सम्मान समारोहः योगऋषि ने कहा, वेद के नाम पर भेद करने वालों का हो बहिष्कार, वेद आधारित शिक्षा प्रणाली हो लागू
वेद को मजहब से ऊपर उठकर देखें: स्वामी जी नई दिल्ली। वेदों से ही भारत की भारतीयता है। वेद में सारी सृष्टि का विधान है। वेदों के अध्ययन से आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान, जीवन ज्ञान व सर्व विज्ञान का अध्ययन हो जाता है, इसलिए वेद के नाम पर भेद की बातें करने वाले लोगों का बहिष्कार किया जाना चाहिए। ये बातें योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज ने लोधी रोड़ स्थित चिन्मय मिशन हाॅल में आयोजित भारतात्मा अशोकजी सिंघल वैदिक पुरस्कार-2018 वितरण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि रहे। उन्होंने कहा कि कुरान व…
वेद को मजहब से ऊपर उठकर देखें: स्वामी जी
नई दिल्ली। वेदों से ही भारत की भारतीयता है। वेद में सारी सृष्टि का विधान है। वेदों के अध्ययन से आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान, जीवन ज्ञान व सर्व विज्ञान का अध्ययन हो जाता है, इसलिए वेद के नाम पर भेद की बातें करने वाले लोगों का बहिष्कार किया जाना चाहिए। ये बातें योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज ने लोधी रोड़ स्थित चिन्मय मिशन हाॅल में आयोजित भारतात्मा अशोकजी सिंघल वैदिक पुरस्कार-2018 वितरण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि रहे।
उन्होंने कहा कि कुरान व बाईबल में बहुत सी अच्छी बातें हैं। इन्हंे धार्मिक पुस्तक कहा जा सकता है, लेकिन इन्हें धर्मग्रन्थ नहीं कह सकते हैं। श्रद्धेय स्वामी जी महाराज ने कहा कि वेदों को मजहब के ऊपर उठकर देखना चाहिए। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को चाहिए कि वे देश में वेद आधारित शिक्षा प्रणाली लागू करें। वह गोहत्या रोकना भी सुनिश्चित करें। देश में बाईबल के बजाय वेदों के आधार पर कैलेंडर तैयार किए जाने चाहिए। श्रद्धेय स्वामी जी महाराज ने कहा कि देश के माननीय प्रधानमंत्री व महामहिम राष्ट्रपति वेद पर हाथ रखकर शासन करें तो वेद को संविधान में भी सम्मान प्राप्त होगा। हमारे देश में अगर मस्जिद में नमाज पढ़वाने वाले मौलवियों को सरकार वेतन दे सकती है तो वैदिकों को वेतन क्यों नहीं दिया जा सकता है। श्रद्धेय स्वामी जी महाराज ने वैदिक शिक्षा के लिए आजीवन काम करने के लिए विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष स्व. आशोक सिंघल जी की प्रशंसा की। सिंघल फाउंडेशन उदयपुर की ओर से आयोजित समारोह में भारतात्मा अशोक जी सिंघल वैदिक पुरस्कार-2018 प्रदान वितरित किए गए। पू. स्वामी गोविन्द गिरि जी महाराज ने कहा कि आज वेदों को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है, जिसके वे हकदार हैं। इन पुरस्कारों के जरिये वेदों को आम लोगों के बीच पुनः स्थापित करने का भी प्रयास किया जा रहा है, इसलिए वैदिकों को भी सम्मानित किया जाना जरूरी है। फाउंडेशन की ओर से आज पूरे देश में 34 वेद विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। वेदों को तो हमारे कंठ में जीवित रहना चाहिए। वैदिक होने का मतलब गरीब होना नहीं बल्कि तेजस्वी होना है। -साभारः जागरण