पतंजलि की 25 वर्षों की सेवा, संघर्ष व साधना की ऐतिहासिक गौरवपूर्ण यात्रा
यद्यपि विगत 25 वर्षों के योगदान को व्यापक रूप से लिखा जाए तो पतंजलि एवं श्रद्धेय स्वामी जी के जीवन के एक-एक पहलु पर एक-एक महाग्रन्थ का निर्माण हो सकता है। फिर भी हम 25 वर्षों के पतंजलि के राष्ट्र मानवता व विश्व के लिए योगदान को 20 बिन्दुओं में संक्षेप में समेट रहे हैं। हमारे यहाँ सार व विस्तार रूप में दोनों ही प्रकार से शास्त्रों में सूत्रों, श्लोकों, मंत्रो व भाष्यों की रचना है। हम यहाँ सार रूप में मुख्य तथ्यों व सत्यों को प्रस्तुत कर रहे हैं…
यद्यपि विगत 25 वर्षों के योगदान को व्यापक रूप से लिखा जाए तो पतंजलि एवं श्रद्धेय स्वामी जी के जीवन के एक-एक पहलु पर एक-एक महाग्रन्थ का निर्माण हो सकता है। फिर भी हम 25 वर्षों के पतंजलि के राष्ट्र मानवता व विश्व के लिए योगदान को 20 बिन्दुओं में संक्षेप में समेट रहे हैं। हमारे यहाँ सार व विस्तार रूप में दोनों ही प्रकार से शास्त्रों में सूत्रों, श्लोकों, मंत्रो व भाष्यों की रचना है। हम यहाँ सार रूप में मुख्य तथ्यों व सत्यों को प्रस्तुत कर रहे हैं हमारा आह्वान है कि आप सभी पतंजलि के इस पुण्य अभियान, अनुष्ठान, आंदोलन को गंभीरता व प्रामाणिकता पूर्वक खुद जानें तथा लाखो-करोड़ों लोगों तक पतंजलि के योगदान को बताएं एवं पहुंचाएं। इससे करोड़ों लोग पूर्ण दृढ़ता से इस सदी के इस सबसे महान् आंदोलन से जुड़कर हमारी शक्ति व ऊर्जा बनेंगे और अन्ततः सब मिलकर एक दिव्य, भव्य, आध्यात्मिक भारत व आध्यात्मिक विश्व का निर्माण करने में समर्थ हो सकेंगे।
प्रथम ट्रस्ट की स्थापना-
5 जनवरी 1995, दिव्य योग मन्दिर ट्रस्ट की कनखल के कृपालु बाग आश्रम में विधिवत स्थापना हुई। साधनों की अत्यन्त न्यूनता होने पर भी साध्य के लिए पूर्ण पुरुषार्थ प्रथम दिन से रहा। लगभग एक एकड़ भूमि पर प्रथम ट्रस्ट की स्थापना हेतु पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) हेतु सर्किल रेट के अनुसार 20 हजार रुपए की राशि भी हमारे पास नहीं थी। उधार लेकर हमने ट्रस्ट की स्थापना की। च्यवनप्राश बनाने के लिए पात्र नहीं थे, ट्रस्ट चलाने के लिए पैसे नहीं थे, रहने के लिए कमरे नहीं थे, रसोई में गैस सिलेंडर नहीं था, स्टोव पर स्वयं भोजन बनाते थे, संकल्प, स्वधर्म-स्वकर्मनिष्ठा तो पूरी थी लेकिन साधन के रूप में साइकल व एक पुराना सा स्कूटर 5 हजार में देहरादून से खरीदा था। बाद में वो भी चोरी हो गया था। देश में कोई जान-पहचान न थी। आश्रम की कोई शिष्य परम्परा न थी। छोटे से भवन में लगभग 20 किराएदार। 10-20 रुपये किराया देते थे। 100-200 रुपये की स्थाई आमदनी और 10-15 हजार रुपये का मासिक खर्चा क्योंकि 10-15 ब्रह्मचारी, 5-7 गोमाता की सेवा आदि, ये क्रम प्रारम्भ से ही रहा। औषधालय, गोशाला, यज्ञशाला, वेदशाला एवं योगशाला आदि साधनों के अभाव में भी ये साधना निरन्तर चल रही थी। पूज्य श्रद्धेय स्वामी शंकरदेव जी का आशीष, पूज्य स्वामी जी महाराज का मार्गदर्शन व दिव्य नेतृत्व, पूज्य स्वामी मुक्तानन्द जी का परम तप व पुरुषार्थ, पूज्य आचार्य श्री कर्मवीर जी का सहयोग, पूर्वजों की पुण्याई एवं सबकी भलाई- ये सब क्रम चलता रहा है अन्ततः भगवान् के परम अनुग्रह से एक एकड़ भूमि से प्रारम्भ हुई सेवा यात्रा आज हजारों एकड़ भूमि पर सेवा साधना के दिव्य प्रकल्प तथा विश्वव्यापी योगायुर्वेद, स्वदेशी एवं वैदिक संस्कृति की गौरवपूर्ण प्रतिष्ठा से आत्मगौरव, स्वधर्म गौरव एवं स्वराष्ट्र गौरव व स्वाभिमान से आत्म संतोष है। दादा गुरु पूज्य कृपालुदेव जी महाराज के दिव्य संकल्प से क्रांतिकारियों की पुण्य भूमि रहा कृपालुबाग आश्रम का सात्विक गौरव आज करोड़ों देशवासियों की प्रेरणा व स्वाभिमान है। परम पूज्य श्रद्धेय गुरुदेव श्री प्रद्युम्न जी महाराज व पूज्य गुरुदेव आचार्य बलदेव जी महाराज को अपने शिष्यों के कत्र्तृत्व चरित्र व नेतृत्व पर गौरव होता है।
श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की संन्यास दीक्षा-
रामनवमी 9 अप्रैल, 1995 को पूज्य स्वामी जी संन्यास दीक्षा श्रद्धेय स्वामी शंकरदेव जी के आशीर्वाद व अनुग्रह से सम्पन्न हुई। पूज्य गुरुदेव प्रद्युम्न जी महाराज ने संन्यासदीक्षा यज्ञ कराया। हर की पौड़ी पर शिखासूत्र का विसर्जन कर लोकेषणा, पुत्रैषणा एवं वित्तैषणा से मुक्त होकर सर्वभूतो का अभयदान देने के संकल्प के साथ आत्म कल्याण एवं विश्व कल्याण के पथ पर निकल पड़े। योग, यज्ञ व वेदमय आध्यात्मिक भारत एवं आध्यात्मिक विश्व के संकल्प से सबको समानता, समृद्धि, संस्कार, सर्वविध स्वाधीनता, देवत्व व ऋषित्व मिले, यही एकमात्र ध्येय है हमारा। सब प्रकार के भेदभाव, हिंसा, झूठ, अन्याय, दुराचार, भ्रष्टाचार, दुःख, दरिद्रता, दुर्गुण, दोष व अशान्ति से मुक्त एक पूर्ण सभ्य, पूर्ण सुखी, पूर्ण समृद्ध संस्कारवान् व्यक्ति, समाज, राष्ट्र व विश्व का निर्माण हो, यह अभियान है पतंजलि संस्था व विश्वव्यापी संगठन का। योग धर्म, अध्यात्म धर्म, मानव धर्म, स्वधर्म, राष्ट्रधर्म व विश्वधर्म हमारा दिव्य कर्म या निष्काम कर्म है।
