मकर संक्रांति के पावन पर्व पर पतंजलि योगपीठ में यज्ञ का आयोजन

जल्द ही आयुर्वेद में टी.बी. की दवा, पहली आयुर्वेदिक एंटीबाॅयोटिक तथा पहली आयुर्वेदिक एण्टी एजिंग दवा पतंजलि में बनने वाली है: स्वामी रामदेव

मकर संक्रांति के पावन पर्व पर पतंजलि योगपीठ में यज्ञ का आयोजन

हरिद्वार। मकर संक्रांति के अवसर पर पतंजलि योगपीठ-।। के सभागार में विश्वकल्याण हेतु यज्ञ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर परम पूज्य स्वामी जी महाराज तथा परम पूज्य आचार्य जी महाराज ने देशवासियों को मकर संक्रांति पर्व की शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।
       कार्यक्रम में परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने देशवासियों से आह्वान किया कि मकर संक्रांति के पावन पर्व पर देश को आर्थिक गुलामी के साथ-साथ शिक्षा, चिकित्सा, वैचारिक व सांस्कृतिक गुलामी व आत्मग्लानि से बाहर निकालें। उन्होंने कहा कि उत्तरायण में हम सूर्य की भांति तेजस्वी, पराक्रमी, गति व प्रगतिशील बनकर अखण्ड प्रचंड पुरुषार्थ का संकल्प लेकर उत्तरोत्तर उत्तरायण में आगे बढ़ने का संकल्प लें। उन्होंने कहा कि अपने वैयक्तिक व सामाजिक जीवन में गीता, दर्शनों, उपनिषदों, सत्य धर्म, वेद धर्म का, सनातन धर्म का पालन करें, योग का अभ्यास करें, सारे रोग और जन्म-जन्मांतरों के दुःख स्वतः ही नष्ट हो जाएंगे। स्वामी जी महाराज ने कहा कि पतंजलि के प्रयासों से लोगों में आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ा है। लोग अपने घर में मुक्तावटी, बीपी ग्रिट, मधुनाशिनी, मधुग्रिट, मेधावटी, रीनोग्रिट रखते हैं। जल्द ही आयुर्वेद में टी.बी. की दवा, पहली आयुर्वेदिक एंटीबाॅयोटिक तथा पहली आयुर्वेदिक एण्टी एजिंग दवा पतंजलि में बनने वाली है। कैंसर को भी हमने आयुर्वेद से परास्त किया है।
                इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश का दिन मकर संक्रांति के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बताया कि देश के अलग-अलग प्रांतों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। जहाँ आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है वहीं तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। जबकि पंजाब और हरियाणा में इसे लोहड़ी तथा असम में बिहू के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि भले ही विभिन्न प्रांतों में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग हो लेकिन पर्व भारत को अनेकता में एकता रूपी सूत्र में पिरोता है। आचार्य जी ने कहा कि शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व है। इस दिन का इतना महत्व है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था।
                पूज्या साध्वी देवप्रिया जी, बहन ऋतम्भरा शास्त्री, श्री अजय आर्य, श्री महावीर जी, डाॅ. जयदीप आर्य, स्वामी परमार्थदेव, स्वामी आर्षदेव, डाॅ. अनुराग वाष्र्णेय, डाॅ. वेदप्रिया आर्य, बहन प्रवीण पुनिया, श्री प्रदीप नैन, श्रीमती वंदना मेहता आदि वरिष्ठजनों ने पतंजलि गुरुकुलम् तथा आचार्यकुलम् के बच्चों के साथ यज्ञ में भाग लिया।
 
·         विभिन्न प्रांतों में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग हो लेकिन पर्व भारत को अनेकता में एकता रूपी सूत्र में पिरोता है।

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