महापरायण यज्ञ : हर्ष और उल्लास से मना बसंत उत्सव
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हरिद्वार। पतंजलि में वसंत ऋतु का स्वागत व मकर सक्रांति से प्रारंम्भ हुआ महापरायण यज्ञ की भी पूर्ण आहुति पावन दिन पर दी गई। श्रद्धेय स्वामी जी और पूज्य आचार्य जी ने यज्ञ में सम्मिलित सभी यजमानों पर पुष्प वर्षा करते हुए वसंत ऋतु का शुभ आशीष प्रदान किया। वेदों के मंत्रों के उच्चारण के बीच समाप्त हुए महापरायण यज्ञ पर पूज्य स्वामी जी ने कहा कि वसंत पंचमी के दिन विद्यार्थियों को माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
श्रद्धेय स्वामी जी ने आज के शुभ अवसर पर सभी माता-बहनों से आग्रह किया है कि वह अपने बच्चों में अच्छे संस्कार देने की कोशिश करें । राष्ट्र में फैले अराजकता के माहौल पर सांकेतिक शब्द का प्रयोग करते हुए श्रद्धेय स्वामी जी ने कहा है कि राष्ट्र भी एक धर्म है उसी प्रकार राष्ट्र में रहने वाले नागरिकों का भी एक धर्म होता है जिसका निर्वहन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करना चाहिए। स्वामी जी ने कृषि को भी धर्म के साथ जोड़ा क्योंकि किसान का धर्म राष्ट्र के नागरिकों का पोषण करना होता है। उसी प्रकार उद्योगों को भी स्वामी जी ने धर्म के साथ जोड़ते हुए कहा है कि उद्योग भी एक धर्म है जो राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को निरंतर गतिवान बनाए रखता है जिस कारण कोई भी राष्ट्र स्वयं को गौरवांवित महसूस करता है मगर कुछ बुद्धिष्ट, वेदांतियों और कम्युनिस्टों ने उद्योंगों को बदनाम करने का कुचक्र रचा हुआ है वह इन उद्योगों को धंधे जैसे शब्दों से उद्घोशित करके निंदनीय कार्य कर रहे हैं। यह सभी निन्दा के पात्र हैं।
श्रद्धेेय स्वामी जी ने अखाड़ों की परम्पराओं के सम्मान में बोलते हुए कहा कि उदासीन पंचायती अखाड़ा बहुत बड़ा अखाड़ा है जहाँ पर सभी तपस्वी संतों का वास है पंचायती अखाडे को पंचायती इसलिए बोला जाता है क्योंकि यहाँ पर लोकतांत्रिक परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है यहाँ के तपस्वी संत हमेशा वेदों से जुड़ी हमारी संस्कृति व उनके ज्ञान की परम्पराओं को समाज में रोपित करने का काम करते हैं। संत हमेशा राष्ट्र कल्याण की बातें करते हैं और हमेशा राष्ट्र कल्याण के विषय में ही सोचते हैं। उदासीन अखाड़े से आए श्री महंत महेश्वर दास जी के स्वागत में श्रदेय स्वामी जी ने अपने विचारों को सभी उपस्थित जनों के साथ साझा किया। पूज्य आचार्य जी ने वसंत पंचमी पर सभी देशवासियों व समस्त पतंजलि परिवार को शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि आयुर्वेद के गौरव का दिन है जब वनस्पतियां अपना रंग-रूप बदलती हैं जिसके कारण सम्पूर्ण वातावरण में उष्णता के कारण प्रसन्नता की अनुभूति होती है जिसका व्याख्यान बेल, लताओं द्वारा स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वसंत ऋतु पर बोलते हुए पूज्य आचार्य जी ने कहा है कि जिस प्रकार वातावरण में परिवर्तन आता है उसी प्रकार से मानव शरीर में भी परिवर्तन आते हैं इसलिए शरीर की शुद्धि के लिए उपवास रखने अति आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थीगण वेद पाठों का स्मरण करें व वेदों को अपने घर में रखें क्योंकि वेद हमारी सनातन परंपरा का हिस्सा हैं।
महापरायण यज्ञ के समापन समारोह में श्री पदमसैन आर्य व उनका समस्त परिवार सम्मिलित था वहीं पर पूज्य स्वामी रामदेव जी ने पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी व डाॅ. यशदेव शास्त्री, रामभरत जी, श्रीहरि चेतनानंद जी इस महापरायण यज्ञ की पूर्ण आहुति के उपलक्ष्य में सम्मिलित रहे।
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