एक हजार संन्यासी बनाने का दिव्य संकल्प-
श्रद्धेय स्वामी जी प्रथम दिन से ही कहते रहे हैं कि हमें अपने महान् पूर्वज ऋषि-ऋषिकाओं, वीर-वीरांगनाओं के सपनों का एक दिव्य व भव्य भारत बनाना है। इस महान् दिव्य ईश्वरीय कार्य हेतु एक हजार से अधिक विद्वान् धर्मात्मा, दिव्य साधु-साध्वी या संन्यासी एवं संन्यासिनियों को तैयार करना है। लगभग 100 संन्यासी तैयार हो चुके हैं तथा 500 के लगभग भाई-बहनों की तैयारी चल रही है। आने वाले 5 से 10 वर्षों में यह दिव्य कार्य सम्पन्न होगा। अपना सर्वांगीण विकास करके, सर्वस्व त्याग करके, आत्मनः मोक्षार्थ जगद्हिताय च का यह पावन अभियान वैदिक गुरुकुलम् एवं वैदिक कन्या गुरुकुलम् के माध्यम से चल रहा है। एक संन्यासी द्वारा देश, धर्म, संस्कृति, मानवता व विश्व के लिए क्या हो सकता है, इसका जीवन्त उदाहरण व आदर्श पूज्य स्वामी जी हैं तथा ऐसे ही लाखों-करोड़ों पूर्वज संन्यासी हुए हैं, उसी से ये वैदिक धर्म व संस्कृति आज भी सर्वश्रेष्ठ रूप में विद्यमान है। एक तरफ महान् संन्यास परम्परा, दूसरी तरफ लाखों दिव्य साधक योगी कार्यकत्र्ता भाई-बहन व करोड़ों योगप्रेमी राष्ट्रभक्त समर्थक, श्रद्धालु दिव्य आत्माओं के सहयोग, समर्थन व आशीर्वाद से यह ईश्वरीय दिव्य सेवा साधना का पुण्य अनुष्ठान निरन्तर आगे बढ़ रहा है।
हिमालय साधना-
श्रद्धेय स्वामी जी महाराज सहित हम सभी गुरुकुल की विद्या साधना के उपरान्त आध्यात्मिक जीवन के परमोत्कर्ष के लिए योग साधना हेतु गंगोत्री के गुफा-कन्दराओं में घनघोर तपस्या हेतु लगभग 5 वर्ष इस साधना का एक महत्वपूर्ण क्रम चलता रहा। इसी दौरान गंगोत्री में एक आश्रम भी ट्रस्ट द्वारा क्रय किया गया, अभी शीघ्र ही उसे भव्य स्वरूप देना है। गंगोत्री से लेकर गोमुख व तपोवन में योग-साधना की दिव्य अनुभूतियां एवं ईश्वरीय दिव्य प्रेरणाएँ, आशीषानुग्रह आज भी हमारा बहुत बड़ा संबल है। पूर्ण ईश्वर प्रणिधान, योग-साधना, मौन, जप, तप, ध्यान, समाधि एवं भिक्षावृत्ति में रहकर आत्मवृत्ति में रहना ही एकमात्र गंगोत्री की दिनचर्या होती थी। योगधर्म से स्वधर्म, राष्ट्रधर्म एवं सेवाधर्म का सूत्रपात गंगोत्री से ही प्रारम्भ हुआ।
दिव्य फार्मेसी की स्थापना-
1995 में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना के साथ ही दिव्य फार्मेसी का भी पंजीकरण हमने कराया। अत्यन्त अल्प संसाधनों में भी साधना एवं साध्य हमारे सम्मुख सदा बना रहता था। हाथ से खरल में दवा घोटना, हमामदस्ता में दवा कूटना, हाथ से गोली व पुड़िया बनाना, किराए के पतीलों में च्यवनप्रास बनाना, पूज्य स्वामी विष्णुदास जी, गुरुनिवास आश्रम, कनखल से उधार लेकर एवं स्वर्गीय श्रीरामनिवास गर्ग, माॅडल टाऊन दिल्ली एवं श्री जीवराजभाई पटेल, पं. देवीदत्त शर्मा व पंडित अखिलेश जी का सहयोग, पूज्य स्वामी मुक्तानन्द जी का प्रचंड पुरुषार्थ तथा श्री यशदेव शास्त्री जी, रामभरत जी, वीरेंद्र जी व पूज्य स्वामी अमलानन्द जी आदि सबने इस आयुर्वेद के ऋषिकर्म या ऋषिधर्म की प्रतिष्ठा में प्रारम्भ से बड़ा योगदान दिया। शून्य से प्रारम्भ होकर प्रथम कनखल आश्रम में, फिर इंडस्ट्रियल एरिया में ए-1, फिर पतंजलि फूड पार्क में दिव्य फार्मेसी का विश्व के सर्वश्रेष्ठ औषध निर्माण एवं अनुसंधान का दिव्य प्रकल्प संचालित हो रहा है।
योग का जनांदोलन-
किसी भी प्रकार का जनांदोलन एक बहुत बड़े पुरुषार्थ की अपेक्षा रखता है। कनखल, हरिद्वार में सन् 1993 में पूज्य स्वामी अमलानन्द जी त्रिपुरा योग आश्रम, कनखल में गंगा किनारे योगेश गुप्ता जी व बंसल जी (जूनियर इंजिनियर हरिद्वार विकास प्राधिकरण) दो लोगों से योग प्रशिक्षण प्रारम्भ हुआ। फिर कृपालु बाग आश्रम, दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट में पूज्य श्रद्धेय स्वामी शंकरदेव जी महाराज के आशीर्वाद से 100-200 लोगों का योग शिविर तथा सूरत के पास आदरणीय श्री जीवराजभाई पटेल के आमंत्रण व सहयोग से सार्वजनिक तौर पर पहली बार 1993 में ही आकार स्पोट्र््स क्लब, वराछा रोड़, सूरत में 9 दिन के योग-साधना एवं योग चिकित्सा शिविरों का विधिवत प्रारम्भ हुआ। 200 लोगों का योग प्रशिक्षण शिविर फिर 2 हजार लोगों का प्रशिक्षण शिविर रुड़ा भगत द्वारा जसदण, गुजरात में, उसके बाद दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में श्री रामनिवास गर्ग जी द्वारा पहले 10 हजार लोगों का देश का प्रथम सबसे बड़ा सार्वजनिक व सामूहिक योग शिविर और इसके बाद 10-20 तथा 50 हजार से लेकर अहमदाबाद में 5 लाख लोगों के योग शिविरों की अखण्ड योग यात्रा निरन्तर प्रवाहमान्् है। पूज्य मोरारी बापू जी कहते हैं, ‘विश्व इतिहास में पहली बार गुफा एवं ग्रन्थों से योग को बाहर लाकर मैदान में खड़ा कर दिया और लाखों-करोड़ों लोगों की जीवन पद्धति बन गया योग।’ जन-जन व घर-घर तक और बाद में विश्वभर में योग की प्रतिष्ठा आगे बढ़ी। धीरे-धीरे योग का व्यापक स्वरूप विश्व के सामने आया। योग चिकित्सा पद्धति, साधना पद्धति एवं जीवन पद्धति से लेकर विश्व के सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि व शान्ति का आधार बन रहा है। सच्चे अर्थों में यदि वल्र्ड हैल्थ, वल्र्ड पीस-हर्मनी, हैप्पीनेस का कोई वैज्ञानिक निर्दोष मार्ग है, तो वह योग ही है। पूज्य स्वामी जी महाराज बार-बार कहते हैं कि मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना व संकल्प है कि देश व दुनिया का हर एक व्यक्ति भोर में उठकर सबसे पहले योग करे, उसके बाद कर्मयोग करे तो दुनिया की सभी समस्याओं का सहज ही समाधान हो जाएगा।
प्रातः योग करने वाले व्यक्ति की चेतना ऊध्र्वारोहण हो जाती है। वह व्यक्ति निम्न चेतना से ऊपर उठकर उच्च, दिव्य आत्मचेतना, गुरु, ऋषि या भागवत् चेतना में जीने लगता है। वह योगस्थ होकर योगधर्म के साथ अपने स्वधर्म, राष्ट्रधर्म एवं मानवधर्म व विश्वधर्म का प्रामाणिकता पूर्वक निर्वहन करता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में यम-नियमों का पालन सहज रूप से होने लगता है। दिव्य जीवन या योगमय सात्विक जीवन उस योग साधक का स्वभाव बन जाता है। जब साधक अष्टांग योग की साधना करेगा तो उसके जीवन में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह ये यम तथा शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्रणिधान- ये नियम उसका स्वभाव बन जाएंगे।
स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते। -गीता (8/3)
मूलतः मनुष्य का स्वभाव या मूल प्रकृति अध्यात्म ही है। योग एवं अध्यात्म ही भारत की मूल प्रकृति व संस्कृति है। यही योगधर्म व योग संस्कृति शब्दान्तर, वैदिक धर्म या वैदिक संस्कृति है। समाज, राष्ट्र एवं विश्व में व्याप्त हिंसा, युद्ध, अपराध, झूठ, बेईमानी, दुराचार, अनाचार, भ्रष्टाचार, अशुचिता, असंतोष, विलासिता, आत्मविमुखता, नास्तिकता, नशा, हत्या, आत्महत्या, अवसाद, तनाव, अन्याय, शोषण, असमानता व समस्त संघर्षों को हम दूर करना चाहते हैं तो एकमात्र निर्दोष, निर्विवादित, अव्यवसायिक (बिना मूल्य), गैर राजनैतिक, पंथ निरपेक्ष, सार्वभौमिक, सार्वकालिक, वैज्ञानिक एवं सर्वहितकारी उपाय साधन, साधना या समाधान योग ही है। योगाभ्यास का जीवनचर्या में समावेश से लेकर योग चिकित्सा, योग अनुसंधान, योगमय आहार, विचार, वाणी, व्यवहार व स्वभाव बनाने के लिए हम निरन्तर प्रयत्नशील हैं। वहीं योग के मानकीकरण, सर्टिफिकेशन, योगाभ्यास की एकरूपता, शिक्षा, चिकित्सा, सेवा, पुलिस एवं विविध सरकारी व गैर सरकारी व्यवस्था तंत्र में योग के समावेश से लेकर इन्टरनेशनल योगासन स्पोर्ट्स फेडरेशन के माध्यम से ओलम्पिक से लेकर सभी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय खेलों व प्रतियोगिताओं में योगासनों के माध्यम से योग तत्त्व के बीजारोपण का कार्य चल रहा हैं संक्षेप में योग पतंजलि योगपीठ का मूल तत्व है। योग के सर्वविध प्रचार-प्रसार से लेकर योग की व्यापक प्रतिष्ठा के लिए हम प्रामाणिकता के साथ पुरुषार्थ कर रहे हैं और अनन्तकाल तक ये योग के अनन्त की यात्रा चलती रहेगी, ऐसी प्रामाणिक सुदृ़ढ़ आधारशिला हमने तैयार की है।
मीडिया का सबसे बड़ा सदुपयोग-
पाॅवर एवं प्रचार के आधार पर दुनिया में किसमें कितना दम है, उसकी हैसियत, औकात तय होती है या मूल्यांकन के ये दो बड़े मापदण्ड हंै। पाॅवर माने शक्ति और शक्ति में क्रमशः धनशक्ति, जनशक्ति, राजशक्ति, सैन्यशक्ति, ज्ञान-विज्ञान शक्ति, प्रतिभा शक्ति, संसाधन शक्ति एवं साधना की शक्ति अर्थात् आध्यात्मिक शक्ति आदि प्रमुख हैं तथा मीडिया में इलैक्ट्रोनिक मीडिया, प्रिन्ट मीडिया, सोशल मीडिया एवं माउथ मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका होती है। एक ओर हमने शक्ति साधना की है तथा दूसरी ओर सर्वप्रथम प्रचार के दो सबसे बड़े तंत्रों का व्यापक रूप से सदुपयोग किया। एक इलोक्ट्राॅनिक मीडिया में आस्था व संस्कार तथा दूसरा माउथ पब्लिसिटी से योग, आयुर्वेद एवं स्वदेशी का संदेश एवं सच्चाई को घर-घर व जन-जन तक हमने पहुंचाया। इसके बाद सोशल मीडिया एवं प्रिंट मीडिया भी इस आंदोलन से जुड़े। सन् 2000 में सर्वप्रथम संस्कार पर सायंकाल 6.45 पर 20 मिनट का योग का कार्यक्रम अत्यन्त अल्प संसाधनों के साथ प्रारम्भ किया, इसके बाद 2001 में आस्था पर 9 बजे 20 मिनट, सितम्बर 2003 के छत्रसाल स्टेडियम दिल्ली के शिविर का पहली बार थोड़े व्यवधान के साथ सीधा प्रसारण संस्कार पर हुआ तथा 2004 में राजकोट, गुजरात से आस्था चैनल पर प्रातः 5 से 8 बजे योग शिविरों का सीधा प्रसारण प्रारम्भ हुआ जो अभी तक चल रहा है। आस्था पर ही प्रातः 7.30 बजे तथा सायंकाल 9 बजे जड़ी-बूटियों पर कार्यक्रम प्रसारित