21वीं शताब्दी में आयुर्वेद की पुनस्र्थापना का संकल्प पतंजलि अनुसंधान के माध्यम से……

21वीं शताब्दी में आयुर्वेद की पुनस्र्थापना का संकल्प पतंजलि अनुसंधान के माध्यम से……

21वीं शताब्दी में आयुर्वेद की पुनस्र्थापना का संकल्प पतंजलि अनुसंधान के माध्यम से….   योगर्षि पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ‘परमाध्यक्ष-पतंजलि योगपीठ’ आज एतिहासिक दिन है। आज शिवाजी महाराज जी की जयंती है और योग-आयुर्वेद की वैश्विक प्रतिष्ठा का दिन है। एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के तौर पर एविडेंस बेस्ड, रिसर्च बेस्ड ट्रीटमेंट के तौर पर एक जीवन पद्वति के साथ, एक चिकित्सा पद्वति, एक एविडेंस बेस्ड रिसर्च व एक्सपीरियंस बेस्ड यह जो सनातन पद्वति थी, उसको वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा के रूप में यह दिन जाना जाए इसलिए आज का…

21वीं शताब्दी में आयुर्वेद की पुनस्र्थापना का संकल्प पतंजलि अनुसंधान के माध्यम से….

 

योगर्षि पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ‘परमाध्यक्ष-पतंजलि योगपीठ’

आज एतिहासिक दिन है। आज शिवाजी महाराज जी की जयंती है और योग-आयुर्वेद की वैश्विक प्रतिष्ठा का दिन है। एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के तौर पर एविडेंस बेस्ड, रिसर्च बेस्ड ट्रीटमेंट के तौर पर एक जीवन पद्वति के साथ, एक चिकित्सा पद्वति, एक एविडेंस बेस्ड रिसर्च व एक्सपीरियंस बेस्ड यह जो सनातन पद्वति थी, उसको वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा के रूप में यह दिन जाना जाए इसलिए आज का दिन हमने चुना है। एक तरफ छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती का यह दिन और भारत वैश्विक स्तर पर हेल्थ के क्षेत्र में चिकित्सा के क्षेत्र में पूरे विश्व का नेतृत्व करे, एक आत्मनिर्भर भारत से लेकर विश्व का प्रत्येक नागरिक आत्मनिर्भर बने, योग और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक प्रमाणिकताओं के साथ प्रतिष्ठापित करने के लिए आज हम यहां उपस्थित हुए हैं। पतंजलि ने अभी तक सैकड़ों रिसर्च पेपर्स प्रकाशित किए हैं। अलग-अलग रोगों के बारे में अलग-अलग प्रकार की जो हमारी योग की क्रियाएं हैं उनको भी वैज्ञानिक तथ्यों के साथ में हमने पूरी दुनिया के सामने रखा है। जो पहले से स्थापित तथ्य थे उनके उलट डाईबिटीज के मरीजों को नाॅन डायबिटिक करके, लाईफ स्टाइल डिजीज चाहे वह बी.पी.हो, थाईराइड हो, ओबेसिटी हो, नाॅन कम्यूनिकेबल डिजीज के साथ कोरोना जैसी कम्युनिकेबल डिजीज के पर भी हमने एक प्रमाणिक कार्य किया है। इसमें मार्डन मेडिसिन साइंस के द्वारा स्थापित जितने भी प्रोटोकाॅल हैं और उसके जो पेरामीटर्स हैं, उनके मापदण्डों के अनुरूप सबसे पहले हमने डेंगु के खिलाफ डेंगुनिल बनाया। फिर हमने कोरोना के संदर्भ में कोरोनिल बनाया। कोरोना के संदर्भ में अभी तक वल्र्ड के टाॅप इम्पेक्ट वाले रिसर्च जनरल में 9 रिसर्च पेपर्स पब्लिश हो चुके हैं तथा 16 रिसर्च पेपर्स अभी पाइप लाइन में हैं। इसी प्रकार से अलग-अलग बीमारियों के बारे में सैकड़ों रिसर्च पेपर हम पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं और जब हमने पिछली बार यहां रिसर्च फाउण्डेशन के जितने भी हमारे रिसर्च पब्लिेकेशन हैं, वो सारे हमने आपको उपलब्ध करवाए थे। इसके बारे में हम पहले ही बता चुके हैं और अब जो इसके बाद दूसरे रिसर्च पेपर्स जो पब्लिश हो चुके हैं, उन सबका हमने एक कंपाईल करके दूसरा यह पूरा महाग्रंथ बन गया है। जैसे हमारे वेदों की 20 हजार एक सौ रिचाएं है, ऐसे ही यह वो सारे रिसर्च पेपर्स हैं जिसका पूरा डाटा उपलब्ध है। अब आज का जो संदर्भ हैं मैं उस पर आना चाहता हूं। जब हमने कोरोनिल, श्वासारी, अणु तेल के द्वारा लाखों लोगों को जीवन देने का कार्य किया, तब बहुत लोगों ने प्रश्न उठाए थे कि इसके साइंटिफिक पैरामीटर्स केा फोलो किया है या नहीं । कुछ लोगों के मन में ऐसा रहता है कि रिसर्च का काम तो केवल विदेश में ही हो सकता है। वो भी आयुर्वेद में रिसर्च का काम कोई करे तो लोग शक की निगाहों से देखते हैं। वो शक के सारे बादल हमने अब छांट दिये हैं।

