आयुर्वेद महोत्सव : ‘आयुर्वेद ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए हर उत्तराखण्डी ब्रांड एम्बेसडर’
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देहरादून (उत्तराखण्ड)। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) ने कहा, आयुर्वेद पद्धति प्राचीन ऋषि मुनियों की दी एक अनमोल धरोहर है, जो मानवता के कल्याण, स्वस्थ, सुखी और निरोगी जीवनचर्या का आधार है। आयुर्वेद ज्ञान के प्रचार- प्रसार के लिए हर उत्तराखण्डी ब्रांड एम्बेसडर है।
राजभवन में आयुष विभाग और उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘आयुज्ञान सम्मेलन’ की शुरूआत राज्यपाल ने की। योग और आयुर्वेद हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। इसे हर व्यक्ति तक पहुंचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। कोविड महामारी में पूरी दुनिया ने आयुर्वेद और योग के महत्व को समझा है। कहा, प्रदेश अपनी विशिष्ट वनोषधि सम्पदा, आयुर्वेदिक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है। प्राचीन काल से राज्य में आयुर्वेद ज्ञान, विज्ञान और आध्यात्मिक चेतना का विस्तार हो रहा है। आयुर्वेद पूरी मानवता के लिए बड़ा वरदान है। राज्यपाल ने सम्मेलन में आयुष फार्मा कम्पनियों के स्टाॅल का अवलोकन किया।
उन्होंने आयुर्वेद चिकित्सा और शोध पर आधारित स्मारिका का विमोचन किया। सचिव आयुष डा. पंकज कुमार पाण्डेय ने कहा, आयुर्वेद के क्षेत्र में माॅडर्न मेडिसिन को एकीकृत कर आगे बढ़ना है। इससे लोगों की स्वस्थ जीवन शैली में सुधार आएगा। सम्मेलन में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन, जड़ी-बूटी कृषिकरण एवं संवर्धन, आयुष उद्योगों की स्थापना, वेलनेस सेंटर, आयुष क्षेत्र में नवाचार एवं अनुसंधान पर मंथन किया गया। आयुर्वेद और योगिक कल्याण सिद्धांत पर प्रो. उत्तम कुमार, प्रो. अनूप गक्खड़, प्रो. एचएम चंदोला, प्रो. वी.के. अग्निहोत्री, प्रो. महेश व्यास ने विचार रखे। एलोपैथी और आयुर्वेद चिकित्सा में तालमेल विषय पर एम्स ऋषिकेश के निदेशक प्रो. मीनू सिंह, एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय प्रो. हेमचन्द्र, प्रो. आलोक श्रीवास्तव, पीके प्रजापति, प्रो. रमाकांत यादव जानकारी दी।
इस मौके पर राज्यपाल की पत्नी गुरमीत कौर, सचिव राज्यपाल रविनाथ रामन, अपर सचिव आयुष विजय कुमार जोगदंडे, आयुर्वेद विवि के कुलपति प्रो.अरुण कुमार त्रिपाठी, प्रो. बालकृष्ण पंवार, डा. नंदकिशोर दाधीच, डा.मिथलेश कुमार, डा. केके. पांडेय, डा. राजीव कुरेले आदि मौजूद थें।
जड़ी-बूटी के इतिहास को पढ़ने की जरूरत: पूज्य आचार्य जी महाराजपतंजलि के सीईओं परम पूज्य आचार्य जी महाराज ने कहा, आयुर्वेद सर्वाधिक प्राचीन परम्परा है। आयुर्वेद के गौरव को लौटने में कोई संशय नहीं है। ऋषियों की इस विधा को आज वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया जा रहा है। आयुर्वेद काॅलेज में सिर्फ आयुर्वेद का इतिहास पढ़ाया जा रहा है जबकि जड़ी-बूटियों पर आधारित पद्धतियों के इतिहास को भी पढ़ाया जाना जरूरी है। आयुर्वेद पर वर्तमान जरूरतों को ध्यान में रखकर काम करने की जरूरत है। एलोपैथी में एक दवा बनाने में 10 साल लग जाते हैं। उसके बाद भी दवा काम करेगी या नहीं, इसकी गारंटी नहीं है, जबकि आयुर्वेद चिकित्सा पहले से परिमाणित है। 50 से अधिक देशों के लोग आयुर्वेद चिकित्सा के लिए भारत आ रहे हैं। |
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