हुआ। जिससे करोड़ों लोगों तक योग के आयुर्वेद का संदेश भी एक आंदोलन की तरह पहुंचा। देश के दो सबसे बड़े एवं विश्वसनीय धार्मिक चैनल आस्था एवं संस्कार के स्वामित्व एवं संचालन उत्तरदायित्व हमने अपने हाथों में लिया। आज आस्था भजन, वैदिक, अरिहन्त, आस्था इन्टरनेशनल, आस्था तमिल-तेलुग-कन्नड़ के रूप में बहुत बड़ा विस्तार पा चुका है, वहीं संस्कार सत्संग, शुभ एवं संस्कार इन्टरनेशनल की पहुंच देश-दुनिया के करोड़ों लोगों तक हो चुकी है, वहीं संस्कार सत्संग, शुभ एवं संस्कार इन्टरनेशनल की पहुंच देश-दुनिया के करोड़ों लोगों तक हो चुकी है। सोशल मीडिया में फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, इन्स्ट्राग्राम आदि पर 2 करोड़ से अधिक लोग हमें फोलो करते हैं। न्यूज चैनल मनोरंजन चैनलों एवं प्रिन्ट मीडिया में भी एक बहुत बड़ी रीच पतंजलि की है। दूसरी तरफ बुरी ताकतों ने संगठित रूप से पतंजलि के सन्दर्भ में दुष्प्रचार करने में पूरी ताकत झोंक रखी है। स्वार्थ, हठ, दुराग्रह, दुर्भावना एवं अहंकारादि के कारण देशी-विदेशी षड्यंत्रकारी ताकतें प्रायोजित रूप से अकूत धन-दौलत, झूठ एवं दुष्प्रचार के बल पर पतंजलि को तबाह करने पर तुली हुई हैं। क्योंकि पतंजलि एक व्यापार नहीं है, यह आयुर्वेद, स्वदेशी, भारतीय धर्म, दर्शन, अध्यात्म, संस्कृति, संस्कार एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान व सेवा का आधार है। हमारे लिए देश एक बाजार नहीं अपितु एक परिवार है। भारत एवं भारतीयता की विरोधी ताकतें बेवजह पतंजलि से घोर घृणा नफरत करती हैं। (स्वामी रामदेव, आचार्य बालकृष्ण या पतंजलि ने इन भारत, भारतीयता, वैदिक करना है) इससे देश व देशवासियों का धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक व आर्थिक तौर पर चाहे कितना भी लाभ हो, लेकिन पतंजलि को नुकसान पहुंचाना है, बदनाम करना है। यही एकमात्र ध्येय कुछ लोगों ने संगठित रूप से बना लिया है। निष्कर्ष के रूप में सभी राष्ट्रभक्त, सात्विक आत्माओं से हम आह्वान करते हैं कि हम सब पूर्ण संगठित होकर इस दुष्प्रचार का जवाब दें और पतंजलि के सेवा संकल्प एवं योगदान के बारे में पूरी ताकत से प्रचार करें। तीन प्रकार की प्रवृत्ति या सोच समाज की होती हैं। एक समर्थक, दूसरे विरोधी तथा तीसरे उदासीन। लगभग 80 प्रतिशत लोग उदासीन, तटस्थ या न्यूट्रल हैं। हमें इनको पतंजलि से जोड़ना है। आज देश व दुनिया में लगभग 80 प्रतिशत लोग योग एवं प्रकृति को पसंद करते हैं। इसके लिए हमें आप सब का पूर्ण सहयोग चाहिए।
योग संदेश-
पूरी दुनिया के अधिकांश ताकतवर या प्रभावशाली लोग विचारधारा के आधार पर बंटे हुए हंै। नकारात्मक, विध्वंसक, स्वार्थपूर्ण एवं भेदभाव, घृणामूलक विचारधारा, सिद्धांत व आदर्शों वाले लोग पूरी ताकत से अपनी विचारधारा के प्रचार-प्रसार व प्रतिष्ठा में लगे हैं। इसके विभिन्न तौर तरीके, उपाय, तंत्र व साधन उन लोगों ने स्थापित किए हैं। योग, आयुर्वेद, स्वदेशी, प्रकृति, वैदिक संस्कृति, संस्कार, सेवा, स्वाभिमान, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, अनुसंधान आदि राष्ट्रनिर्माण व पूरी मानवता के कल्याण में अनेक महान्् कार्य जो पतंजलि ने पूर्ण निःस्वार्थ भाव से एवं पूर्ण प्रामाणिकता से किए हैं। इन सबके बारे में निरन्तर अपडेट रहने तथा अपनी विचारधारा का राष्ट्र व विश्वव्यापी प्रचार करने के लिए पूरी ताकत से योग संदेश का भी विस्तार व प्रचार-प्रसार संस्था एवं संगठन से जुड़े भाई-बहन एक जिम्मेदारी के साथ करें। पतंजलि को हृदय से प्रेम करने वाले जो हमारे करोड़ों समर्थक हैं, उन सब तक हम निरंतर सम्पर्क, संवाद एवं सहयोग हेतु साथ ही संस्था की गतिविधियों और भावी योजनाओं की प्रमाणिक जानकारी हेतु योग संदेश के सदस्य स्वयं बनें तथा औरों को बनाएं। योग संदेश स्वाध्याय, अनुसंधान, स्वास्थ्य समाधान तथा सामाजिक मुद्दों पर मंथन व विमर्श, वैदिक संस्कृति, संस्कार, भारत एवं भारतीयता की विचारधारा का एक बहुत ही सशक्त साधन व माध्यम है। 2003 से 13 भाषाओं में आप सबके आशीर्वाद एवं सहयोग से निरंतर यह ज्ञान प्रवाह यशस्वी रूप से गतिमान है।
संगठन शक्ति एवं सेवा-
बड़े कार्यों का सम्पादन बिना संगठन शक्ति के नहीं हो सकता। अतः 2005 में पतंजलि योगपीठ के बड़े परिसर के बनने से पहले ही जब हरिद्वार में किराए पर कमरे लेकर आवासीय योग शिविर लगाते थे। तभी सबसे पहले पतंजलि योग समिति, फिर कार्यकर्ताओं एवं योग शिक्षक बहनों की योग सेवा को और अधिक गौरव व विस्तार देने हेतु महिला पतंजलि योग समिति, इसके उपरान्त योग के साथ राष्ट्रीय मुद्दों, कालाधन, भ्रष्टाचार एवं व्यवस्था परिवर्तन के लिए 2009 में भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना एवं भारत स्वाभिमान संगठन का देश के सभी जिलों में गठन हुआ। युवा शक्ति की भागीदारी एवं जिम्मेदारी के विस्तार देने के लिए युवा भारत तथा गांव व किसानों तक