कोरोना के जो पूरे प्रोटोकाॅल का फोलो करते हुए और किस तरह से कोरोनिल, श्वसारी, अणु तेल द्वारा हमने लाखों लोगों की जान बचाई और कारोंड़ों लोगों के भीतर हौंसला जगाया। कोरोना के संदर्भ मेें मैं किसी भी पैथी के संघर्ष को प्रतिष्ठापित नहीं करना चाहता। भारत में सबसे ज्यादा रिकवरी रेट है, सबसे कम डेथ रेट है और करोंड़ों लोग संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हुए हैं। उसमंे जहाँ एक और आध्ुानिक विज्ञान Modren Science की भूमिका है तो दूसरी ओर बहुत बड़ी भूमिका प्राचीन विज्ञान Ancient Science की भी है, योग-आयुर्वेद की भी है। करोड़ों लोग अपने घर बैठे भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम, सूर्य नमस्कार की प्रैक्टिस कर रहे थे। करोड़ों लोग अपने घरों में काढ़ा पी रहे थे, क्वाथ पी रहे थे और उससे एक नया कीर्तिमान बना है। मैं आज सबसे पहले उन्हीं दो बुकलेट के विमोचन के लिए यहाँ पर आदरणीय हर्षवर्धन जी को आदरणीय श्री गडकरी जी को निवेदन करता हूँ कि इसके विमोचन के लिए अनुग्रह करें। इस देश के डाॅक्टर व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री को विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की गवर्निंग काउंसिल के चेयरमेन के तौर पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व निभाने का सौभाग्य मिला है। भारत WHO का नेतृत्व स्मंक कर रहा है। हमारे बहुत ही गरिमापूर्ण व्यक्तित्व जिन्होंने स्वास्थ्य को हमेशा सेवा माना है, मंत्री बनने के बाद भी रोगियों की सेवा करने को अपना सौभाग्य समझते हैं, ऐसे चिकित्सक व स्वास्थ्य मंत्री और स्वभाव से करुणाशील व दूरदर्शी डाॅ. हर्षवर्धन जी की अध्यक्षता में हमारे मुख्य अतिथि श्री नितिन गडकरी जी जिनके साथ हमारा अनन्य आत्मीय प्रेम है, आज इस बड़े महत्वपूर्ण क्षण के साक्षी बन रहे हैं। श्री गडकरी जी की कार्यशैली बहुत कुशल है। सड़क परिवहन का उनका कार्य पूरे देश में दिखाई दे रहा है। उनकी अध्यक्षता में देश में विश्वस्तरीय लाखों किलोमीटर की सड़कों का जाल बिछा दिया गया है। इनके भीतर देश के निर्माण की बड़ी सोच है, नेतृत्व का सामथ्र्य है। हम इन दोनों विभूतियों का पतंजलि योगपीठ व पतंजलि अनुसंधान संस्थान की ओर से अभिनन्दन करते हैं। श्रद्धेय आचार्य जी, पतंजलि अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष डाॅ. अनुराग वाष्र्णेय का अभिनंदन करते हुए सर्वप्रथम बुकलेट विमोचन का कार्य सम्पन्न करते हैं।

कोरोना को लेकर जो साइंटिफिक प्रोटोकाॅल हैं उन्हें फोलो करते हुए हमने जो औषधि बनाई हैं उसके सारे रिसर्च पेपर्स हमारे पास हैं, 9 रिसर्च पेपर्स इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं तथा 16 अभी पाईप लाईन में हैं।

