ब्रह्मलीन पूज्य स्वामी मुक्तानन्द जी महाराज की स्मृति में श्रद्धांजलि कृतज्ञता सभा आयोजित

13 अखाड़ों के शीर्ष संतों ने दी पूज्य मुक्तानन्द जी को श्रद्धांजलि

ब्रह्मलीन पूज्य स्वामी मुक्तानन्द जी महाराज की स्मृति में श्रद्धांजलि कृतज्ञता सभा आयोजित

    हरिद्वार। ब्रह्मलीन पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी महाराज की स्मृति में पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में श्रद्धांजलि कृतज्ञता-सभा का आयोजन किया गया जिसमें सनातन संस्कृति से जुड़े देश के शीर्ष संतगणों ने अपनी भावांजलि, सुमनांजलि, कुसुमांजलि भेंट की। इस अवसर पर पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी महाराज एक निष्काम भाव सच्चे संत व पतंजलि की ऊर्जा के केन्द्र थे। वे एक जीवनमुक्त महापुरुष, समस्त ऐषणाओं से मुक्त, अकाम-निष्काम कर्मयोगी, प्रबल प्रकृति प्रेमी, वैयाकरण विद्वान, योगी महात्मा संन्यासी थे। उनके प्रति कृतज्ञता, उपकारों का पुण्य स्मरण करते हुए उनकी सप्तदशी का यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है। उन्होंने कहा कि उनके महाप्रयाण पर पतंजलि योगपीठ परिवार के साथ-साथ पूरा संत समाज शोक संतप्त है। पूज्य स्वामी जी महाराज स्वामी मुक्तानंद जी को याद कर भाव विह्वल हो गए। उन्होंने कहा कि पूज्य स्वामी जी के कार्यों और योगदान को पुण्य स्मरण करते हुए हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पण करते हैं।

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     इस अवसर पर उन्होंने कहा कि पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी चाहते थे कि पतंजलि योगपीठ आध्यात्मिक दृष्टि से, आंतरिक दृष्टि से सुदृढ़ हो, पतंजलि के संन्यासी अत्यंत यशस्वी हों, संस्था की राष्ट्र और विश्वव्यापी योजनाओं का नेतृत्व हमारे संन्यासी करें। आने वाले 5-10 वर्षों में हमारे संन्यासी इतने समर्थ हो जाएँगे कि एक स्वामी मुक्तानंद जी नहीं यहाँ सैकड़ों स्वामी मुक्तानंद उसी संकल्प से अनुप्राणित होकर योगधर्म, ऋषिधर्म को निभाएँगे, ऐसा मेरा विश्वास है। हम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के साथ कई दौर की वार्ता के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि भविष्य में दिव्य योग मंदिर (ट्रस्ट) व पतंजलि योगपीठ (ट्रस्ट) का ट्रस्टी कोई गृहस्थी नहीं अपितु केवल संन्यासी ही होगा। दिव्य योग मंदिर (ट्रस्ट) व पतंजलि संन्यासाश्रम में हमारी वरिष्ठ संन्यासिनी बहनें साध्वी देवप्रिया, साध्वी देवमयी, साध्वी देवश्रुति, साध्वी देवादिति व साध्वी देववरण्या आदि रहेंगी। इसी प्रकार पतंजलि योगपीठ (ट्रस्ट) में स्वामी परमार्थदेव, स्वामी आर्षदेव, स्वामी ईशदेव, स्वामी विदेहदेव रहेंगे। पतंजलि गुरुकुलम् में स्वामी मित्रदेव, स्वामी हरिदेव व स्वामी आत्मदेव आदि रहेंगे। योजना को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए वैधानिक प्रक्रियाओं को शीघ्र पूर्ण कर लिया जाएगा। श्रद्धांजलि सभा में पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी महाराज हमारे ज्येष्ठ भ्राता थे। पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी के साथ हमारा 30-35 वर्षों का साथ रहा। प्रकृति के प्रति उनकी निष्ठा, आध्यात्मिक निष्ठा व सांस्कृतिक निष्ठा को सब जानते हैं। वे वैयाकरण विद्वान् थे। उन्होंने अपने हाथों से लगभग 20-25 लाख पेड़-पौधे लगाए। पतंजलि की इस दिव्यता, भव्यता व वैभवता के पीछे पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी का निष्काम तप निहित है। सहज, सरल, सौम्य और प्रसन्नचित्त रहने वाले पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी महाराज का जीवन हम सबके लिए प्रेरणा पुंज रहेंगे। आचार्य जी ने बताया कि हमारी योजना पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी महाराज का जीवन व स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित करने की है जिससे समाज उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें। उनके अपार प्रेम, करुणा, वात्यल्य के लिए मेरी ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