संगठन के विस्तार हेतु पतंजलि किसान सेवा समिति का गठन किया गया। भारत के नेपाली भाषा-भाषी भाई-बहनों की संगठित भागीदारी हेतु हाम्रो स्वाभिमान का गठन हुआ। देश के बाहर भी पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट एवं पतंजलि योग समिति का दुनिया के लगभग सभी बड़े देशों में सेवा कार्य चल रहा है। भारत के 600 जिलो, 5000 तहसीलों तथा लगभग 2.5 लाख गांवों में संगठन का विस्तार है। इसके माध्यम से लगभग 1 लाख निःशुल्क योग कक्षाओं की सेवा देश के लिए हो रही है। साथ ही रक्तदान, नेत्रदान, वृक्षारोपण, स्वच्छता अभियान, नशामुक्ति, छुआ-छूत, जात-पात एवं सभी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ संगठन की ओर से निष्काम सेवा का अभियान चलता रहता है। प्राकृतिक आपदाओं, बाढ़, भूकम्प तथा शहीदों के सम्मान की सेवा, गरीब की सेवा, विद्यार्थी, युवा संस्कार शिविर, कुदरती खेती एवं अन्य राष्ट्रहित के सभी मुद्दों पर संगठन ने राष्ट्रीय स्तर पर गौरवपूर्ण एतिहासिक कार्य किए हैं। एक देशभक्त आध्यात्मिक संगठन के रूप में राष्ट्र की सर्वविध प्रगति एवं खुशहाली के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक व आध्यात्मिक रूप से देश को आगे बढ़ाने के लिए हमारे लाखों कार्यकर्ता प्रामाणिकता से निःस्वार्थ सेवा दे रहे हैं। इन सब पर हमें अत्यंत गर्व है तथा आप करोड़ों देशवासियों का प्रत्येक आंदोलन में पूर्ण सहयोग एवं आशीर्वाद हमें सदा मिला है।
पतंजलि योगपीठ-
सन् 2000 के बाद जब हजारों लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए हरिद्वार आने लगे और कनखल आश्रम में स्थान कम पड़ने लगा, तो बहुत विचार-विमर्श करके हरिद्वार से पहले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पतंजलि योगपीठ की कार्य योजना को मूर्तरूप देने का निर्णय हुआ। जब योगपीठ का निर्माण प्रारम्भ हुआ तब भी न्यूनतम साधनों से हमने विश्व की योग की इस सबसे बृहत् एवं श्रेष्ठतम संस्था का निर्माण प्रारम्भ किया। आज हरिद्वार से लेकर मोदीनगर, दिल्ली, रांची, कोलकाता, गुवाहाटी, ऋषिकेश, देवप्रयाग (उत्तराखंड), काठमांडु (नेपाली), स्कोटलैंड एवं ह्यूस्टन (अमेरिका) आदि स्थानों पर पतंजलि योगपीठ की बड़ी संस्थाएं सेवारत हैं। सन् 2006 में पतंजलि योगपीठ के प्रथम चरण का कार्य सम्पन्न हुआ और इसके बाद से इसका राष्ट्र व विश्वव्यापी सेवा विस्तार निरन्तर गतिमान है। पतंजलि योगपीठ में लगभग 10 हजार लोगों के आवास, भोजन, उपचार एवं योग प्रशिक्षण की विश्वस्तरीय व्यवस्था है।
पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट (पी.आर.आई.)-
पीआरआई एवं पतंजलि रिसर्च फाउण्डेशन के माध्यम से विश्वस्तरीय अनुसंधान का कार्य पतंजलि में चल रहा है। विश्व में पहली बार एनिमल ट्रायल से लेकर ह्युमन ट्रायल तक एविडेंस बेस्ड मेडिसिन की ड्रग डिस्कवरी के प्रामाणिक कार्य का सम्पादन हम कर रहे हैं। पतंजलि ने यद्यपि प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से एक लाख लोगों को रोजगार दिया है। इसमें लगभग 500 वैज्ञानिक, एक हजार से अधिक आयुर्वेद के डाॅक्टर्स व स्काॅलर्स, सैकड़ों शिक्षाविद् आचार्यों एवं विद्वान् संन्यासियों की बहुत बड़ी भूमिका है। पी आर आई में ही एक विश्वस्तरीय औषधीय उद्यान भी है। अब तक सैकड़ो रिसर्च पेपर्स पतंजलि की ओर से इंटरनेशनल जनरल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। रिसर्च, एजुकेशन, योग एवं विशुद्ध वैदिक धर्म की प्रतिष्ठा- ये हमारे सबसे प्रथम लक्ष्य एवं सर्वोच्च प्राथतिकताएं हैं।
पतंजलि विश्वविद्यालय-
पतंजलि आयुर्वेद काॅलेज एवं पतंजलि विश्वविद्यालय में आज हजारों विद्यार्थियों को श्रेष्ठतम उच्च शिक्षा एवं संस्कार दिये जा रहे हैं। हरिद्वार में बहुत बड़े नये परिसर का निर्माण हो चुका है तथा एन.सी.आर. क्षेत्र में विश्व के सबसे बड़े एवं श्रेष्ठतम् विश्वविद्यालय के निर्माण की योजना है। जहाँ भारतीय वैदिक ज्ञान परम्परा से जुड़े सभी विषयों के साथ-साथ मेडिकल, इंजीनियरिंग, आर्ट एण्ड कल्चर, मीडिया, शिल्प-शास्त्र, साहित्य-संगीत एवं विविध कलाओं के पाठ्यक्रमों को विश्वस्तरीय मापदण्डों के अनुरूप पढ़ाया जाएगा। भारत माता व पूरी मानवता के कल्याण हेतु पतंजलि विश्वविद्यालय का यह अगला चरण हमारी सबसे बड़ी सेवा योजना है।
आचार्यकुलम् एवं पतंजलि गुरुकुलम्-
श्रेष्ठतम वैदिक शिक्षा के साथ श्रेष्ठतम् आधुनिक शिक्षा-दीक्षा एवं संस्कार देकर विश्व के श्रेष्ठतम नागरिक तैयार करना आचार्यकुलम् का लक्ष्य है। देश में सभी क्षेत्रों में एक सात्विक नेतृृत्व तैयार हो, यह संकल्प है हमारा और इसे हम पतंजलि विश्वविद्यालय, आचार्यकुलम् वैदिक गुरुकुलम्, वैदिक कन्या गुरुकुलम्, पतंजलि गुरुकुलम् के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं।