आज की प्रेस काॅन्फ्रेंस के तीन बड़े मकसद हैं। योग, आयुर्वेद को वैज्ञानिक मापदण्डों के साथ साइंटिफिक रिसर्च इनोवेशन इंवेंशन के जितने भी प्रोटोकाॅल हैं उन्हें सभी को फोलो करते हुए एविडेंस बेस्ड मेडिसिन ट्रीटमेंट के तौर पर योग-आयुर्वेद की वैश्विक प्रतिष्ठा, एक सस्टेनेबल हेल्थ व योग-आयुर्वेद भारतीय जीवन पद्धति पूरे विश्व में प्रतिस्थापित हो और आत्मनिर्भर भारत से लेकर विश्व का प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य के संदर्भ में आत्मनिर्भर बने। इस संकल्प के साथ आज हमने कोरोना से लेकर अलग-अलग बीमारियों पर रिसर्च बेस्ड ट्रीटमेंट, रिसर्च बेस्ड जो पूरा यह हमारी प्राचीन ज्ञान (Ancient Knowledge) था उसकी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए पुरुषार्थ किया है। आज से 4 साल पहले जब मोदी जी पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट का उद्घाटन करने के लिए पधारे थे तो उन्होंने कहा था कि मैं योग, आयुर्वेद को एविडेंस बेस्ड प्रैक्टिस के तौर पर मेडिसिन के तौर पर देखता हूँ। उसके कई चरण हमने पूरे कर दिए हैं। उस पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट का शिलान्यास, उसकी आधारशिला हमारे श्री हर्षवर्धन जी ने रखी थी। तो हम उनका भी कृतज्ञ हृदय से अभिनन्दन करते हैं। जिसकी संस्थान की नींव उन्हांेने डाली थी, आज उसके ऊपर एक बहुत बड़ा अनुसंधान का भवन और एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक कार्य किया जा रहा है। हमारे अभिभावक के रूप में उपस्थित दोनों मंत्रियों से कहूँगा कि वह अपने आशीषों से अनुग्रहित करें।

 

श्री नितिन गडकरी जी ‘सड़क परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री’, भारत सरकार

