आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद

आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद

स्निग्धं प्रीणयते देहमूर्जयत्यपि पौरुषम्। करोति धातूपचयं बलवर्णौ दधाति च।। स्निग्ध भोजन– स्निग्ध भोजन शरीर को संतृप्त करता है, पौरुष को बढ़ाता है, धातुओं की वृद्धि करता है, बल बढ़ाता है तथा शरीर का वर्ण (रंग) निखारता है। सुमृष्टमपि नाश्नीयाद्विरुद्धं यद्धि देहिनः। प्राणानस्याऽऽशु वा हन्यात्तुल्यं मधुघृतं यथा।। अविरुद्धान्नभुक् स्वास्थ्यमायुर्वर्णं बलं सुखम्। प्राप्नोति, विपरीताशी तेषामेव विपर्ययम्।। अविरुद्ध भोजन- अच्छी प्रकार स्वादिष्ठ बनाया हुआ भी विरुद्ध भोजन नहीं करना चाहिए। विरुद्ध भोजन शीघ्र ही प्राणियों के प्राणों को नष्ट कर देता है, जिस प्रकार समान मात्रा में मधु और घृत का सेवन। अविरुद्ध…

स्निग्धं प्रीणयते देहमूर्जयत्यपि पौरुषम्।
करोति धातूपचयं बलवर्णौ दधाति च।।
स्निग्ध भोजन– स्निग्ध भोजन शरीर को संतृप्त करता है, पौरुष को बढ़ाता है, धातुओं की वृद्धि करता है, बल बढ़ाता है तथा शरीर का वर्ण (रंग) निखारता है।
सुमृष्टमपि नाश्नीयाद्विरुद्धं यद्धि देहिनः।
प्राणानस्याऽऽशु वा हन्यात्तुल्यं मधुघृतं यथा।।
अविरुद्धान्नभुक् स्वास्थ्यमायुर्वर्णं बलं सुखम्।
प्राप्नोति, विपरीताशी तेषामेव विपर्ययम्।।
अविरुद्ध भोजन- अच्छी प्रकार स्वादिष्ठ बनाया हुआ भी विरुद्ध भोजन नहीं करना चाहिए। विरुद्ध भोजन शीघ्र ही प्राणियों के प्राणों को नष्ट कर देता है, जिस प्रकार समान मात्रा में मधु और घृत का सेवन। अविरुद्ध अन्न का सेवन करने वाला व्यक्ति स्वास्थ्य, आयु, वर्ण, बल तथा सुख को प्राप्त करता है। इससे विपरीत विरुद्ध अन्न का सेवन करने वाला व्यक्ति उपर्युक्त गुणों से विपरीत स्थिति प्राप्त करता है, अर्थात् उसके आयु, वर्ण, बल तथा सुख का हृास हो जाता है।
शुचिपात्रोपचरणः शुचै देशे शुचिः स्वयम्।
भु´्जानो लभते तुष्टिं पुष्टिं तेनाधिगच्छति।।
नानिष्टैरमनस्यैर्वा विघातं मनसोच्र्छति?
तस्मादनिष्टे नाश्नीयादायुरारोग्यलिप्सया।।
स्वच्छतापूर्ण भोजन- पवित्र पात्रों व पवित्र स्थान में भोजन करना चाहिए। स्वयं भी स्नान आदि द्वारा पवित्र होकर भोजन करना चाहिए। इससे व्यक्ति संतुष्टि प्राप्त करता है तथा शरीर को आह्लाद व पोषण मिलता है। जो इष्ट न हो तथा मन को रुचिकर न हो, ऐसी रीति से आहार ग्रहण न करे, अन्यथा मन का विघात होता है। आयु तथा आरोग्य चाहने वाले व्यक्ति को ऐसे स्थान पर भोजन नहीं करना चाहिए जो इष्ट (मनोनुकूल) न हो।

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