भारतीय शिक्षा बोर्ड के माध्यम से मैकाले की शिक्षा के स्थान पर शिक्षा का भारतीयकरण, आध्यात्मिकरण, आधुनिकीकरण एवं वैज्ञानिकीकरण का कार्य अब बहुत बड़े रूप में सम्पन्न होगा। 2006 में पतंजलि विश्वविद्यालय की स्थापना, 2010 में वैदिक गुरुकुलम्, 2013 में आचार्यकुलम्, 2017 में पतंजलि गुरुकुलम् की स्थापना तथा 2019 में भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन- ये योग क्रांति के बाद शिक्षा क्षेत्र में ऐतिहासिक क्रान्ति की आधारशिला तैयार करेंगे। प्राचीनकाल में भी भारत जब ज्ञानशक्तियों में सर्वोपरि था तब विश्वगुरु या विश्व की महाशक्ति था, आगे भी भारत को विश्वगुरु या परमवैभवशाली महाशक्ति बनाने की योग, अध्यात्म, संस्कार एवं वैज्ञानिकता पर आधारित शिक्षा की सर्वोपरि भूमिका रहने वाली है।
पतंजलि आयुर्वेद- योग से उद्योग, ऋषिकर्म से राष्ट्रधर्म तक-
विदेशी कम्पनियों की आर्थिक एवं सांस्कृतिक लूट व गुलामी से भारत को मुक्ति दिलाकर आर्थिक आजादी, भाषा, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती, खानपान एवं परिधान आदि जीवन के सभी क्षेत्रों में स्वदेशी को गौरव देकर साम्राज्यवाद एवं पंूजीवाद के स्थान पर आध्यात्मवाद, राष्ट्रवाद, मानवतावाद एवं प्रकृतिवाद को स्थापित करना या समानता, स्वाधीनता तथा न्याय की व्यवस्था को कायम करना हमारे स्वदेशी अभियान का ध्येय है। अर्थ से परमार्थ का, प्रोस्पेरिटी फाॅर चैरिटी की अभियान है ‘पतंजलि आयुर्वेद’। एफ.एम.सी.जी. सेक्टर में देश का सबसे बड़ा ब्रांड है आज पतंजलि। पतंजलि आयुर्वेद की हरिद्वार, तेजपुर (असम), नोएडा (उत्तर प्रदेश), नागपुर (महाराष्ट्र) एवं नेवासा, अहमदनगर (महाराष्ट्र) एवं देश के विभिन्न भागों में छोटी-बड़ी लगभग 50 यूनिट्स हैं। दुनिया का सबसे बड़ा फूड पार्क हमने बनाया। साथ ही विदेशी कम्पनियों से श्रेष्ठ व सस्ते फूड एवं नाॅन फूड के सैकड़ों गुणवत्तायुक्त उत्पाद हमने तैयार किए हैं। पतंजलि का वल्र्ड क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं वल्र्ड क्लास अल्टीमेट नेचुरल प्रोडक्ट आज करोड़ों भारतीयों की प्रथम पसन्द बने हैं।
योगग्राम एवं निरामयम्-
प्राकृतिक चिकित्सा का विश्व के सबसे बृृहत् एवं श्रेष्ठतम् संस्थान हैं- योगग्राम एवं निरामयम्। 500 से अधिक आरोग्य साधकों की यहाँ एक साथ आवास, उपचार, योग साधना एवं एकान्तवास की श्रेष्ठतम प्राकृतिक वातावरण के बीच व्यवस्था है। लाखों लोगों के असाध्य रोग यहाँ से दूर हो चुके हैं एवं प्राकृति प्रेमी लाखों लोग बिना किसी रोग के भी तन, मन व आत्मा के शुद्धिकरण हेतु यहाँ आते हैं। पंचकर्म, षट्कर्म सहित सैकड़ों प्रकार की प्राकृतिक चिकित्सा विधाओं की यहां सुन्दर आदर्श व्यवस्था है। धरती का स्वर्ग जैसा यह दिव्यधाम है ‘योगग्राम’।
सत्ता एवं व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन-
कालाधन, भ्रष्टाचार एवं व्यवस्था परिवर्तन के मुद्दों पर राष्ट्रव्यापी जनांदोलन 2009 से प्रारम्भ होकर 2013 तक चला। लाखों सात्विक देशभक्त कर्मठ निष्ठावान् कार्यकर्ताओं की निष्काम निःस्वार्थ सेवा, करोड़ों देशवासियों के समर्थन, सहयोग एवं आशीर्वाद से इस अभियान को सफल बनाया। यह इतना बड़ा विषय है कि इस पर एक बहुत बड़े ग्रन्थ की रचना हो सकती है। सत्ता परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन के ऐतिहासिक कार्य में पतंजलि का योगदान सदा स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होगा तथा युगों-युगांे तक एक दिव्य प्रेरणा बना रहेगा।
पतंजलि का देश के लिए योगदान-
पतंजलि ने आधुनिक युग में योग को घर-घर तक जन-जन तक पहुंचाया। आयुर्वेद, स्वदेशी एवं वैदिक परम्परा को गौरव दिलवाया। आध्यात्मिक के साथ वैज्ञानिकता का समन्वय किया। वैदिक ज्ञान एवं आधुनिक ज्ञान विज्ञान एवं अनुसंधान का संगम किया। चिकित्सा के क्षेत्र में कोई एक भी रोग को क्योर कर दे तो उसे विश्व में नोबेल पुरस्कार दिया जाता है, हमने बी.पी.शूगर, थायराइड, रूमेटाइड आर्थराइटिस, हैपेटाइटिस, लीवर सिरोसिस एवं कैंसर आदि सौ से अधिक रोगों को पहली बार क्योर करके दिखाया। डीजनरेट हुए सेल व सिस्टम को रीजनरेट किया। करोड़ों लोगों को रोगमुक्त, तनावमुक्त, नशामुक्त, मांसाहार मुक्त, हिंसा, दुर्विचार, दुर्भावना, दुव्र्यवहार, दोष, दुर्बलताओं व पराधीनताओं से मुक्त किया। साथ ही योग, कर्मयोग को उनके जीवन का हिस्सा बनाकर दिव्यताओं एवं दिव्य जीवन से युक्त किया। योग, आयुर्वेद, स्वदेशी एवं वैदिक संस्कृति के विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थान बनाए। विश्वस्तरीय अनुसंधान प्रारम्भ किया। कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, अनुसंधान, पर्यावरण, धर्म, अध्यात्म, संस्कृति आदि समाज के लगभग हर क्षेत्र में एक सृजनात्मक योगदान दिया। ईश्वरभक्ति, राष्ट्रभक्ति, गोभक्ति, धर्मभक्ति एवं कर्मभक्ति पुरुषार्थ का पाठ पढ़ाया। करोड़ों लोगों के जीवन में एक सकारात्मक दिव्य आध्यात्मिक परिवर्तन किया। लाखों