मुझे बहुत ही इस बात की खुशी है कि हमारे योग विज्ञान, आयुर्वेद में रिसर्च करने के लिए पूज्य आचार्य श्री ने श्रद्धेय स्वामी जी महाराज ने एक बहुत बड़ा अनुसंधान संस्थान की स्थापना की है। यह बात जरूर है कि हम लोग कहते हैं कि नाॅलिज भविष्य की बहुत बड़ी ताकत है। मैं अक्सर वो बातें दोहराता हूँ- एक innovation interpinalship science technology research speed and successful pratices name it at knowledge and conversion of knowledge into wealth यह हमारे देश का भविष्य है। इसलिए जो हमारी पूर्व परम्परा है, जो हमारा आयुर्वेद है, योग विज्ञान है, यह पूरे विश्व को दिशा दे सकता है। शायद हिन्दुस्तान में रहकर इस बात का महत्व समझ में नहीं आता है पर आप कभी जर्मनी में जाओगे और जर्मन व्यक्ति से बात करेंगे तो वहाँ आयुर्वेद के बारे में हमसे भी आगे उनकी रिसर्च को देखेंगे। तब हमें पता चल जाता है कि विश्व में इसलिए स्वाभाविक रूप से अनुसंधान करना और वैज्ञानिक तरीके से उसको एक अप्रुवल करने के बाद उसका सर्टिफिकेशन करना, यह भी बहुत आवश्यक होता है और इसलिए श्रद्धेय स्वामी जी के प्रति हम सभी का आदर है, सम्मान है, प्रेम है कि एक समय हमारे रोजमर्रा के जीवन में जो चीजों का हम प्रयोग कर रहे थे, जिसकी रायल्टी विदेश में जा रही थी, उसके अच्छे विकल्प के रूप में उन प्रोडक्ट को तैयार करके उन्होंने हमारे स्वदेशी के विचारों पर आधारित आधुनिक उत्पादनों को देश-विदेश की जनता में लोकप्रिय किया और उस अनुमति से लोगों का विश्वास भी आयुर्वेद विज्ञान पर बढ़ा। एक प्रकार से पूरे विश्व में हमारी भारतीय संस्कृति, इतिहास, विरासत, आयुर्वेद, योग, विज्ञान इससे यशस्वी एम्बेस्डर के रूप में हम पूज्य स्वामी जी महाराज को देखते हैं। इसके कारण आज पूरे विश्व में एक चेतना भी प्रकट हुई है। हमारा अलग-अलग प्रकार का योगासन हो, योग विज्ञान हो, प्राणायाम हो, कपालभाति हो। आज पूरे विश्व में इसका अनुकरण कर रहे हैं और एक बात सच है कि चमत्कार के बगैर कोई नमस्कार नहीं करता। जब इन सब बातों की अनुभूति लोगों में आई तब उन्होंने उन बातों को स्वीकार किया है और हमारी यह जो पूर्व परम्परागत हमारे आयुर्विज्ञान में रिसर्च करने के लिए मैं विशेष रूप से पूज्य आचार्य श्री जी को धन्यवाद दूंगा। आयुर्वेद में 300 से अधिक वैज्ञानिक जब मैंने बालकृष्ण जी महाराज को नजदीक से देखा तो किसी भी चीज का सफल अध्ययन करना और मैं तो मैनेजमेंट का विद्यार्थी हूँ। प्रबोधन, प्रशिक्षण, रिसर्च एण्ड डवलपमेंट इन तीनों सूत्रों पर हमारी समरचना है। प्रबोधन का कार्य श्रद्धेय स्वामी जी महाराज करते हैं। प्रशिक्षण का कार्य भी करते ही हैं और पूज्य आचार्य श्री रिसर्च एण्ड डवलपमेंट, इसके लिए उन्होंने विशेष रूप से स्वयं को समर्पित किया है। यह जो सब वैज्ञानिक हैं, इनका उपयोग करके लगातार इन्टरनेशनल स्टैंडर्ड के वैज्ञानिक लेबोरेट्री की स्थापना करना, उसके साथ हर चीज जिसके बारे में हम दावा कर रहे हैं कि इसका यह परिणाम है उसका वैज्ञानिक रिपोर्ट वो भी उन्होंने वल्र्ड के जनरल में यह सब पब्लिकेशन पहुंचाए हुए हैं और मुझे लगता है कि जब प्रमाणिकरण होगा वैज्ञानिक लैबोरेट्री के द्वारा तब उसके ऊपर कोई चर्चा भी नहीं कर सकता, कोई विवाद भी नहीं हो सकता। हमारे देश में एलोपैथिक है, आयुर्वेदिक है, होम्योपैथी है, यूनानी भी है और इनमें लगातार रिसर्च करना समय की आवश्यकता है। हमारे देश में वैज्ञानिकों की कोई कमी नहीं है और उनको सपोर्ट करने के लिए उन्हें फैसिलिटी देने के लिए उनके पीछे खड़े रहने की आवश्यकता है। आज पूज्य आचार्य जी महाराज के रूप में श्रद्धेय स्वामी जी महाराज के रूप में इस अनुसंधान संस्थान में 300 वैज्ञानिक रात-दिन कार्य कर रहे हैं और उनके पीछे पतंजलि का गुडविल तो है ही पर बालकृष्ण जी महाराज का, श्रद्धेय स्वामी जी महाराज का दोनों का आशीर्वाद और मार्गदर्शन जिसके कारण उनकी और ताकत बढ़ी है। मुझे खुशी है कि अब सब बातों का वैज्ञानिक आधार लेकर वो जनता के सामने आए हैं तो निश्चित रूप से लोगों का भी विश्वस इसके ऊपर और अच्छे तरीके से बढ़ेगा और हमारे स्वास्थ्य के बारे में एक जो यह नई दिशा पतंजलि ने विशेष रूप से दी है। इसके लिए मैं उनके प्रति आभार भी व्यक्त करता हूँ, और पतंजलि के वैज्ञानिकों को भी धन्यवाद भी देता हूँ ।

 

डाॅ. हर्षवर्धन जी ‘स्वास्थ्य मंत्री, भारत सरकार’

