भारत रत्न स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के स्वर्गवास पर

भारत रत्न स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के स्वर्गवास पर

नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी इन्डोर स्टेडियम में आयोजित सार्वजनिक प्रार्थना सभा में परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज का दिव्य वक्तव्य….. आदरणीय अटल जी कहा करते थे ‘मैं जी भरके जिया, मैं मन से मरूँ। और इस मौत से क्यूँ डरूँ, क्योंकि मैं दोबारा आने वाला हूँ।’ उन्होंने गीता के इस शाश्वत संदेश ‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्युध्र्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।’ को जीते हुए भारत माता का गौरव बढ़ाया और युगों-युगों के लिए आदर्शों की ऐसी शृंखला खड़ी कर दी है कि भारत का अस्तित्व जहाँ तक…

नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी इन्डोर स्टेडियम में आयोजित सार्वजनिक प्रार्थना सभा में परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज का दिव्य वक्तव्य…..

आदरणीय अटल जी कहा करते थे ‘मैं जी भरके जिया, मैं मन से मरूँ। और इस मौत से क्यूँ डरूँ, क्योंकि मैं दोबारा आने वाला हूँ।’ उन्होंने गीता के इस शाश्वत संदेश ‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्युध्र्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।’ को जीते हुए भारत माता का गौरव बढ़ाया और युगों-युगों के लिए आदर्शों की ऐसी शृंखला खड़ी कर दी है कि भारत का अस्तित्व जहाँ तक रहेगा, उनके आदर्श और मर्यादाओं को यह देश याद करता रहेगा। ऐसे गौरवशाली व्यक्ति के, ऐसे महामानव युगपुरुष, राष्ट्रपुरुष के महाप्रयाण पर आज हम इस शोक सभा में नहीं बल्कि इस गौरव सभा में साक्षी होकर बैठे हैं। हमारा यह जीवन धन्य हुआ। किताबों के आदर्श चाहे वो वेद, गीता, पुराण, कुरान में हैं, वे हमें उतनी शिक्षा नहीं दे पाते है, जितनी कोई व्यक्ति अपने जीवन से दे जाता है। ‘मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्, कीर्तिर्यस्य स जीवति मधुमन्मे निक्रमणं मधुमन्मे परायणं, वाचा वदामि मधुमद् भूयासं मधुसन्दृशः’ ऐसी वेद की ऋचाओं को जिन्होंने अपने जीवन में उतारा और इस राष्ट्र को गौरव प्रदान किया अपने जन्म से, जीवन से, व्यक्तित्व से, कर्तृत्व से, अपने चरित्र से, ऐसे उस महापुरुष को हम शत-शत नमन करते हैं।

मैं जब हरिद्वार में 25 वर्ष पहले आया था तब मैंने उनका एक भाषण सुना और कुछ वर्षों के बाद उन्होंने मुझे योग सीखने के बहाने से बुलाया और जाते समय मुझसे कहा- ‘स्वामी जी थोड़ा दूध पी लो’। मैंने कहा ‘मैं भैंस का दूध नहीं पीता’। उनका एक-एक शब्द हमें सीख देता है, उन्होंने कहा ‘संन्यासी होकर के गाय और भैंस के दूध में भी भेदभाव और पक्षपात करते हो?’ मतलब उन्हें किसी प्रकार का डिस्क्रिमिनेशन स्वीकार नहीं था। जैसा कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा, राजनैतिक अस्पृश्यता से लेकर समाज जीवन में चाहे वह दलितवाद हो, चाहे सामन्तवाद हो, चाहे पूँजीवाद हो, चाहे समाजवाद या साम्यवाद हो, इनके ऊपर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के हस्ताक्षर किसी ने किए है, तो वे वाजपेयी जी थे। वे सदा-सदा के लिए हमारे प्रेरणा के स्रोत रहेंगे। आज आप सब अपने आप को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं, मैं भी स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ कि इन आँखों ने उनके दर्शन किए। उनके मार्गदर्शन पर चलने के लिए हम सब प्रतिबद्ध है। हम सब मिलकर उनके बताए हुए ज्ञान, निष्ठा और पुरुषार्थ से भारत माता को परम वैभवशाली बनायें। हम उनके दिव्य कर्तृत्व, व्यक्तित्व, दृष्टि और उदार हृदय को और उनकी दृढ़ता को प्रणाम करते हुए ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष के साथ उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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