लोगों को रोजगार दिया। ऋषि परम्परा को दिव्यता के साथ आगे बढ़ाया। बिना किसी भेदभाव के संन्यासी की दिव्य परम्परा को प्रतिष्ठा दी। वर्तमान भारत को दिव्य, भव्य बनाने में पुरुषार्थ की पराकाष्ठा करते हुए आने वाले भारत में 500 सालों के बारे में एक अत्यन्त सुदृढ़, दीर्घकालिक, मौलिक कार्य किया जा रहा है। सर्वसमावेशी वैज्ञानिक सोच के साथ संस्था, संगठन एवं शिक्षा के क्षेत्र में दीर्घकालिक सेवा योजना साथ ही शास्त्रों के शुद्धिकरण के द्वारा वैदिक धर्म, संस्कृति एवं सभ्यता को यथार्थ स्वरूप में अक्षुण रखना। वेद के अतिरिक्त अधिकांश हिन्दु शास्त्रों, मुख्य रूप से पुराणों, महाभारत एवं मनुस्मृति ग्रन्थों में विगत 2500 वर्षों में अनेक कारणों से मिलावट हुई है, सभी शास्त्रों मे विशुद्ध संस्करणों का प्रकाशन करने को भी हमारी एक बहुत बड़ी कार्य योजना है।
चमत्कारों एवं अविष्कारों के नये युग का सूत्रपात-
पतंजलि के पहले योग के किसी ग्रन्थ में तथा माॅर्डन मेडिकल साइंस के किसी रिसर्च में यह नहीं लिखा हुआ है कि बी.वी., शूगर, थायराइड, रयूमेटाइड आर्थराइटिस, अस्थमा, हैपेटाइटिस एवं कैंसर जैसे रोग योग से क्योर हो जाते हैं। योग शिविरों में आस्था टी.वी. पर प्रूफ एवं एविडेंस के साथ पहली बार लोगों ने यह कहा कि हमारा ये-ये रोग क्योर हो गया।
पहले तो इस पर जमकर विवाद एवं भयंकर विरोध हुआ। फिर अनुसंधान और अन्ततः आज पूरे देश व दुनिया ने यह स्वीकार कर लिया एवं हमने भी पूरे वैज्ञानिक अनुसंधानों से सिद्ध कर दिया कि योग, आयुर्वेद एवं वैदिक संस्कृति पूरी तरह से वैज्ञानिक व प्रमाणिक है। आस्था चैनल के इस योग के चमत्कारों का व्यापक प्रभाव देखकर बहुत से लोगों ने टी.वी. पर व्यवसायिक लोगों को प्रायोजित रूप से खड़ा करके बहुत सारा अनुचित धंधा भी किया, यह भी एक बहुत बड़ा विषय है। पतंजलि के राष्ट्र व विश्वव्यापी कार्य के मूल में हजारों ही नहीं लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में घटित हुए योग के इन सत्य चमत्कारिक प्रभावों की सबसे बड़ी भूमिका है। इसाई मत में कोई भी बड़ा चमत्कार कोई कर दे तो उसे सन्त की उपाधि, हिन्दु धर्म में सिद्ध या अवतार, इस्लाम में पीर-पैगम्बर आदि नाम दिए जाते हैं। हमें कोई उपाधि नहीं चाहिए लेकिन यह सच है कि अनगिनत चमत्कार पतंजलि के द्वारा व दुनिया में हुए हैं, हो रहे हैं तथा आगे भी होंगे।
यात्रा की यातनाएँ-
सेवा, साधना एवं संघर्ष की कोई भी यात्रा, कष्ट, बाधाओं, चुनौतियों, प्रतिकूलताओं, तप, त्याग एवं बलिदानों के बिना पूरी नहीं होती। पतंजलि के इस बहुआयामी अभियान, अनुष्ठान या आंदोलन में भी सामाजिक आर्थिक, राजनैतिक व 2005 में वृन्दा करात से लेकर 4 जून रामलीला मैदान तक अनगिनत बाधाओं, यातनाओं एवं विघ्नों को हमने सदा पार किया है तथा आज भी बहुत सारे विकट संकटों से जूझते हुए भी इस व्यक्ति निर्माण, चरित्र निर्माण, मानव निर्माण, राष्ट्र निर्माण से लेकर दिव्य युग निर्माण की यात्रा के पथ पर पुरुषार्थ की पराकाष्ठा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। आध्यात्मिक भारत एवं आध्यात्मिक विश्व का एक बहुत बड़ा संकल्प है हमारा और इसे पूरा करने के लिए हम सभी दिशाओं से पूर्ण पुरुषार्थ कर रहे हैं। यद्यपि यह लक्ष्य बहुत बड़ा है लेकिन इसके सिवा जीवन का विराट् प्रयोजन या पुरुषार्थ भी अन्य कोई नहीं हो सकता। मनुष्य का विकास तथा मनुष्य के लिए विकास या शब्दान्तर से कहें तो राष्ट्र, विश्व व मानवमात्र अर्थात् समष्टि के अहिंसक, स्थाई, समग्र, संतुलित बाह्य आन्तरिक विकास या समृद्धि का एकमात्र पूर्ण निर्दोष वैज्ञानिक व सार्वभौमिक पथ है- अभ्युदय व निःश्रेयस की एक साथ साधना।
पतंजलि के आगामी बड़े लक्ष्य व भावी योजना-
आध्यात्मिक भारत का निर्माण देश के प्रत्येक जिले में एक योगपीठ एवं कम-से-कम एक आचार्यकुलम् की स्थापना करके एक विद्वान् तपस्वी संन्यासी के मार्गदर्शन, पूर्णकालिक सात्विक कार्यकत्र्ताओं की निष्काम सेवा एवं स्थानीय लोगों के सात्विक योगदान से एक जिले को गोवा, मोरीशम, सिंगापुर, हांगकांग, जापान, इजराइल एवं साउथ कोरिया आदि के उदाहरणों को आंशिक रूप से आदर्श के रूप में रखकर देश के आध्यात्मिक अहिंसक स्थाई समग्र संतुलित विकास या सात्विक समृद्धि के उदाहरण प्रस्तुत करना।
- विश्वविद्यालय- दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय एन.सी.आर. क्षेत्र में बनाना जिसमें सभी प्राचीन एवं सभी आधुनिक मेडिकल, इंजिनियरिंग, मेनेजमेंट, बिजनेस लाॅ, स्पोट्र्स, इंडस्ट्री व एग्रीकल्चर आदि विषयों की श्रेष्ठतम शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था होगी। पूरा विश्व पुनः भारत को विश्वगुरु के रूप में गौरव दे, यह संकल्प है हमारा।