लगभग 27 साल पहले जब मुझे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कार्य करने का मौका मिला था, जितना भी आयुर्वेद के बारे में पढ़ा है, लिखा है, समझा है, उसके कारण उसकी प्रतिष्ठा को सारे संसार में माॅर्डन सांटिफिक तरीके से पुनस्थापन करने का एक स्वपन हमेशा मन में रहा है। उसका कारण यह है कि हम सब जानते हैं कि आयुर्वेद का सारा ज्ञान बहुत कुछ अथर्ववेद के अंदर समाहित है। चरक, सुश्रुत संहिता में जो ज्ञान था, उसको यह सब जानकारियाँ जो अन्तर्राष्ट्रीय रिकगनाइज्ड डाटा है उसमें विद्यमान हैं या समाहित है। छठीं व नवीं शताब्दी में इसको चायनीज भाषा में ट्रांसलेट किया है, नवीं शताब्दी में इसको पर्शियन अरेबिक भाषा में ट्रांसलेट किया गया। 12वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य में यूरोपियन भाषा में अनुवाद किया गया था। भारत का निश्चित रूप से दुर्भाग्य रहा कि ब्रिटिश काल में जो अपना टेªडिशनल इंडियन मेडिशनल सिस्टम था इसको सारी दुनिया में रिकगनाइज होना था, इसका प्रचार होना चाहिए था, उस प्रकार का प्रोत्साहन नहीं दिया गया और इसको इस प्रकार का प्रोत्साहन देने के लिए भारत को स्वतंत्र प्राप्ति का इंतजार करना पड़ा। इन सब बातों का मैंने गहराई से अध्ययन किया था इसलिए दिल्ली में स्वास्थ्य मंत्री के रूप में एक संेटर स्थापित किया जिसका नाम ‘दिल्ली रिसर्च संेटर फाॅर माॅर्डनाइज प्रमोशन आॅफ आयुर्वेदा’ और इसके प्रमुख थे एम्स के फार्मोकोलाॅजी विभागप्रमुख प्रो. जे.एन.शर्मा। जिस प्रकार के विषयों की चर्चा आज यहां हो रही है जिसके बारे में पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने काम किया है, वह सारा काम और आयुर्वेद से जुड़ी हुई जिस भी प्रकार की जानकारी सारे देश में जिस भी माध्यम से प्राप्त हो सकती है उसका सारा काम एक स्थान पर इकट्ठा डिजिटली स्थापित किया जाए, इसका सारा काम ‘दिल्ली रिसर्च सेंटर फाॅर माॅर्डनाइज प्रमोशन आॅफ आयुर्वेदा’ का था। लेकिन दुर्भाग्य से 1998 में हमारी सरकार चली गई और जो सबसिकेंवट सरकारें थी, उन्होंने इस विषय की गहराई, गंभीरता, सात्विकता को समझने का प्रयास नहीं किया। थोड़े ही समय के बाद प्रो. जे.एन. शर्मा के देहान्त के बाद वो सेंटर जिस भाव से बना था, उसका लक्ष्य ही परिवर्तित किया गया। 1999 में मुझे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने आर्गेनाइजेशन में साऊथ ईस्ट एशिया के देशों के लिए काम करने के लिए निमंत्रित किया। उस समय के कुछ तथ्य आपके सामने रखना चाहता हूँ। सन् 2000 में दिनांक 1, 2 व 3 नवम्बर को विश्व स्वास्थ्य संगठन का सबसे प्रतिष्ठित सेंटर जो कोवे जापान में है उस स्थान पर तीन दिन मीटिंग हुई जिसका नाम था ‘हेल्थ एण्ड वेलफेयर सिस्टम डेवलप फाॅर 21 सेंचुरी’। इस मीटिंग में दुनिया से 125 लोगों को बुलाया गया था। भारत से भी 2 लोगों को बुलाया गया था। उन्होंने कैसे सलेक्शन किया था, वह उनका अपना क्राइटेरिया था जिसके बारे में उनको लगता था कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कुछ किया है। उसको उन्होंने चयन किया था। तीन दिन की मीटिंग में बहुत सारे डिश्कशन हुए, वहां पर भी एक किताब का विमोचन किया गया था और वो कोवे रिकमेंडेशन के नाम से जानी जाती है। उसमें 21वीं शताब्दी में भारत या दुनिया के अंदर जो हेल्थ एण्ड वेलफेयर सिस्टम डेवलपमेंट है, उसके संदर्भ में जो बातें की गई उसमें से दो महत्वपूर्ण बातों का आज के परिप्रेक्ष्य मंे उल्लेख करना चाहता हूँ। वह दोनों बातों का पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज से रिलिवेंस है। उस समय सन् 2000 की मीटिंग के रिकमेंडेशन में कहा गया था कि अगर आने वाली 21वीं शताब्दी भारत को या दुनिया को ‘हेल्थ फाॅर आॅल’ इस गोल को प्राप्त करना है तो भारत के पतंजलि योग के माध्यम से दुनिया में सबसे ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक ऊर्जा प्रतिपादित होगी। उसकी एक रिकमेंडेशन यह थी और दूसरी एक रिकमेंडेशन यह थी कि भारत के समान देशों की पारम्परिक औषधियों को फोक्स कर प्रिवेंटिव हेल्थ, प्रोमोटिव हेल्थ, पोजिटिव हेल्थ पर है। 