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   इस अवसर पर जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद जी महाराज ने कहा कि स्वामी मुक्तानंद जी महाराज परमार्थ का दूसरा नाम हैं। जिस प्रकार पेड़-पौधे-फूल अपना सब कुछ दूसरों को अर्पण कर देते हैं उसी प्रकार उन्होंने भी दूसरों के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। पतंजलि विविध क्षेत्रों में भविष्य की सभी तरह की उन्नतियों का आधार बन रही है। यहाँ पर न केवल योग-औषधियों के द्वारा रोगों का उपचार किया जा रहा है अपितु पतंजलि उद्यमों के द्वारा आर्थिक रोगों को भी दूर कर रहा है। मनुष्य का जन्म भी ज्ञान अर्जन के बाद अर्थ अर्जन के लिए ही हुआ है। उसके उपरान्त पूर्ण अर्जन करना उसका तीसरा कर्तव्य है। आज पतंजलि ने देश के सम्मुख अनेकों उत्तराधिकारियों को भविष्य में नेतृत्व करने के लिए व सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करने के लिए प्रस्तुत किया है। अंत में मैं पुनः मुक्तानंद जी को याद करते हुए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
  • निरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी कैलाशानंद जी महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी महाराज दिव्य पुरुष थे, सच्चे साधक व सरल व्यक्तित्व के धनी थे। उनके अन्तःकरण में माँ भगवती के प्रति अपार श्रद्धा के साथ-साथ समर्पण, विश्वास साक्षात्कार की अनुभूति का एहसास था। पतंजलि योगपीठ के प्रति उनका जो समर्पण, श्रद्धा व विश्वास था, उसके लिए वे वंदन के पात्र हैं। सतत संन्यासी जिस कर्मयोग की ओर जाते हुए धर्म को स्वीकार करता है, पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी महाराज उसमें अग्रगण्य थे। पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी का सूक्ष्म शरीर व सूक्ष्म कण पतंजलि के लिए सतत समर्पण रहेगा।
  • जगद्गुरु आश्रम के पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य राजराजेश्वरानंद जी महाराज ने कहा कि स्वामी मुक्तानंद जी मुक्त हो गए और जैसा उनका नाम था- मुक्त और आनंद, उसके अनुरूप ही वे जीवन में मुक्त रूप से आनंदित रहते थे। उनकी सरलता संन्यस्त जीवन के प्रथम लक्षण को परिलक्षित करती थी। वे एक सच्चे संन्यासी थे। केवल भगवा वस्त्र धारण करना ही संन्यास नहीं है, निष्काम भाव से एक सच्चे संन्यासी का जीवन, का जीवन जीना ही संन्यास है।
  • अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष पूज्य स्वामी रविन्द्रपुरी जी महाराज ने कहा कि प्राचीनकाल में ऋषियों की संस्कृति रही थी कि प्रत्येक विषय पर शोध करना। पूज्य स्वामी मुक्तानंद जी महाराज ने भस्म विज्ञान के महान ज्ञाता थे। भस्म के विषय में जितना ज्ञान स्वामी मुक्तानंद जी महाराज को था उतना आज के वैज्ञानिकों को भी नहीं है।
  • परमार्थ निकेतन के संस्थापक पूज्य स्वामी चिदानंद मुनि जी महाराज ने कहा कि पूज्यपाद स्वामी मुक्तानंद जी महाराज दिव्यता और सादगी का संगम थे। ऐसे संन्यासी महापुरुष जो समाज के लिए, सर्वस्व के लिए जीते हैं उनका स्मरण होता है और जो परमात्मा को सब कुछ मानकर स्वयं को निमित्त मानकर समर्पित हो जाते हैं उनका पुण्य स्मरण होता है।
  • महामण्डलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद जी महाराज ने कहा कि संन्यास परम्परा के महान संत को संन्यास परम्परा के 13 अखाड़ों के शीर्ष संत भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहे हैं। मेरा प्रश्न है कि क्या एक यति के देहावसान को श्रद्धांजलि की आवश्यकता पड़ती है? उनका महाप्रयाण ऐसा है जैसे सरिता सागर में समा गई हो। योग विद्या के साथ-साथ अध्यात्म, व्याकरण पर भी उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। मुक्त तो मुक्त होता नहीं, वह तो स्वयं मुक्तानंद थे।
  • कार्यक्रम में विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि मनुष्य कितनी आयु तक जीवन जीता है यह बड़ी बात नहीं है, अपनी आयु में वह देश व समाज के लिए क्या अर्पण करता है यह बड़ी बात है। छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, महर्षि विवेकानंद आदि महापुरुषों ने अल्पायु में देहत्याग कर दिया किन्तु उनके जीवन से आज हमारी युवा पीढ़ियाँ प्रेरणा लेती हैं। महापुरुषों का न तो जन्म होता है और न ही उनकी मृत्यु होती है, वे अन्र्तध्यान होते हैं। स्वामी मुक्तानंद जी महाराज की दिव्य अनुभूति पतंजलि संस्थान के कण-कण में की जा सकती है। उन्होंने कहा कि श्रद्धांजलि उन्हें मिलती है जिन्होंने जगत के लिए कुछ दिया हो।
  • इस अवसर पर गुरुकुल कालवा के पूज्य स्वामी आचार्य राजेन्द्र जी, डुमेट आश्रम से स्वामी प्रेम विवेकानंद जी, बड़े उदासीन बड़ा अखाड़ा के महंत रघुमुनि जी महाराज, कोठारी दामोदर दास जी, स्वामी कमल दास जी, बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र स्वरूप शास्त्री जी, परमार्थ निकेतन से साध्वी भगवती जी, गरीबदासीय आश्रम के स्वामी हरिहरानंद जी महाराज, महामण्डलेश्वर स्वामी जगदीश दास जी, स्वामी चन्द्र उदासीन महाराज, स्वामी सम्पूर्णानंद जी महाराज, गीता विज्ञानानंद जी, स्वामी भागवत् स्वरूप जी, फक्कड़ नाथ जी, सतपाल ब्रह्मचारी जी, काशी विश्वनाथ से ब्रभूषण ओझा जी, निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह जी आदि उपस्थित रहे। पतंजलि योगपीठ से डाॅ. यशदेव शास्त्री, श्री रामभरत, साध्वी आचार्या देवप्रिया, डाॅ. जयदीप आर्य, श्री राकेश कुमार, बहन अंशुल, बहन पारूल, स्वामी परमार्थदेव सहित समस्त अधिकारीगण, कर्मयोगीगण, संन्यासी भाई व साध्वी बहनें उपस्थित रहे।

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