स्वामी दर्शनानन्द गुरुकुल महाविद्यालय का गौरवमय इतिहास व विषिश्ट सम्मतियाँ
500 करोड़ की लागत से बनने वाले पतंजलि गुरूकुलम एवं आचार्यकुलम का हुआ शिलान्यास
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पूज्य स्वामी दर्शनानंद ने 118 वर्ष पूर्व गुरुकुल ज्वालापुर के रूप में एक पौधा रोपित किया था जो आज वट वृक्ष का रूप ले चुका है और पुष्पित, पल्लवित होकर समाज व राष्ट्र की सेवा कर रहा है। समय केसाथ गुरुकुल की आभा मन्द पडऩे लगी, तो गुरुकुल के शुभचिंतकों के आग्रह पर वर्तमान में इसके संचालन का दायित्व योगऋषि परम श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी महाराज व परम पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के कुशल निर्देशन में पतंजलि योगपीठ के मजबूत कन्धों पर है। पतंजलि योगपीठ के 29वें स्थापना दिवस, पतंजलि योगपीठ महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जयन्ती एवं गुरुकुल के संस्थापक पूज्य स्वामी दर्शनानन्द जी की जयन्ती के अवसर पर पतंजलि योपगीठ परिवार ने ‘स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय’ व आचार्यकुलम् का शिलान्यास किया। इस परियोजना में 250 करोड़ की लागत से गुरुकुल व 250 करोड़ की लागत से आचार्यकुलम् स्थापित किया जाएगा जिसके गवाह देश के जननायकों- माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह, मध्य प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव, उत्तराखण्ड के युवा मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी, माननीय केन्द्रीय कानून एवं न्याय मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल, माननीय राज्य सभा सांसद श्री सुधांशु त्रिवेदी, संत समाज, आर्य समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति व आर्य भजनोपदेशक व विद्वान रहे।स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल, ज्वालापुर का अपना गौरवमयी इतिहास रहा है। गुरुकुल की इस धरा को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, देश के प्रथम राष्ट्रपति तथा 5-5 प्रधानमंत्रियों ने प्रणाम कर आशीर्वाद लिया है। महर्षि दयानंद के स्वप्र को पूरा करने तथा गुरुकुल की इस परम्परा को पूरे विश्व में प्रचारित-प्रसारित करने का बीड़ा अब परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के दिशानिर्देशन में पतंजलि योगपीठ ने उठाया है। गुरुकुल ज्वालापुर की भूमि को प्रणाम कर विशिष्ट गणमान्यों ने विशिष्ट सम्मतियाँ दी हैं जिन्हें यहाँ आपके सक्षम प्रस्तुत किया जा रहा है- |
मैं महाविद्यालय ज्वालापुर की हृदय से उन्नति चाहता हूँ।
-राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (अप्रैल 1920)
ज्वालापुर महाविद्यालय एक पवित्र एवं आदर्श स्थान है।
- पण्डित जवाहर लाल नेहरू,
प्रधानमंत्री भारत सरकार (13 अप्रैल 1962)
श्री प्रकाशवीर शास्त्री का बहुत समय से आग्रह था कि मैं गुरुकुल महाविद्यालय जाऊँ। इच्छा रहते हुए भी मुझे इसका जल्दी अवसर नहीं मिला। इस बार अप्रैल 1961 में इसके दीक्षान्त समारोह में सम्मिलित होने का अवसर मिला। मुझे और भी अधिक खुशी इसलिए होती है, क्योंकि मेरा सम्पर्क उस समय से रहा है, जब स्वर्गीय पंडित पद्मसिंह शर्मा यहाँ रहा करते थे। इसलिए यहाँ आकर पुराने संस्मरण ताजा हो गए।
ऐसे स्थान हमारी प्राचीन संस्कृति के आदर्श बन सकें, आंखों के सामने प्रस्तुत कर देते हैं। आधुनिक शिक्षण पद्धति के साथ गुरुकुल प्रणाली का समन्वय यदि हम कर सकें तो मुझे इसमें संदेह नहीं कि इस प्रकार के समन्वय से हमारे देश को फायदा होगा। मैं इस महाविद्यालय की दिनोंदिन उन्नति चाहता हूँ और अध्यापकों तथा छात्रों को बधाई देता हूँ।
-डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद,
राष्ट्रपति भारत सरकार (20 मई 1962)
मैंने आज गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर को देखा। मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि यह गुरुकुल 42 वर्षों से लगातार सैकड़ों विद्यार्थियों को बिना किसी प्रकार के शुल्क के संस्कृत और हिन्दी की उच्चतम शिक्षा दे रहा है। इस संस्था से निकले हुए स्नातकों ने विशेष रूप से राष्ट्रीय सेवा और असहयोग आन्दोलनों में भाग लिया है, यह हर्ष की बात है। इस संस्था के अधिकारियों से मुझे विशेष रूप से यह कहना है कि वे इसको स्वावलम्बी संस्था बनावें। विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ ही शिल्प और उद्योग की भी पूरी शिक्षा दें। आर्थिक सहायता के सम्बन्ध में सरकार विचार करेगी। इस संस्था के पास जो भूमि कृषि योग्य है, उसको कृषि के नवीन साधनों का उपयोग करके, अधिक से अधिक उपजाऊ बनाया जाए। मैं इस शिक्षा-संस्था की हृदय से उन्नति चाहता हूँ।