21वीं शताब्दी में सारी दुनिया को बहुत महत्वपूर्ण रोल अदा करना पड़ेगा। ये उस रिकमेंडेशन का अंग था। कोवे का जो रिसर्च सेंटर है, WHO का यह वह स्थान है जो WHO के लिए भी पाॅलिसी बनाने में इंस्ट्रीमिंग करता है और इन पाॅलिसिस को WHO अपने मेम्बर्स के माध्यम से स्टेट को देता है। आज जो आयुर्वेद है, इसके संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सब प्रकार की मान्यता है, सब प्रकार का रिकगनाइजेशन है और अगर मैं दुनिया के देशों की गिनती गिनना शुरू करूं तो प्रमुख देश जो मुझे कम-से-कम ध्यान में आते हैं- आस्ट्रेलिया, न्यूजिलेंड, कोलम्बिया, क्यूबा, मोरिशस, इसी तरीके से हमारे पड़ोस में जो देश है जैसे- बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, चीन, हंगरी आदि ऐसे बहुत सारे देश जो दुनिया के अंदर हैं, इन्होंने तो अपने भारत के आयुर्वेद सिस्टम को रेगुलर मेडिसिन सिस्टम के रूप में लागू किया है। इन्होंने इसको रिकगनाइजेशन किया है। आज भारत में कोई भी आयुर्वेद की डिग्री लिया हुआ डाॅक्टर न्यूजीलैंड जाकर वहाँ पर परीक्षा के बाद आयुर्वेद के चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस कर सकता है। यानि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेद का रिकगनेशन है और अभी आप जानते हैं, थोड़े ही समय पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन के डाॅयरेटर जनरल डाॅ. टैट्रोस ने भारत के प्रधानमंत्री को व्यक्गित तौर पर फोन किया और कहा कि सारी दुनिया का आयुर्वेद का सबसे बड़ा सेंटर जो कम्प्रहेंसिव नाॅलिज बेस्ड, रिसर्च बेस्ड या आयुर्वेद से जुड़ी जो भी कार्य हैं वो सारी दुनिया को प्रतिपादित हो सके, वो हम भारत के अंदर प्रतिस्थापित करना चाहते हैं और आज विश्व स्वास्थ्य संगठन में विश्व स्तर पर काम प्रारम्भ हुआ है कि दुनिया का ग्लोबल सेंटर आयुर्वेद के लिए भारत के अंदर स्थापित हो। एक बात का उल्लेख मैं और करना चाहता हूँ कि साउथ इस्ट एशिया रिजन का विश्व स्वास्थ्य संगठन का 10 साल से ज्यादा समय तक दिल्ली में जो हमारा रिजनल आॅफिस है उसके रिजनल डाॅयरेक्टर डाॅ. हूटाॅन इण्डोनेशियन थे। वर्तमान में दुर्भाग्यवश उनका देहांत हो गया। मैं आपको 90 के दशक की बात बता रहा हूँ। उस समय मैं दिल्ली का स्वास्थ्य मंत्री था और वे स्वयं माॅर्डन मेडिसिन सिस्टम के डाॅक्टर थे। लेकिन उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन से रिटार्यमेंट लिया उससे पहले उन्होंने एक साल लगाकर बहुत महत्वपूर्ण किताब लिखी ‘राॅल आॅफ आयुर्वेदा फाॅर द माॅर्डन वल्र्ड’। उसमें उन्होंने आयुर्वेद के विषय में अपनी जानकारी तथा वर्किंग विद WHO एण्ड वर्किंग विद हेल्थकेयर सिस्टम फाॅर होल वल्र्ड के सन्दर्भ में उन्होंने जानकारी दी तथा अपने अनुभव साझा किए। आयुर्वेद पर कोई बायस होकर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है, लेकिन आज आयुर्वेद की जानकारी वेदों से लेकर सभी स्थानों पर उलब्ध है। यह विकिपीडिया पर भी उपलब्ध है। 