पेरिस में 42वें  अंतर्राश्ट्रीय पुस्तक मेले में पहुंचे आचार्य श्री

प्रदेश में कृषि सम्बंधी समस्याओं तथा उनके समाधान में पतंजलि की भूमिका व सहयोग पर चर्चा

पेरिस में 42वें  अंतर्राश्ट्रीय पुस्तक मेले में पहुंचे आचार्य श्री

     भारत में हमारी भाषा, बोलियां और पहचान एक रूप में हमारी ताकत हैं। पर यह ताकत तब होगी जब उन माध्यमों से हम सृजन में लगें। पर ये हमाीर कमजोरी बन जाती है। ऐसे ही हम राष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे को जोड़ सकते हैं? एक उदाहरण है- चीन। चीन में कई प्रकार की बोलियां और भाषाएं हैं। पर राष्ट्रीय स्तर तो छोड़िए वैश्विक स्तर पर भी चीन ने अपनी चीनी भाषा को स्थापित कर दिया है। यह बात पतंजलि योगपीठ के पूज्य आचार्य बालकृष्ण ने स्वदेशी को दिये एक साक्षात्कार में कही। पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज 42वें अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में भारतीय प्रतिनिधित्व मंडल के सदस्य के रूप में फ्रांस की राजधानी पेरिस पहंुचे थे। इसी मौके पर पूज्य आचार्य श्री का साहित्य, संस्कृति, योग और आध्यात्म विषय पर साक्षात्कार लिया गया।
प्रश्न- आप पेरिस बुक फेयर में भारत का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं। भारत इस पुस्तक मेले में अतिथि देश की भूमिका में हैं। आप इसे कैसे देखते हैं?
उत्तर- यह एक अवसर है, भारत को, भारतीयता की पहचान को फ्रांस के जनमानस के बीच में स्थापित करना। भारत और भारतीयता को यही हम दिखाना चाहते हैं तो यह एक बड़ा अवसर है और इसके माध्यम से लोग कल्पना के भारत को नहीं वरन वर्तमान के भारत को जान पायेंगे। यह हमारे ऊपर निर्भर है कि उस भारत के बारे में हम कितना बता पाते हैं? इन्होंने हमारे लिए दरवाजा खोला है पर उस दरवाजे के अंदर हम कौन सी चीजों से उस कमरे को सजाते हैं जिससे कि उनके मनोभाव में भारत के प्रति छवि हम बना सकते हैं। यह हमारे ऊपर निर्भर है। अतः इस अवसर का हमें लाभ उठाना चाहिए।
प्रश्न- पतंजलि ने योग के माध्यम से क्रांति की ऐसी अलख जगाई की पूरा विश्व 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाता है। पेरिस में एफिल टाॅवर के नीचे हजारों की संख्या में फ्रांसवासी योग करते नजर आते हैं। आपको क्या लगता है, यह भेड़चाल है या दुनिया वास्तव में योग को अपना रही है?
उत्तर- देखिये, भेड़चाल तो तब होती जब कोई मजबूरी होती। यहां मजबूरी नहीं हैं। यहां तो स्वीकार्यता और भावना है और उसको हमने देखा है। उस स्वीकार्यता और भावना को जन आन्दोलन बनाना आपका और हम सबका काम है।
प्रश्न- आचार्य जी, आपके साथ तीन दिन से हूँ। आपने पेरिस में गोशाला ढूंढ ली। आप पेरिस के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-बाड़ी देख आये। क्या आप यहां योग और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार और उसके यहां स्थापित होने की संभावनाएं तलाश रहे हैं?
उत्तर- यह बात सत्य है। हमारे जो सांस्कृतिक मूल तत्व हैं वे विश्वव्यापी हैं और वैश्विक आवश्यकता को पूरा करने में अपनी महती भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए मैंने देखा, कृषि को, आधुनिक अनुसंधानपरक व्यवस्थाओं को, गोशाला को। भारत को हम डिजिटल एग्रीकल्चर और सस्टेनेबल एग्रीकल्चर, जो हमारे प्रधानमंत्री जी का भी स्वप्न है और हम सभी भारतवासियों का भी स्वप्न होना चाहिए, को पूरा करने के लिए हमें प्रयास करना चाहिए। मैं विश्व में जहां कहीं भी जाता हूँ, शहर की भीड़भाड़ से दूर ग्रामीण क्षेत्र ढूंढ़ता हूं। यह तो शहरों में रहने वालों का प्रसन्नचित और कूदता-फांदता जीवन दिख रहा है न, वह अन्न से दिख रहा है। उसकी पूर्ति के लिए उस देश का क्या साधन है? महात्मा गांधी जी ने कहा, हमारा देश गांवों में बसता है। मेरे हिसाब से सारी दुनिया ही गांव में बसती है। गांव न हों, खेत-खलियान न हों तो दुनिया नहीं बचेगी। मैं गांव से दुनिया को देखने का प्रयास करता हूँ।
प्रश्न- पूरे विश्व में कोरोना महामारी ने त्राहि मचाई किन्तु भारत को योग ने बचाया। प्राणायाम करने वाले इस विभीषिका के कम शिकार बने। वैश्विक बिरादरी भी इस सच को स्वीकार कर रही है। किन्तु एक बड़ा मेडिकल माफिया है जो नहीं चाहता कि भारत की इस प्राचीन सनातन पद्धति को दुनिया अपनाए। आपके मन में कहीं न कहीं यह भाव तो आता होगा?
उत्तर- भाव नहीं आता। यह तो तथ्य और प्रमाण सब उपलब्ध हैं। हम सैकड़ों उदाहरण दे सकते हैं और एक सुनियोजित ढंग से पूरी योजना चल रही है। बड़ा मेडिकल माफिया नहीं, षड्यंत्र वैश्विक स्तर पर काम कर रहा है। जितना बड़ा हमारा सिस्टम इसको उबारने के लिए नहीं कर रहा है। ये देवासुर संग्राम है। असुर आज भी मुंह बाये खड़े हैं और देव शक्तिविहीन हैं। तो देवों की शक्ति बढ़ेगी और असुर परास्त होंगे। वैदिक संस्कृति का पुनः उत्थान होगा जिससे विश्व का कल्याण होगा।

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