-गोविन्द वल्लभ पन्त,
मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार (13 अप्रैल 1950)
यह गुरुकुल निःस्वार्थ सेवी विद्वानों और कर्मठ कार्यकर्ताओं द्वारा चलाया जा रहा है। यह उत्तम कार्य कर रहा है।
-क0मा0 मुन्शी,
राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार (१७ अप्रैल १९५३)
गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर अच्छा कार्य कर रहा है। यह तपस्वी विद्वानों और कार्यकर्ताओं से संचालित है। इसको प्रोत्साहन अवश्य मिलना चाहिए।
-क0मा0 मुन्शी,
राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार (२७ अप्रैल १९५३)
श्री नरदेव जी की तपस्या और लगन का फल है कि इतनी कठिनाइयों के होते हुए भी इतने लम्बे अर्से तक यह संस्था समाज की सेवा करती रही। संस्था पर और यहाँ के कार्यकर्ताओं और ब्रह्मचारियों पर कुलपति की और मेरी यह कामना है कि यह संस्था निरंतर फलती-फूलती रहे और यहाँ के निकले हुए छात्र समाज के सच्चे सेवक बनें।
-कालूलाल श्रीमाली,
शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
आज इस गुरुकुल में दीक्षान्त भाषण देने के लिए मुझे अवसर मिला, तब मुझे इस सुन्दर संस्था का कुछ परिचय हुआ। इस संस्था का हमेशा विकास होता रहे, यही मेरी परमात्मा से प्रार्थना है।
- मोरारजी देसाई,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार
गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है।
- वी0 सत्यनारायण रेड्डी,
राज्यपाल, उत्तर प्रदेश (१३ अप्रैल १९६१)
आज इस विद्यामन्दिर में आने का अवसर मिला। मैं अपने को धन्य मानता हूँ। इन संस्थाओं से एक प्रेरणा मिलती है। उदात्त भावनाएँ, संकल्प शक्ति, निष्ठा और कर्मठता के सन्देश का उद्भव इन्हीं विद्यामन्दिरों से होता है, इसी कारण ये पूजनीय हैं, दर्शनीय हैं। मेरी शुभकामना है कि यह विद्यालय भविष्य में निरन्तर उन्नति के पथ पर अग्रसर होता रहे।
- चन्द्रशेखर,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार (१३ अप्रैल १९९१)
आज गुरुकुल ज्वालापुर देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दीक्षान्त अभिभाषण भी देने का सौभाग्य मिला। मेरी शुभकामनाएँ।
- यशवंतराव चव्हाण,
गृहमंत्री, भारत सरकार (१४ अप्रैल १९६४)
बालक-बालिकाओं को संस्कृत के मूल्य से परिचित कराना चाहिए। शिक्षा का माध्यम यदि महाविद्यालय जैसी संस्थाओं में संस्कृत ही हो तो अत्युत्तम है। विज्ञान के नये-नये शब्दों का समावेश संस्कृत में उदारता से करना चाहिए।
-श्री मा0डाॅॉ चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख,
शिक्षा मंत्री, भारत सरकार (१५ अप्रैल १९५७)
आज जो कुछ भी देखा है, उससे बड़ी प्रेरणा मिली है। जिन कठिनाइयों का सामना इस संस्था ने किया है, वही इस बात का विश्वास दिलाता है कि इसकी भाग्यरेखा अमिट है।
-तारकेश्वरी सिन्हा,
मंत्री भारत सरकार (११ अप्रैल १९६0)
ये मेरा सौभाग्य है कि मैं आज गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर आ सका हूँ, ये विश्वविद्यालय जल्दी बनना चाहिए क्योंकि यहाँ सनातन वेदों का ज्ञान सिखाते हैं, इससे सनातन धर्म को प्रोत्साहन मिलता है।
-जी0वी0जी0 कृष्णमूर्ति,
पूर्व निर्वाचन आयुक्त, भारत सरकार (२१ जन. २00१)
भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति को जीवित रखकर इस संस्था द्वारा समाज की जो सेवा की जा रही है, उसका मूल्यांकन आज की भोगवादी सभ्यता नहीं कर सकती।
-सुन्दरलाल बहुगुणा (१७ जनवरी १९९६)
महाविद्यालय के स्नातकों ने जो वेद प्रचार-प्रसार और आर्यसमाज दर्शन को जन-जन तक पहुँचाने का प्रशंसनीय कार्य किया है। उसके लिए हम सब ऋणि रहेंगे।
-अमर ऐरी, प्रधान,
आर्य समाज ट्रस्टी, टोरंटो, कनाडा (२९ अप्रैल २00२)
बहुत दिनों के बाद आज गुरुकुल महाविद्यालय में आकर और अपने पुराने सम्मानित सहयोगी पं. नरदेव शास्त्री जी से मिलकर परमानंद हुआ। इस सुन्दर और उपयोगी संस्था की इतनी समृद्धि और उन्नति देखकर बड़ा संतोष हुआ। पं. नरदेव शास्त्री जी का उत्साह वैसा ही है जैसा पहले था।
-श्रीप्रकाश, राज्यपाल, महाराष्ट्र प्रदेश
(१८ सितम्बर १९६0)