1906 में एक ‘हिन्दु सुप्रियोरिटी’ नाम की किताब हरविलास शारदा जी ने। उसमें जो मेडिसिन का अध्याय है उसमें बहुत सारी जानकारियाँ हैं, और वो सारी जानकारियाँ वे हैं जो आयुर्वेद के बारे में या भारत के पारम्परिक औषधियों के बारे में विदेशियों ने कहा है। इसलिए यहाँ जितने भी लोग उपस्थित हैं उनको मैं यह कहना चाहता हूँ कि आयुर्वेद के संदर्भ में जो उपयोगिता है, प्रामाणिकता है, भविष्य में हेल्थकेयर सिस्टम में, रोगी को निरोगी बनाने में जिस प्रकार से सहायता कर सकता है इसके बारे में कोई संशय नहीं होना चाहिए। मुझे इस बात की खुशी है कि 2014 में जब मुझे थोड़े समय के लिए स्वास्थ्य मंत्री बनने का मौका मिला था तो उस समय महत्वपूर्ण काम- पहला पतंजलि अनुसंधान संस्थान का शिलान्यास करने का अवसर मुझे हरिद्वार जाकर मिला तथा बाद में प्रधानमंत्री जी ने देश को समर्पित किया था। उस समय पूज्य स्वामी जी ने कहा था कि मा. प्रधानमंत्री का जो सपना है कि माॅर्डन सांइटिफिक तरीके से आयुर्वेद को दुनिया में प्रस्तुत करने का कार्य इस तरह के संस्थानको करना चाहिए और उसी साल मोदी जी ने आयुष का एक मंत्रालय भारत में स्थापित किया। उसी 6 महीने में जब मुझे स्वास्थ्य मंत्री बनने का मौका मिला तो हमने भारत में पहला नेशनल आयुष मिशन स्थापित किया। यानि इस परिप्रेक्ष्य में पूज्य स्वामी जी महाराज का जो सपना है, वही सरकार का भी है और आज इस बात की खुशी है कि कोविड काल के अन्दर कोविड के लिए प्रिवेंशन और ट्रीटमेंट की दृष्टि से जहाँ एक तरफ बाबा जी के संस्थान ने पूरा रिसर्च किया और प्रेजेंटेशन भी आगे करेंगे। हमारे सामने सबसे बड़ा चैलेंज था हमारे देश के सामने कि हम अच्छे हैं यह हम मानते हैं, दुनिया भी दबे स्वर में मानती है परन्तु स्वीकार नहीं करती है। लेकिन जब हम इसे माॅर्डन साइंटिफिक टूल के साथ प्रस्तुत करेंगे तो इसको कोई चैलेंज नहीं कर सकता। पूज्य आचार्य श्री महाराज बहुत विद्वान् हैं, मैंने उनकी आयुर्वेद की कई पुस्तकें पढ़ी है। कोविड काल में आयुष मंत्रालय ने भारत में 140 स्थान पर 109 प्रकार की स्टडीज की जिसमें 39 स्टडीज प्रोफाइल एक्सस पर तथा 32 स्टडीज ट्रीटमेंट पर कीं। प्री-क्लिनिकल स्टडीज तथा ओब्जर्वेशनल स्टडीज सबके मैंने जो परिणाम देखे, हर प्रकार के इनकरेजिंग व पाॅजिटिव परिणाम सामने आए। कोविड काल में आयुर्वेद देश व दुनिया में और ज्यादा स्थापित हुआ है, आयुर्वेद को और किसी बड़े सर्टिफिकेशन की जरूरत नहीं है। इसको टेक्निकल तरीके से अध्ययन करेंगे तो भारत में 30,000 करोड़ रुपए की आयुर्वेद की अर्थव्यवस्था है। जिसमें प्रामाणिक डाटा के अनुसार प्रतिवर्ष 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती थी। लेकिन ये अभी प्री-कोविड इरा का डाटा है। लेकिन अभी पोस्ट कोविड इरा में हमारे भारत की आयुर्वेद की अर्थव्यवस्था का ग्रोथ रेट जो पहले 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती थी। लेकिन ये अभी प्री-कोविड करा का डाटा है। लेकिन अभी पोस्ट कोविड इरा में हमारे भारत की आयुर्वेद की अर्थव्यवस्था का ग्रोथ रेट जो पहले 15 से 20 प्रतिशत था वह अब 50 से 90 प्रतिशत हो गया है। यह अपने आप में इस बात का सूचक और परिचायक है कि भारत व दुनिया के लोगों ने किस प्रकार आयुर्वेद को स्वीकार किया है। एक्सपोर्ट व फोरन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट की दृष्टि से आयुर्वेद के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियाँ हुई हैं। आचार्य बालकृष्ण जी ने पूज्य स्वामी जी महाराज के मार्गदर्शन में जो रिसर्च किया है, उसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। मार्डन व साइंटिफिक तरीके से आयुर्वेद को पूरी दुनिया में पुनस्थापित करने का जो यज्ञ है उसमें जितनी ज्यादा से ज्यादा आहुतियाँ डाली जाएगी वो भारत के लिए तो गौरव का विषय होगा, लेकिन पूरी मानवता, देश व दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसको विश्वकल्याण का एक बहुत बड़ा प्रकल्प मानकर इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए।

