आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप कारण व भेद
On
रूक्ष भोजन न करना- रूक्ष भोजन से विष्टम्भ] उदावर्त] विवर्णता व ग्लानि होती है तथा मात्रा से अधिक खाया जाता है। रूक्ष भोजन से वायु का प्रकोप तथा जलीय अंश के अभाव में मूत्र का अवरोध हो जाता है।
अतिस्निग्धाशिनस्तन्द्रीतृष्णाजीर्णोदरामयाः।
भवन्ति कफमेदोत्था रोगाः कण्ठोद्भवास्तथा।।32।।
अतिस्निग्ध भोजन न करना- अतिस्निग्ध भोजन करने वाले को तन्द्रा] तृष्णा] अजीर्ण] उदररोग हो जाते हैं तथा कफविकार] मेदोजन्य रोग एवं कण्ठरोग भी हो जाते हैं।
विष्टम्भोद्वेष्टनक्लेशचेष्टाहानिविसूचिकाः।
ज्ञेया विकारा जन्तूनामतिबह्वशनोद्भवाः।।33।।
अतिभोजन न करना- अत्यधिक मात्रा में भोजन करने वाले व्यक्तियों को विष्टम्भ, उद्वेष्टन, क्लेश, चेष्टाहानि (निष्क्रियता) तथा विसूचिका (हैजा) आदि रोग हो जाते हैं।
अस्तिोकाशिनोऽत्यग्निविकाराः कृशता भ्रमः।
अतृप्तिर्लघुता निद्राशकृन्मूत्रबलक्षयः।।34।।
अत्यल्प भोजन न करना- बहुत अल्प भोजन करने वाले व्यक्ति को अत्यग्नि (भूख की अधिकता) से होने वाले विकार कृशता] भ्रम] अतृप्ति] लघुता (शरीर का छोटा व हल्का रहना) आदि होते हैं। इससे निद्रा] मल तथा बल का क्षय आदि दोष होते हैं।
अतिद्रवाशनाज्जन्तोरुत्क्लेशो बहुमूत्रता।
पाश्र्वभेदः प्रतिश्यायो विड्भेदश्चोपजायते।।35।।
अति तरल भोजन न करना- बहुत अधिक द्रव (तरल) भोजन करने से व्यक्ति को उत्क्लेश (जी मिचलाना)] बहुमूत्र] पाश्र्वभेद (बगल में पीड़ा) प्रतिश्याय (जुकाम)] विड्भेद (मल का भेदन या पतलापन) हो जाता है।
अतिशुष्काशनं चापि विष्टभ्य परिपच्यते।
पूर्वजातरसं जग्ध्वा कुर्यान्मूत्रकफक्षयम्।।36।।
अतिशुष्क भोजन न करना- अतिशुष्क भोजन जलीय अंश के अभाव में विष्टब्ध होकर पचता है। वह पहले उत्पन्न हुए रस को अपने में मिलाकर मूत्र व कफ का क्षय करता है। अतः अतिशुष्क भोजन नहीं करना चाहिए।
Related Posts
Latest News
15 Jan 2025 12:02:44
कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में से एक है, इसे दुनिया का सबसे बड़ा