स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय को लेकर पतंजलि की भावी योजना
शिलान्यास कार्यक्रम में परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने बताया कि गुरुकुल ज्वालापुर से तीन बड़े प्रकल्प संचालित किए जाने की योजना है जिसमें पहला लक्ष्य लगभग 250 करोड़ की लागत से तैयार होने वाला 7 मंजिला भव्य पतंजलि गुरुकुलम् होगा। इस गुरुकुल में लगभग 1500 विद्यार्थियों की आवासीय व्यवस्था होगी। नालंदा तथा तक्षशिला की भांति इस गुरुकुल में पूरे विश्व से विद्यार्थी भारतीय शिक्षा, संस्कृति तथा परम्पराओं का ज्ञान प्राप्त कर पूरे विश्व में सनातन व भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक बनेंगे।
इसके अतिरिक्त यहाँ लगभग 250 करोड़ की लागत से आचार्यकुलम् की शाखा स्थापित की जाएगी जिसमें लगभग 5000 बच्चे डे-बोर्डिंग का लाभ ले सकेंगे। साथ ही यहाँ महर्षि दयानन्द अतिथि भवन बनाने की भी योजना है।
यहाँ बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ वो संस्कार दिए जाएँगे जिससे वे अपनी संस्कृति व अपनी जड़ों से जुड़ सकें। पूरे देश में सनातन के गौरव का कालखण्ड चल रहा है। एक ओर सनातन का बोध, भारत का बोध और दूसरी तरफ आधुनिक विषयों का बोध, यानि देश की सर्वश्रेष्ट आध्यात्मिक शिक्षा, सनातन की शिक्षा, भारत बोध, चरित्र निर्माण के साथ राष्ट्र निर्माण का, गौरव व स्वाभिमान का भाव बच्चों के भीतर जागृत किया जाएगा। यहाँ श्रेष्ठतम आधुनिक शिक्षा और श्रेष्ठतम प्राच्य विद्या दोनों का संगम होगा। हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत से लेकर कम से कम विश्व की 5 भाषाओं का बोध पतंजलि गुरुकुलम् व आचार्यकुलम् के बच्चों को होगा।
प.पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने बताया कि चैहान समाज के लोगों ने गुरुकुल की सुरक्षा करने में बड़ी भूमिका रही है, अतः यहाँ सम्राट पृथ्वीराज चैहान जी की प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी। उन्होंने कहा कि यहाँ 1 से 2 वर्ष के भीतर एक कम्यूनिटी सेन्टर बनाया जाएगा जिसका लाभ हरिद्वार के लोगों को मिलेगा।
गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के यशस्वी स्नातक
1- पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य (प्रखर वक्ता एवं दार्शनिक, २0 सितम्बर १९११-२१ जून १९९0)
आपने महान व्यक्तित्व मदन मोहन मालवीय जी से यज्ञोपवीत एवं गायत्री मन्त्र की दीक्षा ली थी। आचार्य जी एक युग द्रष्टा मनीषी थे जिन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना की। उन्होंने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिए समर्पित किया। आपका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, अध्यात्मविज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व द्रष्टा का समन्वित रूप था।
2- पं. प्रकाशवीर शास्त्री जी (प्रखर वक्ता एवं सांसद, ३0 सितम्बर १९२३-२३ नवम्बर १९७७ (रेल दुर्घटना में निधन)
निवास ग्राम रहरा, जिला मुरादाबाद। तीन बार लोक सभा के निर्दलीय सांसद रहे। आर्य समाज के प्रखर वक्ता, विलक्षण तर्कशक्ति के धनी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था कि प्रकाशवीर जी उनसे भी बेहतर वक्ता थे।
3- आचार्य देवव्रत जी (जन्म १८ जनवरी, १९५९)
आप भारतीय राजनीतिज्ञ एवं शिक्षाविद् हैं। आर्य समाज के प्रबल प्रचारक हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र गुरुकुल में प्राचार्य थे। आप अगस्त 2015 से 21 जुलाई 2019 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किए गये थे। वर्तमान में आप गुजरात प्रान्त के 20वें राज्यपाल के रूप में अपनी सेवायें प्रदान कर रहे हैं। आप गुजरात प्रान्त के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के सम्मानित पद को सुशोभित कर रहे हैं।
4- आचार्य सुधांशु जी (कथावाचक)
आप सम्मानित आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं जो अपनी गहन शिक्षाओं और मानवीय प्रयासों के लिए प्रसिद्ध हैं। आप विश्व जागृति मिशन के संस्थापक हैं। आपका मुख्य सन्देश आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग के रूप में प्रेम, शांति और एकता के महत्व को प्रकाशित करना है। आपके वैश्विक स्तर पर अनेकों अनुयायी हैं जो आपके समावेशी और अन्तर-धार्मिक संवाद से प्रेरित हैं।
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