 

योगर्षि पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ‘परमाध्यक्ष-पतंजलि योगपीठ’

चिकित्सा के कोई कम्पिटीशन नहीं है, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। वो इसलिए जरूरी है कि जहाँ समाज में हारमनी जरूरी है, वहीं यहाँ पैथियों में भी हारमनी जरूरी है। अपने पर गर्व होना चाहिए। अपनी निजता तो नफरत क्यों? और कोरोना के प्रीवेंशन के लिए कोरोना के ट्रीटमेंट के लिए जो आफट्री इफैक्ट हैं, लोंग कोरोना है, उसे डील करने के लिए योग-आयुर्वेद से लेकर के श्वासारी, कोरोनिल, अणु तेल से लेकर के जो हमारी पद्धतियाँ हैं, उसको हम निरंतरता के साथ आगे बढ़ाएं तो मुझे लगता है कि थोड़े दिनों के बाद ये सारे कोरोना का रोना धोना, इसके बादल भी छँट जाएंगे और एक नए स्वस्थ विश्व में प्रवेश कर पाएँगे। कुछ लोग दवाई बनाते हैं व्यापार के लिए, हमने व्यापार के लिए कोई दवाई नहीं बनाई। उपचार की भावना से दवाई बनाई है। पिछले 30 वर्षों का डाटा कहूं आपसे तो यदि बाजार से उनके मूल्य का जो डिफ्रैंस है, उसको आप वैल्युएट करें, उसे कैल्कुलेट करें तो 10,000 करोड़ रुपए से ज्यादा के कम मूल्य की औषधियाँ बाजार में यदि मोती पिष्टी 300 रुपए की मिलती है तो हमने 30 रुपए की दी। वहीं शंख भस्म, मुक्ता शुक्ति और अविपत्तिकर चूर्ण और तमाम तरह के रस, रसायन, भस्म, पिष्टी, अवलेह, पाक वो हमने 5 से 10 गुना हमसे ज्यादा की बेच रहे थे। हमारे विशुद्ध रूप से इस देश को बाजार मानकर नहीं, परिवार मानकर के, व्यापार मानकर नहीं उपचार व उपकार की भावना से यह कार्य किया और अभी तो WHO के गवर्निंग काउन्सिल के चेयरमैन हैं, मेरा तो सपना है कि आने वाले 30 सालों में योग-आयुर्वेद में इस कदर कार्य करें कि WHO का हेड आॅफिस इण्डिया में बन जाए। वो सपना है हमारा एक तरफ आत्मनिर्भर भारत का मिशन चल रहा है तो वल्र्ड बैंक, आई.एम.एफ. तथा यू.एन.ओ. भी भारत में क्यों नहीं हो सकता। उसका हेड आॅफिस क्यों नहीं हो सकता। दुनिया बदलती है वक्त के साथ परिप्रेक्ष्य बदलते हैं। आज हम बहुत गौरवान्वित हैं कि दो हमारे केन्द्रीय मंत्रियों ने आकर यह केवल एक संस्था की बात नहीं है, किसी ब्राण्ड की बात नहीं है, यह हमारी संस्कारों की बात है, हमारी परम्पराओं की विरासत की बात है। उस योग-आयुर्वेद की विरासत को अपना आशीर्वाद देकर के, उसका समर्थन देकर के हमें अनुग्रहित किया। मैं एक बार पुनः कृतज्ञित हृदय से इनका आभार व्यक्त करता हूँ।

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