आर्योद्देश्यरत्नमाला
आर्योद्देश्यरत्नमाला 10. परलोक- जिससे सत्यविद्या से परमेश्वर की प्राप्ति हो, और उस प्राप्ति से इस जन्म वा पुनर्जन्म और मोक्ष में परमसुख प्राप्त होता है, उसको ‘परलोक’ कहलाता है। 11. अपरलोक- जो परलोक से उलटा है, जिसमें दुःख विशेष भोगना होता है, वह ‘अपरलोक’ कहलाता है। 12. जन्म- जिसमें किसी शरीर के साथ संयुक्त होके जीव कर्म करने में समर्थ होता है, उसको ‘जन्म’ कहते हैं। 13. मरण- जिस शरीर को प्राप्त होकर जीव क्रिया करता है, उस शरीर और जीव का किसी काल में जो वियोग हो जाना…
आर्योद्देश्यरत्नमाला
10. परलोक- जिससे सत्यविद्या से परमेश्वर की प्राप्ति हो, और उस प्राप्ति से इस जन्म वा पुनर्जन्म और मोक्ष में परमसुख प्राप्त होता है, उसको ‘परलोक’ कहलाता है।
11. अपरलोक- जो परलोक से उलटा है, जिसमें दुःख विशेष भोगना होता है, वह ‘अपरलोक’ कहलाता है।
12. जन्म- जिसमें किसी शरीर के साथ संयुक्त होके जीव कर्म करने में समर्थ होता है, उसको ‘जन्म’ कहते हैं।
13. मरण- जिस शरीर को प्राप्त होकर जीव क्रिया करता है, उस शरीर और जीव का किसी काल में जो वियोग हो जाना है, उसको ‘मरण’ कहते हैं।
14. स्वर्ग- जो विशेष सुख और सुख की सामग्री को जीव का प्राप्त होना है, वह ‘स्वर्ग’ कहलाता है।
15. नरक- जो विशेष दुःख और दुःख की सामग्री को जीव का प्राप्त होना है, उसको ‘नरक’ कहते हैं।
16. विद्या- जिससे ईश्वर से लेके पृथिवीपर्यन्त पदार्थों का सत्य विज्ञान होकर ध्न से यथायोग्य उपकार लेना होता है, इसका नाम ‘विद्या’ है।
17. अविद्या- जो विद्या से विपरीत है, भ्रम अन्ध्कार और अज्ञानरूप है, उसको ‘अविद्या’ कहते हैं।
18. सत्पुरुष- जो सत्यप्रिय ध्र्मात्मा विद्वान् सब के हितकारी और महाशय होते हैं, वे ‘सत्पुरुष’ कहलाते हैं।
19. सत्सîõ-कुसîõ- जिस करके झूठ से छूटके सत्य की ही प्राप्ति होती है ‘सत्सघõ’, और जिस करके पापों में जीव पफंसे, उसको ‘कुसघõ’ कहते हैं।
20. तीर्थ- जितने विद्याभ्यास सुविचार ईश्वरोपासना ध्र्मानुष्ठान सत्य का संग ब्रह्यचर्य जितेन्द्रियतादि उत्तम कर्म है, वे सब ‘तीर्थ’ कहलाते हैं।