आयुर्वेद अमृत
आयुर्वेद में वर्णित अजीर्ण का स्वरूप, कारण व भेद
On
आम-अजीर्ण-अर्श-वर्चोविबन्ध चिकित्सा- गुडशुण्ठी आदि रोग (योग.सं.-30-33)
गुडेन शुंठीमथवोपकुल्यां पथ्यां तृतीयामथ दाडिमं वा।
आमेष्वजीर्णेषु गुदामयेषु, वर्चोविबंधेषु च नित्यमद्यात्।।
गुड के साथ शुण्ठी का सेवन करने से आम (आंव), अजीर्ण (अर्श/बवासीर) एवं वर्चोविबन्ध (मलबद्धता/कब्ज) आदि रोग नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार गुड़ के साथ उपकुल्या (पिप्पली), पथ्या (हरड़) एवं दाडिम (अनार)- इन सभी का अलग-अलग सेवन करने से भी पूर्वोक्त रोग नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार इस श्लोक में चार योग निर्दिष्ट हैं।
योग शत के प्राचीन टीकाकार सनातन के अनुसार गुड-शुण्ठी वाला पहला योग आम (आँव) में प्रयुक्त करना चाहिए तथा गुड-पिप्पली वाला दूसरा योग अजीर्णरोग में। इसी प्रकार गुड-हरीत की वाला तीसरा योग बवासीर तथा गुड-दाडिम वाला चतुर्थ योग मलबद्धता में उपयोगी होता है।
पाण्डुरोग-चिकित्सा- अयस्तिल मोदक (योग सं.-34)
अयस्तिलत्र्यूषणकोलभागैः सर्वैः समं माक्षिकधातुचूर्णम्।
तैर्मोदकः क्षौद्रयुतोऽनुतक्रः पाण्ड्वामये दूरगतेऽपि शस्तः।।
अयः (विशिष्ट विधि से शोधित लोहचूर्ण अथवा लोहभस्म), तिल, त्र्यूषण (त्रिकटु) एवं कोल (बदरीफल/बेर)- इन्हें समान मात्रा में लें। इन सबके बराबर शोधित माक्षिक धातु (सोनामाखी) का चूर्ण (भस्म) लें; तदनन्तर मधु मिलाकर मोदक (लड््डू) बना लें। इसका सेवन करने के उपरान्त अनुपान के रूप में तक्र लें। इससे बहुत बढ़ा हुआ पाण्डुरोग (पीलिया) भी नष्ट हो जाता है।
श्वासकासचिकित्सा- हरीतक्यादि गुटिका (योग सं.-35)
हरीतकी-नागर-मुस्तचूर्णैर्गुडेन मिश्रैर्गुटिका विधेया।
निवारयत्यास्यविधारितेयं श्वासं प्रवृद्धं प्रबलं च कासम्।।
हरीतकी (हरड़), नागर (शुण्ठी) एवं मुस्ता (मोथा) का चूर्ण बनाएं तथा इसके समान मात्रा में गुड़ मिलाकर गोबली बना लें। मुख में रखकर चूसने से यह गोली बढ़े हुए श्वासरोग (दमा) एवं प्रबल कासरोग (खांसी) को भी नष्ट कर देती है।
छर्दिचिकित्सा- मानश्शिलादि चूर्ण (योग सं.-36)
मनश्शिलामागधिकोषणानां चूर्णं कपित्थाम्लरसेन युक्तम्।
लाजैस्समांशं मधुनावलीढं छर्दिं प्रसक्तामसकृन्निहन्ति।।
शोधित मनश्शिला (मैनशिल), मागधिका (पिप्पली) तथा ऊषण (कालीमिर्च)- इनके चूर्ण को कपित्थ रस एवं अंल (निंबूरस) के साथ कल्कित कर इसके समान मात्रा में लाजा (खील) मिलाएं। तदनंतर इसमें उचित मात्रा में मधु मिलाकर चाटें। यह योग बहुत प्रबल तथा रुक-रुक कर पुनः-पुनः उठने वाली छर्दि (उल्टी) को भी नष्ट कर देता है।-योगशतम्
Related Posts
Latest News
एजुकेशन फार लीडरशिप का शंखनाद
08 Dec 2024 15:59:36
राष्ट्रभक्त बुद्धिजीवियों को विश्व नेतृत्व के लिए तैयार करने की योजना -
पतंजलि विश्वविद्यालय के विश्वस्तरीय वृहद सभागार में आयोजित...