- विश्वभेषज संहिता एवं योग विश्वकोष- ये दोनों ही ग्रन्थ सदियों तक एक धरोहर के रूप में होंगे। पूरे विश्व में लगभग 4 लाख पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियाँ एवं वनस्पतियाँ हैं। इस वल्र्ड हर्बल इंसाइक्लोपीडिया में औषधीय गुणों की पहचान हो चुके लगभग 65 हजार औषधीय पौधों के सन्दर्भ में उपलब्ध सम्पूर्ण ज्ञान का समावेश होगा। 30 हजार पौधों का कैन्वास पेंटिंग तथा 35 हजार की लाइन ड्राइंग होगी। विश्व की 2 हजार जनजातियों के बड़ी-बूटियों के पारम्परिक ज्ञान का समावेश होगा। विश्व की 1800 भाषाओं में 12 से 15 लाख नामों का समावेश के साथ लगभग एक लाख बड़े पृष्ठों से युक्त 100 वाॅल्यूम का यह आयुर्वेद के क्षेत्र में विश्व का बृहत्तम एवं श्रेष्ठतम महाग्रन्थ होगा। विश्व भेषज संहिता में लगभग ढाई लाख संदर्भ का समावेश होगा। संहिता की लगभग 5 लाख संस्कृत श्लोकों की संरचना के साथ रचना होगी। इसी प्रकार योग विश्वकोष में प्रत्यक्ष रूप से 700 ग्रन्थों तथा गौण रूप से 300 ग्रन्थों के सन्दर्भों के साथ लगभग कुल एक हजार ग्रन्थों के सन्दर्भों के साथ लगभग 5000 पृष्ठों का महाग्रन्थ होगा। इसमें 2300 आसनों, 500 मुद्राओं, 150 प्राणायामों एवं 150 शोधन क्रियाओं के सचित्र समावेश के साथ 5 हजार पारिभाषित शब्दों का योग एवं अध्यात्म के ग्रन्थों के सन्दर्भ के साथ प्रामाणिक अर्थ होगा।
- शास्त्रों का शुद्धिकरण- वैदिक शास्त्रों के विशुद्ध रूप में प्रकाशित करने का आगामी 20-25 वर्षों का एक बहुत बड़ा कार्य है। देश एवं विश्व की धर्म, शास्त्र, राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी शक्तियों के द्वारा हम पर जो झूठे आरोप लगाए जाते हैं तथा भारत की सनातन आर्य वैदिक संस्कृति एवं हमारे महान् पूर्वजों को दुराचारी, व्यभिचारी, क्रूर, हिंसक, हत्यारे, शैतान व हैवान बताकर उनका अपमान किया जा रहा है। इस पापपूर्ण वैश्विक षड्यंत्र को हमें मिटाना है।
- गौ-अनुसंधान केन्द्र- करोड़ों गायों की इंजेक्शन के जरिए नस्ल खराब कर दी गई है तथा करोड़ों गायों की हमारी अविवेकशीलता, लापरवाही एवं अदूरदर्शिता के कारण नस्लें खराब हो गई हैं 2-3 किलो औसत दूध देने वाली गाय को हम 20-25 किलों से लेकर ब्राजील की तरह 50 किलो तक दूध देने वाली नस्लों में तब्दील कर सकें यह बहुत बड़ा ध्येय है हमारा। इसके लिए एक बहुत बड़ा अनुसंधान केन्द्र गोशाला एवं नन्दीशाला बनाने का हमारा संकल्प है। समय चाहे जितना लगे, लेकिन इसे हम अवश्य पूरा करेंगे।
- आध्यात्मिक विश्व का निर्माण- दुनिया के प्रत्येक देश की भाषा में योगाचार्यों, वैदिक विद्वानों तथा संन्यासियों को प्रशिक्षित करके आने वाले 25 से 50 वर्षों में सम्पूर्ण विश्व में योग एवं वैदिक संस्कृति को विश्व कल्याण हेतु प्रतिष्ठित करना हमारी बहुत बड़ी कार्य योजना है। यह भारत के विश्वगुरु होने का तात्पर्य है और पूरे विश्व के मंगल हेतु यह नितान्त आवश्यक है। विश्व के आध्यात्मिक, अहिंसक, समग्र व स्थाई विकास के लिए यही एकमात्र मार्ग है।
- भारतीय शिक्षा बोर्ड एवं इंटरनेशनल योगासन स्पोट्र्स फैडरेशन- 1835 में मैकाले द्वारा स्थापित शिक्षा तंत्र के स्थान पर भारतीय शिक्षा तंत्र की प्रतिष्ठा करके श्रेष्ठतम वैदिक, आध्यात्मिक शिक्षा एवं श्रेष्ठतम आधुनिक शिक्षा-दीक्षा के साथ 21वीं सदी की नई शिक्षा क्रांति को हम एक बहुत बड़े आंदोलन के रूप में लेकर चल रहे हैं। बोर्ड का गठन हो चुका है। पाठ्य पुस्तकों के निर्माण का कार्य बहुत बड़े रूप में आगे बढ़ रहा है। इसके बाद नये एवं पुराने विद्यालयों को देश भर में इस बोर्ड से मान्यता (एफिलेशन) देकर उन विद्यालयों में एक आदर्श शिक्षा-दीक्षा, संस्कार एवं आदर्श शिक्षकों के साथ ही श्रेष्ठ वातावरण उपलब्ध कराकर एक आदर्श शिक्षा व्यवस्था की प्रतिष्ठा करेंगे। योगासनों के माध्यम से युवाओं एवं विद्यार्थियों को संस्कारित करके योगविद्या एवं अध्यात्म के संस्कारों को समावेश हम राष्ट्र एवं विश्व पटल पर करना चाहते हैं। अन्य खेलों की तरह अब योगासनों का भी राष्ट्रीय स्तर से लेकर ओलम्पिक तक समावेश होगा। वैश्विक स्तर पर यह एक बड़ा ऐतिहासिक कार्य होगा। कालान्तर में इसका बड़ा परिणाम सामने आएगा। योगासनों के जरिए पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म विद्या का प्रथम बीजारोपण होगा और अन्ततः एक आध्यात्मिक विश्व के निर्माण का हमारा दिव्य संकल्प पूरा होगा। योग प्रत्येक व्यक्ति एवं विश्व का स्वभाव बन जाए, तो सभी समस्याओं का समाधान सहज नैसर्गिक रूप से ही हो जाएगा। स्वभावो-अध्यात्मम् उच्यते। (गीता 8/3) योग एवं आध्यात्म ही मानवमात्र का वस्तुतः मूल स्वभाव, प्रकृति या संस्कृति है। यह अकाट्य निर्विवादित, वैज्ञानिक, व्यवहारिक व स्वाभाविक सत्य है। इस सत्य को हमें जानना, जगाना व पाना है। योग व भोग दोनों के बीज हमारे भीतर हैं, योग के बीजारोपण से भोग निर्बीज हो जाते हैं, हम निर्विकार, निर्दोष, निद्र्वन्द्व, निबैर, निर्भय व निर्विकल्प होकर मनुष्यत्व, देवत्व, ऋषित्व व ब्रह्मत्व को उपलब्ध हो जाते हैं।