विमोचन : भारत प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा
सत्य का कोई आदर्श हो सकता है तो वह महर्षि दयानंद ही हैं: पू.स्वामी जी
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नई दिल्ली। विज्ञान भवन, नई दिल्ली में भारत के माननीय उप राष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ जी ने स्वामी दयानंद सरस्वती पर एक स्मारक डाक टिकट का विमोचन किया। इस कार्यक्रम में भारत सरकार के संचार मंत्रालय तथा डाक विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों व देश भर से पधारे आर्य प्रतिनिधियों, सन्यासियों और मूर्धन्य विद्वानों सहित लगभग 1500 व्यक्ति उपस्थित थे।
सर्वप्रथम, राष्ट्रगान से कार्यक्रम का आरंभ हुआ जिसमें भारत के मा. उप राष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ जी ने अपने सारगर्भित संबोधन में कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती का समारोह बदलते भारत की तस्वीर है। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में आज का दिन महत्वपूर्ण है, 7 अप्रैल को, आज ही के दिन 148 वर्ष पूर्व, स्वामी दयानंद जी ने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी। उन्होंने कहा कि भारत प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है। अनेक महान आध्यात्मिक गुरु, संत और समाज सुधारक इस देश में हुए हैं किन्तु स्वामी दयानंद सरस्वती जी का नाम उनमें अग्रगण्य है। उन्होंने कहा कि आर्य समाज का आदर्श वाक्य है, ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ विश्व को आर्य बनाते चलो, स्वामी दयानंद सरस्वती अपने महान व्यक्तित्व और विलक्षण प्रतिभा के कारण जनमानस के हृदय में आज भी विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि दयानंद सरस्वती के वचन हैं, ‘स्वाधीनता मेरी आत्मा और भारतवर्ष की आवाज है, यही मुझे प्रिय है। मैं विदेशी साम्राज्य के लिए कभी प्रार्थना नहीं कर सकता’। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा साहित्य और व्याकरण की दृष्टि से विश्व में बेजोड़ है। यह अनेक भाषाओं की जननी है और जननी को हम मिटने नहीं दे सकते, हमें संस्कृत को और बढ़ावा देना होगा। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ही सबसे पहले 1876 में ‘स्वराज’ का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वामी जी ने अपनी रचनाओं व उपदेशों के माध्यम से भारतीय जनमानस को मानसिक दासत्व से मुक्त कराने की पूर्ण चेष्टा की। माननीय उप राष्ट्रपति जी ने बताया कि स्वामी दयानन्द सरस्वती के कुछ वचन उन्हें सदैव प्रेरणा देते हैं जैसे, ‘‘जीभ से वही निकलना चाहिए जो अपने हृदय में हैं, सेवा का उच्चतम रूप एक ऐसे व्यक्ति की मदद करना है, जो बदले में धन्यवाद देने में असमर्थ है’’।
पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार से पधारे परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि वैसे तो स्वामी दयानंद सरस्वती जी से पूर्व भी कई महान समाज सुधारक हुए हैं किन्तु यदि समस्त समाज सुधारकों को एक साथ जोड़ दिया जाए तो उससे जिस व्यक्तित्व का निर्माण होगा वह थे महर्षि दयानंद सरस्वती जी क्योंकि उन्होंने कोई ऐसा क्षेत्र नहीं छोड़ जिसमें उन्होंने क्रांति का सूत्रपात नहीं किया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद जी ने घोषित किया कि सभी एक ईश्वर की संतान है और जाति, लिंग, इत्यादि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। महर्षि दयानंद ने साहसपूर्वक न सिर्फ हिन्दू धर्म में वरन मुस्लिम और ईसाई धर्मों और अन्यानय संप्रदायों में व्याप्त समस्त गलत व्याख्याओं के विरुद्ध आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि यदि सत्य का कोई आदर्श हो सकता है तो वह महर्षि दयानंद ही हैं और ऐसे ही आदर्शों का संकलन है उनके द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश जिसका एक प्रोडक्ट वह स्वयं हैं। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी जी भी महर्षि दयानंद के ही आदर्शों पर चलते हैं। उन्होंने कहा कि हम सभी का जन्म महर्षि दयानंद के पदचिन्हों पर चलने के लिए ही हुआ है जो न जातिवादीथे, न पलायनवादी, न प्रमादी बल्कि वेद-वादी और राष्ट्रवादी थे।
परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश से पधारे, स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने महर्षि दयानन्द सरस्वती के समाज कल्याण एवं सेवा कार्यों प्रकाश डाला और कहा कि आज वेद, योग और आयुर्वेद को लेकर दूसरा शंखनाद हो रहा है जो भारत को महान भारत बनाने के लिए है।
डाॅ सत्य पाल सिंह जी ने इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने के लिए उपस्थित हुए सभी व्यक्तियों का आभार व्यक्त करते हुए उन्हें बधाई दी। उन्होंने यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का आभार प्रकट किया कि उन्होंने महर्षि दयानंद जी के 200वें जन्म जयंती वर्ष को सरकार के स्तर से मनाने हेतु मार्ग प्रशस्त किया।
इस अवसर पर पू.स्वामी रामदेव जी एवं स्वामी चिदानंद जी द्वारा मा.उप राष्ट्रपति जी को रुद्राक्ष का पौधा भेंट किया गया। साथ ही, आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक द्वारा स्वरचित ‘वेदविज्ञान आलोक’ पुस्तक की एक प्रति भी मा. उप राष्ट्रपति महोदय को भेंट की गई।
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