद व पोषण मिलता है। जो इष्ट न हो...
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आयुर्वेद अमृत

आयुर्वेद अमृत स्वच्छतापूर्ण भोजन- पवित्र पात्रों व पवित्र स्थान में भोजन करना चाहिए। स्वयं भी स्नान आदि द्वारा पवित्र होकर भोजन करना चाहिए। इससे व्यक्ति संतुष्टि प्राप्त करता है तथा शरीर को आह्लाद व पोषण मिलता है। जो इष्ट न हो...
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद रूक्ष भोजन न करना- रूक्ष भोजन से विष्टम्भ,  उदावर्त,  विवर्णता व ग्लानि होती है तथा मात्रा से अधिक खाया जाता है। रूक्ष भोजन से वायु का प्रकोप तथा जलीय अंश के अभाव में मूत्र का अवरोध हो जाता है।   अतिस्निग्धाशिनस्तन्द्रीतृष्णाजीर्णोदरामयाः।...
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण  का स्वरूप कारण व भेद रूक्ष भोजन न करना- रूक्ष भोजन से विष्टम्भ] उदावर्त] विवर्णता व ग्लानि होती है तथा मात्रा से अधिक खाया जाता है। रूक्ष भोजन से वायु का प्रकोप तथा जलीय अंश के अभाव में मूत्र का अवरोध हो जाता...
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण  का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण  का स्वरूप, कारण व भेद रक्तप्रकोपं तैमिर्यं तृष्णां दुर्बलशुक्रताम्। पालित्यं बलहानिं च कुर्याल्लवणसात्म्यता।।           लवण रस की सात्म्यता रक्तप्रकोप (रक्तपित्त की अधिकता, खून में गर्मी का बढ़ना), तिमिर, रोग, तृष्णा (अति प्यास) करती है। इससे शुक्र की दुर्बलता, पालित्य (केशों का...
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद सुखस्पर्शविहारं च सम्यगाप्नोत्यतोऽन्यथा।।         इस रीति से सुखपूर्ण व स्वास्थ्यवर्द्धक विहार सम्पन्न होता है, अन्यथा नहीं । अतिस्निग्धातिशुष्काणां गुरूणां चातिसेवनात्। जन्तोरत्यम्बुपानाच्च वातविण्मूत्रधारणात्।। रात्रौ जागरणात् स्वप्नाद्दिवा विषमभोजनात्। असात्म्यसेवनाच्चैव न सम्यक् परिपच्यते।।     अतिस्निग्ध व अतिशुष्क पदार्थों का सेवन करने से, गुरु...
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद एकरस भोजन न करना- सदा एक ही रस वाला भोजन करने से दुर्बलता तथा अदृढत्व अर्थात् शरीर में शिथिलता हो जाती है। इसके विपरीत ऋतु अनुसार समुचित रूप से सब रसों वाला भोजन करने से दोषों की वृद्धि पर नियंत्रण...
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद तथैव क्षीरसात्म्यस्य परं चैतद्रसायनम्। दृढोपचितगात्राश्च निर्मेदस्को जितश्रमः।।       इसी प्रकार क्षीरसात्म्य व्यक्ति को भी उपरोक्त गुण प्राप्त होते हैं। क्षीर ;दूध्द्ध परम रसायन होता है। इसका सेवन करने वाला व्यक्ति दृढ़ व पुष्ट शरीर वाला, मोटापे से रहित व...
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद अजीर्ण का स्वरूप-                                 अविपक्वोऽग्निमान्द्येन यो रसः स निगद्यते।                                                                                             रोगाणां प्रथमो हेतुः सर्वेषामामसंज्ञया।।                                                                                                                                                                                                                                      -(योगरत्नाकर, अजीर्णनिदाराम्-1)       जठराग्नि की मन्दता के कारण अपक्व (बिना पचा) आहार रस ‘आम’ कहलाता है, जो आमाशय-स्थित होता है। यह ‘आम...
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आयुर्वेद अमृतआयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण  का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद अमृतआयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण  का स्वरूप, कारण व भेद एकरस भोजन न करना- सदा एक ही रस वाला भोजन करने से दुर्बलता तथा अदृढत्व अर्थात् शरीर में शिथिलता हो जाती है। इसके विपरीत ऋतु अनुसार समुचित रूप से सब रसों वाला भोजन करने से दोषों की वृद्धि पर नियंत्रण...
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आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद सुखस्पर्शविहारं च सम्यगाप्नोत्यतोऽन्यथा।। इस रीति से सुखपूर्ण व स्वास्थ्यवर्द्धक विहार सम्पन्न होता है, अन्यथा नहीं । अतिस्निग्धातिशुष्काणां गुरूणां चातिसेवनात््। जन्तोरत्यम्बुपानाच्च वातविण्मूत्रधारणात्।। रात्रौ जागरणात् स्वप्नाद्दिवा विषमभोजनात्। असात्म्यसेवनाच्चैव न सम्यक् परिपच्यते।।   अतिस्निग्ध व अतिशुष्क पदार्थों का सेवन करने से, गुरु...
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